चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
गाजियाबाद के साहिबाबाद क्षेत्र में एक अनोखी घटना ने सबका ध्यान खींचा। 27 नवंबर को एक युवक थाने में पहुंचा, जिसके फटे कपड़े और नंगे पैर उसकी दर्दभरी कहानी बयां कर रहे थे। उसने पुलिस से कहा, “मेरा नाम राजू है। मैं अपना घर भूल गया हूं। जब मैं 7 साल का था, तब मेरा अपहरण हुआ था। बड़ी मुश्किल से मैं भागकर यहां पहुंचा हूं। कृपया मेरी मदद करें।”
युवक की बात सुनकर पुलिसकर्मियों के पसीने छूट गए। तुरंत उसकी सहायता के लिए कदम उठाए गए। पुलिस ने उसकी कहानी सोशल मीडिया पर साझा की और मीडिया में खबर प्रकाशित करवाई। यह प्रयास रंग लाया, और कुछ ही दिनों में राजू के परिवार वालों ने उसे पहचान लिया।
31 साल पुराना गुमशुदगी का मामला
राजू 8 सितंबर 1993 को साहिबाबाद इलाके से लापता हो गया था। उस वक्त वह केवल 7 साल का था। परिवार ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। इतने सालों तक परिवार ने उम्मीद नहीं छोड़ी, लेकिन राजू का कोई अता-पता नहीं था।
राजू ने बताया कि 1993 में उसे और उसकी बहन को स्कूल से लौटते समय अगवा कर लिया गया था। उसे राजस्थान ले जाया गया, जहां उसे बंधक बनाकर रखा गया। राजू को दिनभर काम कराया जाता, मारा-पीटा जाता, और खाने के लिए केवल एक रोटी दी जाती। शाम को उसे रस्सियों से बांध दिया जाता था।
हनुमान भक्ति और आजादी का रास्ता
राजू ने बताया कि जिस घर में उसे बंधक बनाकर रखा गया था, वहां की छोटी बेटी ने उसे हनुमान जी की उपासना करने की सलाह दी। उसने राजू को भागने के लिए प्रेरित किया। एक दिन मौका देखकर राजू एक ट्रक में सवार होकर राजस्थान से दिल्ली पहुंच गया।
31 साल बाद वापसी की राह
दिल्ली पहुंचने के बाद राजू ने कई पुलिस थानों के चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। वह अपना घर और इलाका सब कुछ भूल चुका था। आखिरकार, 22 नवंबर को वह खोड़ा थाने पहुंचा और अपनी पूरी कहानी सुनाई।
खोड़ा थाना पुलिस ने राजू को सहारा दिया। उसे पहनने के लिए कपड़े और जूते दिए, और खाने-पीने का प्रबंध किया। इसके बाद पुलिस ने सोशल मीडिया और मीडिया का सहारा लिया।
मां ने पहचान की, लेकिन DNA टेस्ट पर जोर
राजू की मां ने तीन निशानियों से उसकी पहचान की—माथे पर चोट का निशान, छाती पर तिल, और कुछ शारीरिक विशेषताएं। मां का दावा है कि ये सब उसके बेटे के निशान हैं। हालांकि, मां का कहना है कि राजू के अजीब व्यवहार को देखते हुए वे डीएनए टेस्ट कराएंगी, ताकि यह पुष्टि हो सके कि वह उनका असली बेटा है।
परिवार की खुशी
राजू के लौटने पर परिवार में उत्साह का माहौल है। मां और बहन ने बताया कि पिछले 31 साल बेहद मुश्किलों भरे थे। मां ने कहा, “31 साल तक रक्षाबंधन पर बेटे की कलाई सूनी रही, लेकिन अब मेरा बेटा वापस आ गया है।”
पुलिस की सराहनीय भूमिका
पुलिस की तत्परता और संवेदनशीलता ने एक परिवार को फिर से मिलाने में अहम भूमिका निभाई। अब राजू अपने परिवार के बीच सुरक्षित है। पुलिस इस पूरे मामले की गहराई से जांच कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि 31 साल पहले उसे अगवा करने वाले कौन थे।
यह घटना यह साबित करती है कि समय कितना भी बीत जाए, इंसान की इच्छाशक्ति और सही मदद मिलने पर हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।