विम्रता जयराम हरियाणी की रिपोर्ट
महाराष्ट्र की राजनीति पिछले तीन दशकों में कई बड़े बदलावों की साक्षी रही है। 1980 के दशक में जिस राज्य की सियासत पर कांग्रेस का सफेद खद्दर और सेकुलर राजनीति का दबदबा था, वहीं धीरे-धीरे भगवा राजनीति ने अपनी जड़ें मजबूत करनी शुरू कर दीं। हिंदुत्व की विचारधारा और क्षेत्रीय पहचान के नाम पर नई राजनीतिक ताकतें उभरीं। शिवसेना ने मराठी अस्मिता के नाम पर आंदोलन शुरू किया, तो बीजेपी ने हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर अपनी जगह बनाई। इन दोनों दलों ने मिलकर न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश की राजनीति को एक नया स्वरूप दिया।
शिवसेना का उदय
1966 में बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की। पार्टी का मकसद मराठी लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें राजनीतिक मंच देना था। 1967 में ठाणे म्यूनिसिपल चुनाव में शिवसेना ने पहली बार अपनी ताकत दिखाई और 17 सीटें जीतीं। 1968 में मुंबई म्यूनिसिपल चुनाव में पार्टी ने 42 सीटें जीतकर अपनी पकड़ और मजबूत की। 1980 तक शिवसेना स्थानीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण ताकत बन चुकी थी।
बीजेपी का आगमन और गठबंधन
1980 में बीजेपी का गठन हुआ, और 1984 में हिंदुत्व के वैचारिक आधार पर शिवसेना के साथ गठबंधन किया। यह साझेदारी दोनों पार्टियों के लिए फायदेमंद साबित हुई। 1985 में शिवसेना ने मुंबई महानगरपालिका में अपनी पहली बड़ी जीत दर्ज की।
1990: रथयात्रा और नया ध्रुवीकरण
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने देश में हिंदुत्ववादी राजनीति को नई धार दी। शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि इस बीच मंडल आयोग की रिपोर्ट के विरोध में शिवसेना में बगावत हुई और छगन भुजबल के नेतृत्व में 18 विधायक टूट गए।
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1995: पहली गैर-कांग्रेसी सरकार
1992 के मुंबई दंगे और 1993 के बम धमाकों के बाद 1995 का विधानसभा चुनाव एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और राज्य में पहली बार “शिवशाही” सरकार बनी। शिवसेना के मनोहर जोशी और नारायण राणे मुख्यमंत्री बने।
1999: कांग्रेस-एनसीपी की वापसी
1999 में शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई। हालांकि, महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा और शिवसेना-बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया। अगले 15 साल तक राज्य में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन का दबदबा रहा।
2014: बीजेपी-शिवसेना में दरार
बालासाहेब ठाकरे के निधन (2012) के बाद शिवसेना और बीजेपी के रिश्तों में तनाव बढ़ने लगा। 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले 25 साल पुराना गठबंधन सीटों के बंटवारे पर टूट गया। बीजेपी ने नरेंद्र मोदी की लहर पर सवार होकर अकेले चुनाव लड़ा और 122 सीटें जीतीं। हालांकि, बहुमत के लिए उसे शिवसेना का साथ लेना पड़ा।
2019: महा विकास आघाड़ी का गठन
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन मुख्यमंत्री पद के बंटवारे पर दोनों दलों में विवाद हो गया। शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर “महा विकास आघाड़ी” का गठन किया। शरद पवार की कूटनीति से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।
2022: शिवसेना में बगावत
2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में बगावत कर 40 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी। बीजेपी के समर्थन से शिंदे मुख्यमंत्री बने और शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न भी अपने पक्ष में कर लिया।
एनसीपी में टूट
2023 में शरद पवार की एनसीपी भी टूट गई। अजित पवार ने बगावत कर पार्टी के 38 विधायकों के साथ बीजेपी सरकार में शामिल हो गए।
2024: नई चुनौती
आज शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों अपने-अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में मिली शुरुआती सफलता ने उन्हें थोड़ी राहत दी है, लेकिन असली चुनौती महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में है।
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महाराष्ट्र की राजनीति ने पिछले 35 वर्षों में कई मोड़ देखे हैं। सत्ता की होड़, गठबंधन की राजनीति, बगावत और वैचारिक संघर्ष ने राज्य को लगातार बदलते परिदृश्य का गवाह बनाया है। अब 2024 के चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य की सियासत किस ओर रुख करती है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की