सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में लगी भीषण आग ने प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत सामने ला दी है। इस हादसे में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई, जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया। स्वास्थ्य विभाग में फैले भ्रष्टाचार और लापरवाही की वजह से मासूमों की जान चली गई। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के बयानों से भी यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को खुद इलाज की सख्त जरूरत है।
फरवरी में हुआ फायर सेफ्टी ऑडिट, जून में हुई थी मॉक ड्रिल, फिर भी क्यों नहीं टला हादसा?
हादसे के तुरंत बाद मौके पर पहुंचे उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में फरवरी में फायर सेफ्टी ऑडिट हुआ था और जून में एक मॉक ड्रिल भी की गई थी। लेकिन आग कैसे लगी, इसका जवाब जांच रिपोर्ट आने के बाद ही दिया जा सकेगा। सवाल यह उठता है कि जब सभी सुरक्षा उपायों का पालन किया गया था, तो फिर इतनी बड़ी दुर्घटना कैसे हुई?
भ्रष्टाचार के खेल में कमीशन की चलती है भारी भरकम मांग
स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बिना 30 से 40 प्रतिशत कमीशन दिए किसी कंपनी को ठेका नहीं मिलता। ऐसे में अगर कंपनियां इतनी मोटी रकम रिश्वत के तौर पर देंगी, तो जाहिर है कि अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में घटिया गुणवत्ता के उपकरण ही लगाए जाएंगे। योगी आदित्यनाथ सरकार के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के दावों के बावजूद ये सब सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं।
स्वास्थ्य विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग में भारी भ्रष्टाचार
स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यहां ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी खेल चल रहा है। मुख्यमंत्री कार्यालय से आई फाइलों को भी डिप्टी सीएम के कार्यालय में नजरअंदाज कर दिया जाता है। खासकर पूर्व विधायक मुकेश श्रीवास्तव के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामलों के बावजूद उनका प्रभाव अभी भी स्वास्थ्य विभाग में बरकरार है। एनआरएचएम घोटाले से जुड़े होने के बावजूद वह मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (CMO) की ट्रांसफर-पोस्टिंग में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
ब्लैकलिस्टेड कंपनियों की आपूर्ति और घटिया उपकरण
मुकेश श्रीवास्तव की कंपनियां कई बार ब्लैकलिस्ट की जा चुकी हैं और उन पर एसआईटी जांच भी चल रही है। इसके बावजूद उनकी कंपनियों द्वारा करीब 15 जिलों में घटिया गुणवत्ता के चिकित्सा उपकरण सप्लाई किए जा रहे हैं। यह सब स्वास्थ्य मंत्री के साथ मिलीभगत के चलते संभव हो पाया है।
भाजपा विधायकों की नहीं होती सुनवाई, भ्रष्ट अधिकारियों का बोलबाला
स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक के कार्यालय में भाजपा विधायकों की भी कोई सुनवाई नहीं होती। विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजे गए पत्रों को स्वास्थ्य मंत्री द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है। दूसरी ओर, पूर्व विधायक मुकेश श्रीवास्तव जैसे लोगों की विभाग में खूब चलती है। इससे सरकार की छवि पर भी गहरा असर पड़ रहा है।
फायर अलार्म और फायर एक्सटिंग्विशर हुए बेकार साबित
एक प्रमुख न्यूज चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल कॉलेज में लगे फायर एक्सटिंग्विशर 2023 में ही एक्सपायर हो चुके थे। कई तो 2019 से ही खराब पड़े थे। आग के समय न तो फायर अलार्म बजा और न ही वार्ड में रखे सिलेंडर किसी काम के साबित हुए। इससे साफ है कि फायर सेफ्टी के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गई थी।
‘वर्ल्ड क्लास’ सुविधाओं का दावा निकला खोखला
झांसी मेडिकल कॉलेज में बनी NICU (नवजात गहन देखभाल इकाई) के लिए वर्ल्ड क्लास सुविधाओं का दावा किया गया था। कहा गया था कि यहां बीमार शिशुओं को आधुनिक चिकित्सा उपकरणों से लैस सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन इस हादसे ने उन तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी।
अधूरी परियोजनाओं का दिखावा कब तक?
सरकार द्वारा ‘वर्ल्ड क्लास’ इलाज के नाम पर दिखावटी ढांचे तैयार किए जाते हैं, लेकिन असल में इनमें कोई स्थायित्व और पारदर्शिता नहीं होती। झांसी के NICU वार्ड में भी यही स्थिति देखने को मिली। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संवेदनशील स्थानों पर प्रशिक्षित स्टाफ और उचित रख-रखाव के साथ वास्तविक सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
झांसी के मेडिकल कॉलेज में हुए हादसे ने न सिर्फ यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है, बल्कि भ्रष्टाचार और लापरवाही की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसे भी सामने ला दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन गंभीर आरोपों पर क्या कदम उठाते हैं और क्या इस भ्रष्ट सिस्टम में सुधार लाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई करते हैं या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।