ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार देर रात एक हृदयविदारक हादसा हुआ। मेडिकल कॉलेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में भीषण आग लग गई, जिसमें 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
यह हादसा देर रात हुआ जब NICU वार्ड में लगभग 54-55 नवजात शिशु भर्ती थे। प्रारंभिक जांच में आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है, लेकिन इतनी जल्दी आग कैसे फैली और बचाव कार्य क्यों नहीं हो पाया, इस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
37 बच्चों को बचाया गया, 10 की मौत, कई घायल
घटना के समय NICU में दो वार्ड थे। बाहर वाले वार्ड में भर्ती सभी बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया गया, जबकि अंदर के वार्ड में फंसे बच्चों में से 10 की मौत हो गई। इस वार्ड में 37 बच्चों को सफलतापूर्वक बचा लिया गया, लेकिन बाकी नवजातों को बचाने में विफलता हाथ लगी। हादसे के बाद से ही मेडिकल कॉलेज परिसर में मातम का माहौल है।
सीएम योगी ने मांगी रिपोर्ट, स्वास्थ्य मंत्री घटनास्थल पर पहुंचे
घटना के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए 12 घंटे के भीतर जांच रिपोर्ट तलब की है। वहीं, उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक स्थिति का जायजा लेने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे हैं। उनके साथ प्रमुख सचिव स्वास्थ्य भी हैं। स्वास्थ्य विभाग ने मामले की गहन जांच के लिए एक कमिटी का गठन कर दिया है।
बच्चों में संक्रमण फैलने की आशंका, लखनऊ भेजने की मांग
आग की चपेट में आने वाले नवजात शिशुओं में संक्रमण फैलने का खतरा बताया जा रहा है। अस्पताल में मौजूद तीमारदार और परिजन मांग कर रहे हैं कि झुलसे हुए बच्चों को बेहतर इलाज के लिए लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में भेजा जाए। अधिकारियों के मुताबिक, इस हादसे में लगभग 16 बच्चे घायल हुए हैं, जिनमें से कई की स्थिति गंभीर बनी हुई है।
समय पर आग पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका?
एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) एक अति प्राथमिकता वाला वार्ड होता है, जहां उच्च स्तर की सुरक्षा और सुविधा होनी चाहिए। इस हादसे ने अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सवाल उठ रहा है कि क्या वहां आग बुझाने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं थे?
घटना के समय कई तीमारदार वार्ड में मौजूद थे और उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर बच्चों को बाहर निकाला, लेकिन आग पर काबू पाने के प्रयास असफल रहे। फायर ब्रिगेड भी समय पर नहीं पहुंच पाई, जिससे आग और ज्यादा फैल गई।
मृत बच्चों की पहचान उजागर नहीं, परिजनों में आक्रोश
घटना के बाद मृत बच्चों की पहचान उजागर नहीं की गई है, जिससे परिजनों में आक्रोश है। देर रात तक अस्पताल परिसर में मातम और गुस्से का माहौल था। परिजन अपने बच्चों की खोजबीन में लगे थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनका बच्चा सुरक्षित है या नहीं। कई परिजन ऐसे भी थे जिन्होंने दूसरों के बच्चों को तो बचा लिया लेकिन अपने बच्चे की कोई जानकारी नहीं पा सके।
गरौठा के कृपाराम की दुर्दशा
इस हादसे ने कई परिवारों को गहरे दुख में डुबो दिया। गरौठा थाना क्षेत्र के कृपाराम की स्थिति बेहद दर्दनाक है। उनकी पत्नी शांति देवी की हाल ही में डिलीवरी हुई थी और उन्हें 10 दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डिलीवरी के बाद से ही शांति देवी लापता थीं और कृपाराम अपनी पत्नी को खोज ही रहे थे कि इस अग्निकांड ने दूसरी त्रासदी को जन्म दे दिया। अब कृपाराम के लिए यह दोहरी आपदा बन गई है—एक तरफ पत्नी का पता नहीं चल रहा और दूसरी तरफ नवजात की स्थिति अज्ञात है।
सवालों के घेरे में अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्थाएं
इस भीषण हादसे ने अस्पताल की सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है। आखिर कैसे मात्र पंद्रह मिनट में आग ने पूरे वार्ड को चपेट में ले लिया? क्या अस्पताल में आग बुझाने के पर्याप्त उपकरण नहीं थे? और अगर थे, तो उनका इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सका? ये तमाम सवाल अब जांच कमिटी के सामने हैं। घटना के पीछे की असल वजह क्या है, यह तो विस्तृत जांच के बाद ही सामने आ सकेगा।
इस हादसे ने झांसी ही नहीं, पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। अब सबकी निगाहें जांच कमिटी की रिपोर्ट और राज्य सरकार की आगे की कार्रवाई पर टिकी हैं।