अनिल अनूप
“मेरा नाम जोकर” (1970) में राजकपूर द्वारा निभाई गई “राजू” की भूमिका न केवल उनके सिनेमाई करियर की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी, बल्कि यह उनके व्यक्तिगत दर्शन और समाज पर गहरे विचारों को दर्शाने वाली एक आत्मकथात्मक फिल्म भी मानी जाती है। इस भूमिका को समझने के लिए इसे दो पहलुओं में बाँटना होगा: भावनात्मक और व्यावहारिक व्याख्या।
राजू के किरदार में राजकपूर ने एक जोकर के जीवन को चित्रित किया है जो हमेशा दूसरों को हंसाने का प्रयास करता है, भले ही उसके अपने जीवन में कितने ही दुख क्यों न हों। यह किरदार तीन मुख्य अवस्थाओं में विभाजित है:-
बाल्यावस्था
राजू के बचपन में उसकी मासूमियत, मां के प्रति प्रेम, और स्कूल की शिक्षिका के प्रति आकर्षण को दिखाया गया है। उसका पहली बार दिल टूटता है जब वह समझता है कि शिक्षिका उसे एक बच्चा मानती है। यह एक बालक के नाजुक मनोभाव को दर्शाता है जो भावनात्मक रूप से परिपक्व नहीं है लेकिन प्रेम की गहराई को महसूस करता है।
युवावस्था
किशोरावस्था में सर्कस में काम करते हुए राजू के जीवन में सर्कस की एक अदाकारा मीनाजी (सिम्मी गरेवाल) आती हैं। वह उनके लिए अपने प्रेम की गहराई को महसूस करता है। मगर जब उसे पता चलता है कि मीनाजी किसी और को चाहती हैं, तो यह उसकी भावनाओं को और गहरा आघात देता है।
प्रौढ़ावस्था
राजू की जिंदगी का तीसरा चरण, जिसमें वह एक परिपक्व जोकर के रूप में दर्शाया गया है। उसकी मुलाकात मरिना (पद्मिनी) से होती है, जो एक रूसी अदाकारा है। यहां राजू का किरदार अपने जीवन के अतीत के अनुभवों के साथ समझौता करता हुआ नजर आता है।
राजू का जीवन तीन बार दिल टूटने का प्रतीक है, जो हर बार उसे मजबूत बनाता है लेकिन साथ ही उसकी मासूमियत को धीरे-धीरे खत्म करता जाता है। भावनात्मक तौर पर राजू का किरदार गहरे प्रेम, त्याग, और निस्वार्थता की मिसाल है। उसकी मां का किरदार भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो उसके जीवन में नैतिक मूल्यों और सच्चाई की नींव रखता है।
जीवन और कला का सामंजस्य
राजू का किरदार यह दर्शाता है कि कैसे एक कलाकार मंच पर हंसता-गाता है, लेकिन पर्दे के पीछे उसके निजी जीवन में दुःख और अकेलापन होता है। यह समाज में कलाकारों के वास्तविक जीवन की विडंबना को सामने लाता है। राजकपूर ने इस फिल्म के माध्यम से यह दिखाया कि कैसे एक जोकर अपने दर्द को छुपाकर समाज को आनंद प्रदान करता है।
सामाजिक यथार्थ
“मेरा नाम जोकर” उस दौर की फिल्म है जब भारतीय समाज बड़े बदलावों से गुजर रहा था। फिल्म के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि कलाकारों को अपने निजी सुख-दुख से ऊपर उठकर समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करना पड़ता है। राजू का किरदार यह दर्शाता है कि समाज अक्सर उन लोगों को भूल जाता है जो उनके लिए त्याग करते हैं।
जीवन के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण
राजू के किरदार के जरिए राजकपूर ने जीवन का गहरा दर्शन प्रस्तुत किया — “शो मस्ट गो ऑन।” चाहे जीवन में कितने भी कष्ट हों, व्यक्ति को अपना काम जारी रखना चाहिए। जोकर के चेहरे पर हंसी, और दिल में दर्द, यह द्वैत जीवन के कठोर यथार्थ को दर्शाता है।
आत्मकथात्मक तत्व
राजू का किरदार राजकपूर के स्वयं के जीवन और उनके फिल्मी सफर की भी झलक देता है। राजकपूर खुद सिनेमा के मंच पर हंसाते रहे लेकिन व्यक्तिगत जीवन में कई उतार-चढ़ावों का सामना किया।
राजू का किरदार भावनात्मक स्तर पर मासूमियत, निस्वार्थ प्रेम और त्याग की गहराई को दर्शाता है। व्यावहारिक स्तर पर यह समाज के लिए कलाकारों के योगदान और जीवन के संघर्षों को बखूबी पेश करता है। “मेरा नाम जोकर” एक ऐसी कृति है जिसमें हंसी और आंसुओं के बीच जीवन का गहन सत्य छुपा हुआ है।