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15 January 2025 7:01 am

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भूमाफियाओं का आतंक: इन्हें बस जमीन दिखनी चाहिए, चाहे वो धर्मस्थल की हो, या सरकार की, राज इनका ही चलता है… 👇

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भूमाफियाओं का आतंक एक गंभीर समस्या बन चुका है। सरकारी जमीन, धार्मिक ट्रस्टों की संपत्ति, और यहां तक कि गरीबों की निजी जमीन भी भूमाफियाओं की साजिशों से सुरक्षित नहीं है। इनके कारनामों में राजस्व विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से जमीनों के फर्जी दस्तावेज बनाना, कब्जा करना और जमीन को ऊंची कीमत पर बेच देना शामिल है।

लखनऊ की सरोजिनी नगर तहसील के बंथरा सिकंदरपुर गांव में ठाकुर जी महाराज ट्रस्ट की जमीन पर अवैध कब्जा इसका ताजा उदाहरण है। दशकों पहले स्थापित इस ट्रस्ट की भूमि पर भूमाफिया शिवकुमार तिवारी ने फर्जी सोसायटी बनाकर कब्जा कर लिया। राजस्व विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों ने न केवल इस साजिश को नजरअंदाज किया बल्कि इसे कानूनी मान्यता भी दे दी।

यूपी में भूमाफिया अक्सर राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक ढिलाई का फायदा उठाते हैं। लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, वाराणसी, और कानपुर जैसे शहरों में जमीन के अवैध कब्जे के मामले आम हो गए हैं। इन माफियाओं की ताकत इतनी बढ़ चुकी है कि ये न केवल सरकारी बल्कि धार्मिक और ऐतिहासिक संपत्तियों पर भी कब्जा कर लेते हैं।

सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे का यह मामला बंथरा सिकंदरपुर क्षेत्र में जिला पंचायत की खसरा संख्या 544/2021 रकबा 0.177 हेक्टेयर भूमि से जुड़ा है, जहां पूर्व में आयुर्वेदिक चिकित्सालय संचालित था। तथाकथित भू-माफिया शिवकुमार तिवारी उर्फ पप्पू तिवारी ने इस जमीन पर कब्जा कर लिया। स्थानीय प्रशासन और राजस्व विभाग की निष्क्रियता इस मामले में गंभीर सवाल खड़े करती है।

श्री ठाकुर जी महाराज ट्रस्ट: एक ऐतिहासिक संपत्ति विवाद

यह विवाद श्री ठाकुर जी महाराज ट्रस्ट की जमीन से भी जुड़ा है, जिसे दशकों पहले दानदाताओं ने धार्मिक उपयोग के लिए प्रदान किया था। बंथरा सिकंदरपुर स्थित गाटा संख्या 616, रकबा 1.2108 हेक्टेयर की यह जमीन ट्रस्ट के अधीन थी। स्थानीय दानदाताओं ने इस भूमि पर ठाकुर जी महाराज का मंदिर बनवाया था, जिसकी देखभाल पहले राम नारायण तिवारी और फिर उनके बेटे बालकृष्ण तिवारी करते थे।

समय के साथ, इस भूमि को हड़पने की साजिश रची गई। शिवकुमार तिवारी ने सरकारी तंत्र को भ्रमित करते हुए 1 मई 2010 को “श्री ठाकुर जी महाराज सेवा समिति” नामक एक सोसायटी पंजीकृत कराई। इस सोसायटी के जरिए उन्होंने ट्रस्ट की भूमि को अवैध तरीके से अपने और अपने परिवारजनों के नाम करवाने की योजना बनाई।

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कैसे किया गया सरकारी अभिलेखों का दुरुपयोग?

राजस्व अभिलेखों के अनुसार, गाटा संख्या 616 की खतौनी में ट्रस्ट के प्रबंधक के रूप में बालकृष्ण तिवारी का नाम दर्ज था। लेकिन 12 जून 2009 को नायब तहसीलदार नगर के आदेश पर बालकृष्ण के स्थान पर शिवकुमार तिवारी का नाम दर्ज कर दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि जिस समय यह बदलाव किया गया, तब “श्री ठाकुर जी महाराज सेवा समिति” का अस्तित्व ही नहीं था। इस समिति का पंजीकरण 1 मई 2010 को किया गया, यानी जमीन के नाम परिवर्तन के 11 महीने बाद।

भूमाफिया का दबदबा और प्रशासनिक उदासीनता

सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर कर इस जमीन को अवैध रूप से कब्जा करने का मामला प्रशासनिक तंत्र और भूमाफियाओं के गठजोड़ को उजागर करता है। राजस्व विभाग के अधिकारी, जिनकी जिम्मेदारी सार्वजनिक संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, इस प्रकरण में मौन बने रहे। नायब तहसीलदार के आदेश और सोसायटी पंजीकरण के बीच का समय अंतराल इस साजिश की गहराई को दर्शाता है।

मिलेगा न्याय?

सरोजनी नगर का यह प्रकरण एक बड़ा सवाल खड़ा करता है—क्या सार्वजनिक हित की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन कभी जागरूक होगा? भूमि विवाद और भूमाफियाओं का यह खेल, जहां मंदिर और ट्रस्ट तक की संपत्तियां सुरक्षित नहीं हैं, यह हमारे समाज और शासन की कमजोरियों को उजागर करता है।

समय की मांग है कि ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई हो और दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाए, ताकि सरकारी जमीन और धार्मिक ट्रस्टों की संपत्तियों को इन अराजक तत्वों से बचाया जा सके।

भूमाफिया और सरकारी तंत्र का गठजोड़

यूपी में भूमाफियाओं की ताकत इसलिए बढ़ी है क्योंकि वे सरकारी तंत्र को अपने पक्ष में इस्तेमाल करने में सफल हो जाते हैं। राजस्व विभाग, तहसीलदार, और पुलिस के कई अधिकारी इन माफियाओं के साथ मिलकर जमीन के दस्तावेजों में हेरफेर करते हैं। सरकारी जमीनें, जो गरीबों के लिए अस्पताल, स्कूल, और सामुदायिक भवन बनाने के लिए सुरक्षित होती हैं, माफियाओं के कब्जे में चली जाती हैं।

प्रभावित वर्ग और उनके दर्द

भूमाफियाओं के आतंक का सबसे बड़ा खामियाजा गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को भुगतना पड़ता है। वे अपनी मेहनत की कमाई से खरीदी गई जमीन पर कब्जे के कारण न तो घर बना पाते हैं और न ही कानूनी लड़ाई लड़ने में सक्षम होते हैं। कई मामलों में, धार्मिक और ऐतिहासिक ट्रस्टों की संपत्तियां भी इन्हीं साजिशों का शिकार हो जाती हैं।

अवैध कब्जे पर आलीशान इमारत

कानून का भय समाप्त

उत्तर प्रदेश में सरकार ने भूमाफिया विरोधी टास्क फोर्स का गठन किया है, लेकिन इसका प्रभाव सीमित ही रहा है। कई मामलों में कार्रवाई धीमी होती है, और आरोपी कानूनी कमजोरियों का लाभ उठाकर बच निकलते हैं। कानून का भय खत्म होने के कारण भूमाफियाओं के हौसले बुलंद हैं।

समाधान के लिए सख्त कदम जरूरी

1. सख्त कानून और त्वरित न्याय: भूमाफिया विरोधी कानूनों को और मजबूत किया जाना चाहिए। साथ ही, मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन होना चाहिए।

2. प्रभावी टास्क फोर्स: भूमाफिया विरोधी टास्क फोर्स को अधिक शक्तियां दी जाएं, ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्रवाई कर सकें।

3. सरकारी तंत्र में पारदर्शिता: राजस्व विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों पर निगरानी के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन किया जाए।

4. सामाजिक जागरूकता: जनता को उनकी जमीन से जुड़े अधिकारों और भूमाफियाओं से बचने के तरीकों की जानकारी दी जाए।

यूपी में भूमाफियाओं का आतंक केवल जमीन का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता की साख से जुड़ा मुद्दा है। जब तक प्रशासन, कानून, और जनता मिलकर इस समस्या का समाधान नहीं करेंगे, तब तक भूमाफिया न केवल गरीबों का हक छीनते रहेंगे, बल्कि सरकार की नीतियों और योजनाओं को भी विफल बनाते रहेंगे।

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