अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट
मगहरा, देवरिया। शुक्रवार का दिन नरंगा गांव के लिए खास था। मलेशिया से आए नारायणन गोपालन और उनकी पत्नी वेल्लामन एन सुब्रमण्यम, जो तीन महीने से यहां रह रहे थे, अपने देश लौट रहे थे। इस अवसर पर गांववालों ने उन्हें ढोल-नगाड़ों और फूल-मालाओं के साथ विदाई दी। यह नजारा जितना रंगीन था, उतना ही भावुक भी, क्योंकि इस दंपति ने गांव के लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ दी थी।
तीन महीने पहले मलेशिया से भारत भ्रमण पर आए यह दंपति निक्कू गुप्ता के घर ठहरे थे। यहां से उन्होंने अयोध्या, काशी, मथुरा, जगन्नाथ पुरी, आगरा, दिल्ली और मुंबई जैसे प्रसिद्ध तीर्थ और दर्शनीय स्थलों का दौरा किया। लेकिन केवल इन स्थानों की सुंदरता ही नहीं, भारत की समृद्ध संस्कृति ने भी उन्हें गहराई से प्रभावित किया। दुर्गा पूजा, दीपावली और छठ जैसे त्योहारों के दौरान उन्होंने गांव में हर आयोजन में उत्साह से भाग लिया।
विदाई के दिन पूरे गांव में उत्सव जैसा माहौल था। महिलाओं ने उन्हें माला पहनाई, मिठाई खिलाई और अपने परिवार का सदस्य मानकर भावभीनी विदाई दी। यह देखकर मलेशियाई दंपति खुद को संभाल नहीं पाए और फूट-फूट कर रोने लगे। उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन दिल में अपार कृतज्ञता और प्रेम।
नारायणन गोपालन ने विदाई के समय कहा, “भारत जैसा देश और यहां के लोगों जैसा अपनापन पूरे विश्व में कहीं नहीं है। हमें यहां जो प्यार और सम्मान मिला, वह हमारे जीवन का अनमोल हिस्सा बन गया है।” उन्होंने यह भी बताया कि तीन महीने कैसे बीत गए, यह उन्हें पता ही नहीं चला।
गांव के लोगों के लिए भी यह पल भावनाओं से भरा था। रवि गुप्ता, चंद्रभान विश्वकर्मा, रामायण चौबे और वकील गौड़ जैसे ग्रामीणों ने कहा कि भले ही भाषा का अंतर था, लेकिन इस दंपति का सरल स्वभाव और उनकी भारतीय संस्कृति में रुचि ने उन्हें परिवार का हिस्सा बना दिया। उनकी नम्रता और हर किसी का हाथ जोड़कर अभिवादन करना गांववालों के दिलों में हमेशा के लिए बस गया।
विदाई का यह पल भारतीय संस्कृति की आत्मीयता और अपनापन का जीवंत उदाहरण था।