कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद में स्थित विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में, सोशल मीडिया पर इस संस्थान का एक पुराना फतवा तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को बैंक में काम करने वाले कर्मचारियों या उनके बच्चों से विवाह नहीं करना चाहिए।
फतवे की पुष्टि और वजह
इस फतवे की सत्यता की पुष्टि करते हुए, मौलाना कारी इसहाक गोरा, जो देवबंदी आलिम और जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के संरक्षक हैं, ने बताया कि यह फतवा लगभग आठ साल पुराना है। मौलाना कारी इसहाक ने कहा कि यह फतवा इस्लामिक शरीयत के अनुसार सही है और आज भी मान्य है।
फतवे में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बैंक में काम करने वाले मुस्लिम युवक और महिलाएं जो तनख्वाह पाते हैं, वह ब्याज (सूद) से संबंधित होती है। इस्लामिक शरीयत के अनुसार, ब्याज का पैसा लेना-देना हराम माना गया है। मौलाना इसहाक ने कहा, “इस्लाम में सूदखोरी को गलत माना गया है। इसलिए, जो लोग बैंक में काम करते हैं या सूद से जुड़ी किसी भी गतिविधि में लिप्त हैं, उनसे शादी करने से बचना चाहिए।”
अन्य विवादित फतवे और उनके प्रभाव
गौरतलब है कि दारुल उलूम देवबंद पहले भी अपने कई विवादित फतवों की वजह से सुर्खियों में रहा है। इस साल जुलाई में, संस्थान ने अपने छात्रों के लिए एक और महत्वपूर्ण फतवा जारी किया था। इस फतवे में कहा गया था कि संस्थान में रहकर छात्रों को अंग्रेजी या अन्य किसी भी गैर-इस्लामिक विषय की पढ़ाई की अनुमति नहीं दी जाएगी। यदि कोई छात्र ऐसा करता पाया जाता है, तो उसे तुरंत संस्थान से निष्कासित कर दिया जाएगा।
इसके अलावा, लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले, दारुल उलूम ने एक और सख्त घोषणा की थी कि कोई भी राजनेता संस्थान का दौरा नहीं करेगा। न ही वहां के अधिकारी किसी राजनेता के साथ मुलाकात करेंगे या उनके साथ तस्वीरें खिंचवाएंगे।
दारुल उलूम देवबंद की स्थिति और मुस्लिम समुदाय पर असर
दारुल उलूम देवबंद के ये फतवे हमेशा से ही समाज में चर्चा का विषय रहे हैं। मुस्लिम समुदाय में इन फतवों का असर व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इस्लामिक सिद्धांतों और धार्मिक कानूनों के प्रति अपने कट्टर रुख के चलते, दारुल उलूम देवबंद ने कई बार समाज के विभिन्न वर्गों में तीखी प्रतिक्रियाएं भी उत्पन्न की हैं।
दारुल उलूम देवबंद का यह फतवा और अन्य विवादित निर्णय न केवल मुस्लिम समुदाय में बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं। जहां एक तरफ कुछ लोग इसे धार्मिक नियमों की पवित्रता बनाए रखने का प्रयास मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कई लोग इसे प्रगतिशीलता और आधुनिकता के खिलाफ एक कदम मानते हैं।
इस तरह के फतवे, विशेषकर चुनावी माहौल के दौरान, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बन जाते हैं और इनके दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। मुस्लिम समाज के लिए यह देखना महत्वपूर्ण है कि वे अपनी धार्मिक परंपराओं और आधुनिक जीवनशैली के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं।
इन फतवों के माध्यम से दारुल उलूम देवबंद ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इस्लामिक सिद्धांतों के पालन में कोई समझौता नहीं करेंगे, चाहे वह व्यक्तिगत जीवन हो या सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा।