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18 January 2025 6:38 pm

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AK-47 और अपराध की सनक : महज दो लडकियां वजह बन गई, कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ल के एनकाउंटर की

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल इलाका कभी अपराध और माफिया गतिविधियों के लिए कुख्यात हुआ करता था। 90 के दशक में इस क्षेत्र से कई कुख्यात अपराधी और डॉन उभरे, जिनका खौफ आम जनता से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं और अधिकारियों तक में देखा जाता था। इन्हीं में से एक नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला का। उसे आज़ाद भारत का सबसे खतरनाक अपराधी माना गया। उसकी सनक और अपराध की दुनिया में बढ़ते वर्चस्व ने पुलिस प्रशासन को मजबूर कर दिया कि उसके खात्मे के लिए स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया जाए। अंततः, सितंबर 1998 में हुए एक एनकाउंटर में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया।

श्रीप्रकाश शुक्ला का प्रारंभिक जीवन

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म दशहरे के दिन गोरखपुर जिले में हुआ था। उसके परिवार की उस समय गोरखपुर में एक प्रतिष्ठित पहचान थी। उसके पिता ने उसे बेहतर शिक्षा देने के लिए इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला करवाया, लेकिन श्रीप्रकाश को अंग्रेजी माध्यम का स्कूल पसंद नहीं आया। इसके बाद उसे गोरखपुर के पास दाउतपुर गांव के लोकनायक ज्ञानभारती विद्या मंदिर में दाखिला दिलाया गया। इसी दौरान गांव में हुए एक विवाद में उसने एक युवक की हत्या कर दी। पहली बार जेल जाने के बाद उसने अपराध की दुनिया का ककहरा सीखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अपराध की दुनिया में उभरता डॉन

90 के दशक में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम तेजी से उभरने लगा। वह एक के बाद एक हत्याएं और अपहरण की वारदातों को अंजाम देने लगा। 1997 में लखनऊ के बड़े लॉटरी व्यवसायी बबलू श्रीवास्तव की हत्या के बाद उसका नाम सुर्खियों में आया। इसके बाद आलमबाग में एक ट्रिपल मर्डर, फिर वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या, और फिर बिल्डर मूलराज अरोड़ा का अपहरण कर 2 करोड़ रुपये की फिरौती वसूलने जैसी घटनाओं ने उसे अपराध की दुनिया का बड़ा नाम बना दिया।

मुख्यमंत्री की सुपारी और पुलिस का एक्शन

श्रीप्रकाश शुक्ला की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी तक ले ली। इस चुनौती ने उत्तर प्रदेश पुलिस को हिला कर रख दिया। तभी यूपी एसटीएफ का गठन किया गया और श्रीप्रकाश के खात्मे की योजना बनाई गई।

एसटीएफ के पूर्व अधिकारी राजेश पांडेय के नेतृत्व में श्रीप्रकाश को पकड़ने की कोशिशें तेज हुईं। चुनौती यह थी कि पुलिस के पास उसकी तस्वीर तक नहीं थी। फोटो खोजने के लिए पुलिस ने श्रीप्रकाश के रिश्तेदारों और जानकारों से पूछताछ की। अंततः उसकी भांजी के पास से कुछ फोटो मिले, जिन्हें अखबार में छपवाया गया। इससे श्रीप्रकाश की पहचान सार्वजनिक हो गई और वह दबाव में आ गया।

मोबाइल और प्रेम प्रसंग बना कारण

अखबारों में फोटो छपने के बाद श्रीप्रकाश की पहचान उजागर हो गई थी। इस बात से वह परेशान रहने लगा। वहीं, यूपी एसटीएफ उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी। श्रीप्रकाश को मोबाइल की भी लत लग गई थी। बताया जाता है एक समय में उसके पास 14 सिम कार्ड हुआ करते थे। श्रीप्रकाश मोबाइल से पहले पेजर का भी इस्तेमाल किया करता था। नेपाल से वह भारत में पीसीओ से फोन किया करता था। श्रीप्रकाश शुक्ला गोरखपुर की रहने वाली अंजू नाम की लड़की से प्यार करता था। दोनों फोन में कई-कई घंटे बात किया करते थे। एसटीएफ को इसकी जानकारी हुई और टीम एक्टिव हुई। पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय बताते हैं कि लड़की गोरखपुर स्थित एक पीसीओ में आकर श्रीप्रकाश शुक्ला से बात किया करती थी। इसके अलावा वह घर के नंबर से भी डॉन से बातें करती।

श्रीप्रकाश शुक्ला को मोबाइल फोन का शौक था और उसके पास 14 सिम कार्ड हुआ करते थे। वह गोरखपुर की अंजू नाम की लड़की से प्यार करता था। दोनों घंटों फोन पर बात करते थे। एसटीएफ ने इस बात का फायदा उठाया और उनकी बातचीत को सर्विलांस पर ले लिया।

जब अंजू ने श्रीप्रकाश से दिल्ली मिलने की बात कही, तो एसटीएफ को उसके ठिकाने का पता चला। सितंबर 1998 में श्रीप्रकाश ने दिल्ली के ग्रेटर कैलाश से लखनऊ के एक बिल्डर को धमकी दी, जिससे उसका लोकेशन ट्रेस हो गया।

एनकाउंटर की कहानी

22 सितंबर 1998 की सुबह एसटीएफ ने श्रीप्रकाश का पीछा शुरू किया। वह अपनी कार में अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी के साथ गाजियाबाद की ओर बढ़ रहा था। इंदिरापुरम के पास उसे आभास हुआ कि उसका पीछा किया जा रहा है। उसने गाड़ी कौशांबी की ओर मोड़ दी और कच्चे रास्ते पर भागने लगा।

एसटीएफ ने उसका रास्ता रोक लिया और दोनों ओर से फायरिंग शुरू हो गई। कई राउंड फायरिंग के बाद आखिरकार श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके दोनों साथी मारे गए।

अपराध से न्याय की ओर

श्रीप्रकाश शुक्ला के खात्मे के साथ ही पूर्वांचल के एक युग का अंत हुआ। उसके एनकाउंटर ने उत्तर प्रदेश में माफिया के खिलाफ पुलिस की सख्ती और एसटीएफ की कार्यकुशलता को साबित कर दिया।

पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘वर्चस्व’ में श्रीप्रकाश की जिंदगी और अपराध की पूरी कहानी दर्ज है, जो एक जमाने के खूंखार डॉन के अंत की गवाही देती है।

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