वल्लभ लखेश्री की खास रपट
इस सारगर्भित कथानक पर अपनी अभिव्यक्ति देने से पूर्व मुझे महान विचारक सर विनवड लॉसन का यह कथन उद्धृत करना प्रासंगिक लगता है कि” जो लोग अपनी जीवन यात्रा के जीवनोद्धैश्य को निश्चित करने के पश्चात उन्हें तनिक भी परवाह नहीं करनी चाहिए कि दुनिया उसे सफलता के नाम से पुकारेगी या विफलता के नाम ” ।
इस वृतांत का महानायक श्री अनिल अनुप जो सफलता और विफलता से बेख़बर, बेपरवाह फक्कड़ ,जिसका रोम-रोम संघर्षों के रंगों से सराबोर हैं।
इनके संघर्षरत जीवन की कटु अनुभूतियों का पिटारा साझा करने के लिए एक साहसी कलम का होना भी लाजमी है । क्योंकि ऐसी डगर के सफरनामे में कहीं कंपकम्पी तो कहीं थप्पेड़ों से रूबरू होना आम बात है। इनके विगत जीवन की झांकी एवं भावुक हृदय के उद्गार किसी भी पाठक के मन के कोने को छूकर जरूर खलबली मचाएंगें । यही खलबली तकलूफ और तहजीब के अनोखे संगम को दृष्टिपात भी कराएंगी ।
मैं इस उम्मीद के साथ आश्वस्त हूं कि इस जीवन वृत्तांत से अनेकानेक साहित्य साधकों और पाठकों को नई दिशा देने में सहायक सिद्ध होगा। ऐसा मेरा पूरा-पूरा यकीन है, यकीन भी इसलिए की अनिल अनूप की जीवन गाथा इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से अंकित होगी ।यही वजह है कि वक्त की बेरहम भट्टी में तप तप कर कुंदन हुए इस चरित्र की सफलता खुद बखुद इनका दामन थामने उनके दरवाजे पर कतार में इंतजार किया करती हैं ।
श्री अनूप के जीवन के पन्ने पलटने से इस बात पर बेहद फक्र महसूस होता है कि आज की पीढ़ी सही मायने में खुशनसीब है। क्योंकि श्री अनूप ने बचपन से लेकर जवानी की दहलीज तक का सफर ख्वाहिशों विहीन हालतों के थपेड़ों में बिताया ।बावजूद भी ये शख्स कभी ना उम्मीद नहीं हुआ,और सब्र का जाम पीते पीते मुफलिसी के उस दौर में संघर्ष से अभ्यस्त हो चले। अंतोगत्वा मंजिल पर पहुंच कर ही दम लिया। आपका का जीवन इस बात का साक्षी है की असीम संघर्षों की बुनियाद पर खड़ी जिंदगी उस अद्भुत प्रस्तर खंड के समानांतर है जिसे भयंकर से भयंकर प्रभंजन भी हिला नहीं सका ।
एक सादा प्रवृत्ति एवं साधारण सोच का बाल हृदय जो परिवार के नागवारा और सौतेले व्यवहार से तार तार हो जाता है। जो एक दिन बिना इजाज़त और बिना मंजिल ही अपने घर से रुखसत हो कर चल पड़ता है ऐसी राह पर और ऐसे भविष्य की तलाश में जिसका कोई ठोर हैं न ठिकाना।
मां का प्यार और पिता का साया कभी नसीब नहीं हुआ। अपने घर में भी बेगाना और घर छोड़ कर चले जाने पर अनाथ।एक तरफ परिजनों की बैखबरी ,आग में घी डालने काम कर रही थी तो दूसरी तरफ जालिम वक्त की ठोकरें वज्रपात बन गई । श्री अनिल अनूप के जीवन का सफरनामा भी आशाओं और निराशा के भंवर जाल से रूबरू जो पीछे मुड़कर देखने को तैयार कहां था ।
बिहार के ऐतिहासिक स्थान मधुबनी जिला के राजनगर में दो अक्टूबर 1963 की पैदाइश, 15 वर्ष की उम्र में अपने जज्बाती सपनों से हमझोली की चाह में दिल्ली का रुख करता है। 15 वर्षीय कोमल मन का सुंदर ग्रामीण बालक हाफ पेंट,हाफ शर्ट पहने और एक आध जोड़ी कपड़े अपने पुराने सूटकेस में लेकर गांव की सरल और निश्छल जिंदगी पीछे छोड़कर दुनिया की चक्का चौंध से भरपूर दिल्ली महानगर में आकर दिल्ली के रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा है। जिसको यह पता नहीं की यहां से अब मुझे कहां जाना है ।
महानगर की सड़कों पर रेंगती अपार जिंदगानियां और गगनचुंबी इमारतें इस ग्रामीण युवक के लिए अजूबे से कम नहीं थी। लेकिन कुछ कर गुजरने के हौसलों की थप्पकियां बार-बार चुनौतियों से निपटने की ललक पैदा कर रही थी ।अपने कदमों पर खड़े होने की नई उम्मीदों का कारवां अन्दर से उमड़ रहा था । दिल्ली के फुटपाथ खड़े अपने भावी सपनों के ख्वाबों की दुनिया में पहुंचकर चिर मग्न खड़ा था कि उसी क्षण एक आवाज ने अचानक इनको ध्यान मुद्रा से जगाया और सामान्य परिचय के बाद वह शख्स अपने साथ लेकर जिनका नाम……. था जो जनता पार्टी के महासचिव जोर्ज फर्नांडीज के निजी सहायक के रूप में कार्यरत थे ।
यहीं से अनिल अनूप की जिंदगी जीवन के नए पड़ाव की ओर अग्रसर हो चली थी। जिसमें कठिन मेहनत ,ईमानदारी, वफादारी एवं कुछ करके के गुजरने की जिज्ञासा ने कदम दर कदम साथ दिया ।इस दौरान इनकी विद्या अर्जित करने की जिद एवं साहित्य साधना की कदमताल ने सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़ने के अंदाज को ही निरंतर जिन्दा रखा ।
1986 में जनता पार्टी के महासचिव जोर्ज फर्नांडीस से मुलाकात ,उनके सानिध्य ,उनका मार्गदर्शन एवं उनके सहयोग ने शिक्षा जगत में पेठ जमाने के साथ-साथ पत्रकारिता के हुनर में हाथ आजमाने का भी मौका दिया।
श्री अनूप सर के दिल्ली प्रवास के प्रारंभिक दौर की कहानी भी अपने आप में अन सुलझी पहेली से कम नहीं है। इनकी तत्कालीन चुनौतियां और अभावों का चोली दामन सा साथ रहा हैं।
शुरुआती मुफलिसी की दिनचर्या ,ग्रामीण एवं शहरी वातावरण से तालमेल की चुनौतियां, उस पर इनकी नसों में दौड़ता हुआ खुद्दारी का खून जो अपने पिता श्री के सामने भी नहीं झुका वह दुनिया के सामने कैसे हार मान लेता ।अपने आप को एहसास के बोझ से हर संभव मुक्त रखना ,उस कर्ज को सूद सहित चुकता करने की जिद भी उनके व्यक्तित्व पर सदैव हावी रही ।
इनके संघर्षों का वरदान सदैव नई-नई राहे चुनता रहा। लेकिन हर परिस्थितियों में ऊपर वाले की अनुपम अनुकंपा रही। कलम ने कभी दामन नहीं छोड़ा जिससे कदम बढ़ते चले। लेखनी में निखार आता चला ।इस बल पर पत्रकारिता में करियर बनाने को रास्ता प्रशस्त होता चला । लेकिन सच्चाई, संघर्ष और ईमानदारी का त्रिवेणी संगम इनकी लेखनी पर सदैव हावी रहा था । परिणाम स्वरूप नामी अखबारों में काम करने का मौका मिल गया ।शोहरत बढ़ाने के साथ ही आपकी जिंदगी में शोभा आई, जो पत्नी बनी ।तीन बच्चे हुए, दो बेटे एक बेटी । पति पत्नी जिंदगी और परिवार को मिलकर संवारने लगे ।
लेकिन पत्रकारिता की दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी के साथ जीना आसान नहीं था । अनिल सर की आर्थिक स्थिति कभी स्तर नहीं रही । शोहरत और हूनर के बावजूद भी अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया । इन्होंने अपने सपनों को जीवंटता से जिया और समाज के लिए एक मिसाल बने।
परिणाम स्वरूप कड़ी मेहनत से उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप व अन्य सुविधाओं के लिए चयनीत होकर कालेज शिक्षा का मार्ग फतह कर लिया।
अपनी पत्रकारिता के हुनर के साथ अखबार छापने और घर-घर अखबार पहुंचाने का कार्य भी किया। अपने लक्ष्य को साधने के लिए किसी कार्य को कभी तुछ नही माना। इन्होंने नए परिवेश एवं नई चुनौतियों में भी आत्मनिर्भरता के जुनून को हमेशा जीवित रखा। आंखों में नए सपनें और नई उम्मीदों के उत्साह ने नए आयामों के साथ में आगे बढ़ने का पथ प्रशस्त किया। इन्होंने ठान लिया कि बदलाव जीवन का हिस्सा है और धीरे-धीरे खुद को शहरी जिंदगी में ढाल भी दिया ।शहर के इस जीवन यात्रा में सदैव नया जीवन ,नई दिशा और नए सपनों को साकार रूप दिया। स्कूल और कॉलेज शिक्षा की सफल दर सफलता ने उनकी व्यक्तिगत चमक में चार चांद लगा दिए। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी लग गई ।और अपनी काबिलियत का लोहा मनाते मनाते यहां भी उच्च पद पर पहुंच गए ।
अब अपने परिवार एवं गांव के कर्ज को चुकाने का संकल्प लेकर चल पड़े ।इस संकल्प के साथ घर परिवार की मदद के अलावा गांव में एक स्कूल और एक अस्पताल की स्थापना कर गांव वालों को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मुहैया करवा कर मानवता की शानदार नजीर बनकर सामने आए ।जो जीवन यात्रा की यह एक अद्भुत कहानी बन गई ।जो बताती है कि दृढ़ संकल्प से हर मंजिल पाई जा सकती है ।आपने अपनी मेहनत और समर्पण से एक नया इतिहास रच दिया।
संवेदन लेखनी के इस जीवंट व्यक्तित्व का सफर अनेक करवटों के साथ आजलग अनवरत बढ़ता जा रहा है। पिछले 20 सालों से देश के विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिका में नियमित रूप से स्वतंत्र लेखन के साथ हिंदी वेबसाइट समाचार पोर्टल का संचालन और संपादन किया जा रहा है।
दैनिक वीर अर्जुन हिंदी दैनिक में प्रूफ रीडर, नवभारत टाइम्स में परिसर संवाददाता से लेकर जिला संवाददाता के बाद संपादकीय पृष्ठ के लिए आपके नियमित आलेख देखने को मिलते हैं। नेशनल न्यूज़ एजेंसी के साथ उप संपादक के रूप में आपकी क्रम साधना की छाप सर्वव्यापी है । पीटीआई हिंदी सर्विस, भाषा के लिए लेखन कार्य अमिट सार्थकता सर्व विदित है। दिल्ली प्रेस की पत्रिका सरस सलिल, सरिता, मुक्ता के लिए नियमित लेखन कार्य पिछले 10 सालों से अपने सफल को सफर को अंजाम दे रहा है।
साहित्य के इस महा अनूप के लिए एक शायर की कुछ पंक्तियां अपने आप में काफी कुछ बंया करती हैं कि:-
ज़र्रों में रह गुर्जर के चमक छोड़ जाऊंगा
पहचान अपनी दूर तलक छोड़ जाऊंगा
खामोशियों की मौत गवारा नहीं है मुझे
शीशा हूं टूट करके भी खनक छोड जाऊंगा
-फलोदी राजस्थान।