जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
मऊ जिले के परदहा ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय रणवीरपुर में कार्यरत शिक्षिका रागिनी मिश्रा के खिलाफ एक बड़ा मामला सामने आया है, जिससे शिक्षा विभाग में हड़कंप मच गया है। शिक्षिका के कारनामे अब शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंच चुके हैं, और इस पर गंभीर संज्ञान लिया गया है। सहायक शिक्षा निदेशक (बेसिक) आजमगढ़ मंडल ने खंड शिक्षा अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और उनसे एक सप्ताह के भीतर अपना स्पष्टीकरण देने को कहा है।
रागिनी मिश्रा के खिलाफ आरोप हैं कि वह विभागीय उच्चाधिकारियों के साथ मिलीभगत कर स्कूल नहीं जाती थीं और केवल एक दिन स्कूल पहुंचकर पूरे सप्ताह की उपस्थिति बना देती थीं। यदि इस पर कोई शिकायत करता या प्रधानाध्यापक इसकी ओर ध्यान आकर्षित करता, तो उसे विभागीय अधिकारियों के आदेश पर वेतन रोकने की धमकी दी जाती थी। विद्यालय के अन्य शिक्षक भी रागिनी मिश्रा के खिलाफ कुछ बोलने से डरते थे, क्योंकि उनकी विभागीय उच्चाधिकारियों से नजदीकियां थीं।
जब मीडिया ने इस मामले की छानबीन शुरू की, तो विद्यालय के बच्चों ने भी रागिनी मिश्रा के कारनामों का पर्दाफाश किया। इस मामले पर बीएसए (बेसिक शिक्षा अधिकारी) ने प्रधानाध्यापक पर मिलीभगत का आरोप लगाया और कार्रवाई की बात की, लेकिन यह बात भी सामने आई कि बीएसए और रागिनी मिश्रा के बीच की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं।
यहां सवाल यह उठता है कि विभाग के सात स्तरीय निरीक्षण तंत्र के बावजूद रागिनी मिश्रा के कारनामे क्यों नजरअंदाज किए गए। डायट प्राचार्य, बीएसए, खंड शिक्षा अधिकारी, डायट मेंटर, जिला समन्वयक, एसआरजी और एआरपी सहित विभिन्न स्तरों पर इस तरह की जांच होनी चाहिए, लेकिन क्या किसी भी स्तर पर रागिनी मिश्रा की अनुपस्थिति पर ध्यान दिया गया? यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या इस पूरे मामले में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत शामिल है?
रागिनी मिश्रा ने अपनी सफाई में यह दावा किया कि वह कथावाचन करने से पहले मेडिकल लेती हैं। लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या एक मेडिकली अनफिट व्यक्ति कथावाचन कर सकता है? मामला काफी पेचीदा है और अब यह देखना होगा कि शिक्षा विभाग इसके खिलाफ क्या कार्रवाई करता है। क्या विभाग जांच के नाम पर सिर्फ लीपा-पोती करेगा, या फिर एक सख्त कदम उठाएगा?