सोनू करवरिया की रिपोर्ट
नरैनी: आज के समय में धन की अंधी दौड़ ने इंसानियत और नैतिकता को पीछे छोड़ दिया है। अधिक कमाई के लालच में कुछ लोग इतने गिर चुके हैं कि उन्हें यह भी एहसास नहीं है कि बेजुबान पशुओं के पेट का निवाला छीनकर ऐश करना कितना घृणित और अमानवीय कार्य है। इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। प्रशासन द्वारा गौवंश की देखरेख के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग कर कुछ लोग अपनी जेबें भरने में व्यस्त हैं। जनता का मानना है कि जब ऊपर वाले का न्याय होगा, तब इन भ्रष्टाचारियों का बचना मुश्किल होगा।
सढ़ा और छतैनी गांव की गौशालाओं में व्याप्त दुर्व्यवस्था और भ्रष्टाचार का जीता-जागता उदाहरण सामने आया है। सढ़ा गौशाला में निरीक्षण के दौरान देखा गया कि गौवंशों को उनके हिस्से का चारा और भोजन न देकर भूखा रखा जा रहा है। इस गौशाला की हालत ऐसी थी कि कोई भी देखे तो रूह कांप जाए। चारों ओर गंदगी फैली हुई थी। चरही, जहां गौवंशों को चारा दिया जाता है, वह गोबर और कचरे से भरी हुई थी।
गौवंशों की दुर्दशा
गौशाला में दो गौवंश मृत पाए गए और तीन अन्य मरणासन्न स्थिति में गोबर और कीचड़ में फंसे हुए मिले। भूख के कारण गौवंश अपने ही मल से तिनके निकालकर खाने को मजबूर थे। निरीक्षण के दौरान लगभग दोपहर 2 बजे, जब गौ रक्षा समिति के लोग वहां पहुंचे, तभी एक ट्रैक्टर पुआल लेकर आया। गौवंशों को तभी पुआल खिलाया गया।
भूसे का स्टॉक देखने पर यह स्पष्ट हुआ कि गौवंशों को शायद ही कभी भूसा दिया गया हो। इसी तरह, छतैनी गौशाला की स्थिति भी दयनीय थी। वहां का पूरा शेड कीचड़ और गोबर से भरा हुआ था। गौवंशों को सिर्फ बाहर खड़ा पुआल दिया गया था।
नाबालिग बच्चों से काम
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि छतैनी गौशाला में नाबालिग बच्चों से काम करवाया जा रहा था। यह बाल श्रम कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
जिम्मेदार अधिकारियों को दी गई जानकारी
गौ रक्षा समिति के जिला प्रवक्ता उमेश तिवारी और तहसील अध्यक्ष सोनू करवरिया ने इस गंभीर स्थिति की जानकारी जिलाधिकारी बांदा और मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को दी। उपजिलाधिकारी नरैनी को भी मामले से अवगत कराया गया।
अब देखने वाली बात यह है कि प्रशासन इन गंभीर लापरवाहियों और भ्रष्टाचार पर क्या कदम उठाता है। क्या दोषियों पर सख्त कार्यवाही होगी, या यह मामला भी बंद कमरे में बैठकर रफा-दफा कर दिया जाएगा?
गौवंशों की ऐसी दुर्दशा न केवल हमारी इंसानियत पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि प्रशासनिक तंत्र और जिम्मेदार अधिकारी कितने लापरवाह और असंवेदनशील हो चुके हैं। यह समय है कि जनता और प्रशासनिक अधिकारी मिलकर इन अमानवीय कृत्यों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएं और दोषियों को सजा दिलाएं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."