अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज। महाकुंभ नगर में सभी दस नामी शैव अखाड़ों की अपनी-अपनी कोतवाली होती है, जहां कोतवाल विशेष रूप से नियुक्त किए जाते हैं। इन कोतवालों की जिम्मेदारी होती है अखाड़े की छावनी की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना और अखाड़े के साधुओं, विशेषकर नागा साधुओं, को अनुशासन में रखना। इन अखाड़ों का अपना अलग कानून और नियम-कायदे होते हैं, जिनका पालन न करने पर विभिन्न प्रकार की सजा दी जाती है।
नागा संन्यासी बनते हैं कोतवाल
अखाड़ों में किसी भी आंतरिक विवाद को कोर्ट-कचहरी तक नहीं ले जाया जाता। यहां विवादों को आपसी सहमति और वार्ता से सुलझाने की परंपरा है। धर्मध्वजा के नीचे ईष्ट देव की कुटिया स्थापित होने के साथ ही छावनी में कोतवाली भी बन जाती है। कोतवाल का चयन विशेष रूप से नागा संन्यासियों में से ही किया जाता है। ये कोतवाल छावनी की सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
सजा का अनोखा तरीका
अखाड़े के नियमों का उल्लंघन करने वालों को अलग-अलग प्रकार की सजा दी जाती है। इन सजाओं का उद्देश्य किसी को आर्थिक रूप से दंडित करना नहीं, बल्कि उसे उसकी गलती का अहसास कराना होता है। सजा के रूप में धार्मिक क्रियाएं प्रमुख होती हैं।
1. मामूली गलती करने वालों को छोटा दंड दिया जाता है।
2. गंभीर आरोप लगने पर उसे “चेहरा-मोहरा” नामक विशेष सभा में पेश किया जाता है, जहां पंच उसके बारे में निर्णय लेते हैं।
सख्त सजा: अखाड़े से निष्कासन
अगर किसी व्यक्ति पर गंभीर आरोप जैसे विवाह करना, दुष्कर्म करना, या आर्थिक अपराध सिद्ध हो जाते हैं, तो उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। यह सजा अखाड़े के अनुशासन को बनाए रखने के लिए दी जाती है।
अनोखी सजाएं
1. 108 डुबकी की सजा: कोतवाल की मौजूदगी में गंगा में 108 बार डुबकी लगवाना।
2. सेवा का दंड
अखाड़े के वरिष्ठ साधुओं के पास जाकर उन्हें दातून देना।
छावनी के भीतर एक सप्ताह तक सफाई करना।
गुरु भाइयों के यहां बर्तन साफ करना।
कोतवाल की भूमिका और जिम्मेदारी
कोतवाल के पास विशेष अधिकार होते हैं। वह चांदी से मढ़े हुए दंड का उपयोग कर गड़बड़ी करने वालों को दंडित कर सकते हैं। समय-समय पर कोतवालों को बदला भी जाता है, ताकि अखाड़े की व्यवस्था में निष्पक्षता बनी रहे।
नियमों का पालन सुनिश्चित करने का उद्देश्य
इन सजाओं और व्यवस्थाओं का मुख्य उद्देश्य अखाड़े में अनुशासन बनाए रखना और साधुओं को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराना है। महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में ये परंपराएं अखाड़ों की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करती हैं।