चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
झांसी: महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नीकू वार्ड में शुक्रवार रात हुए भीषण अग्निकांड और दस बच्चों की दर्दनाक मौत की जांच के लिए शासन ने आदेश जारी करते हुए जांच कमेटी गठित कर दी है। उत्तर प्रदेश सरकार के चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने शनिवार को जांच आदेश जारी किए हैं। जांच कमेटी को 7 दिनों के भीतर जांच रिपोर्ट देने को कहा है।
इस हृदयविदारक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट को आग लगने का संभावित कारण बताया जा रहा है, लेकिन इस घटना ने सरकारी तंत्र की लापरवाही और चिकित्सा व्यवस्थाओं की खामियों को उजागर कर दिया है।
घटना की जांच में मुख्य रूप से इस बात लगाना है कि आग लगने का प्राथमिक कारण क्या रहा। क्या घटना में किसी प्रकार की लापरवाही हुई और इसका दोषी कौन है। भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए यह कमेटी शासन को अपनी सिफारिशें देगी।
विपक्ष का बीजेपी सरकार पर तीखा हमला
इस घटना के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने राज्य की योगी सरकार पर जमकर हमला बोला है। सपा महिला सभा की अध्यक्ष जूही सिंह ने इस घटना के लिए सीधे प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री से इस्तीफे की मांग कर दी है। गौरतलब है कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक के पास है।
जूही सिंह ने इस हादसे को “सरकार द्वारा अनहोनी की गई हत्या” करार देते हुए कहा कि स्वास्थ्य मंत्री की नाकामी के कारण ही यह दर्दनाक हादसा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि “झांसी मेडिकल कॉलेज में धुआं निकालने तक के इंतजाम नहीं थे। वहां कई ऑक्सीजन सिलेंडर भी आउटडेटेड थे। क्या सीएम योगी आदित्यनाथ को ये सब दिखाई नहीं देता? यह सरकार पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है।”
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिए जांच के आदेश
घटना की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत मामले का संज्ञान लिया और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक एवं प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को झांसी रवाना कर दिया। मुख्यमंत्री ने इस घटना की जांच के निर्देश भी दिए हैं। साथ ही सरकार ने प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी उठाए सवाल
कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने अस्पताल प्रशासन और राज्य सरकार की लापरवाही को हादसे का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, “अस्पताल में जिस तरह 10 मासूम बच्चों की जान गई है, वह अत्यंत हृदयविदारक है। अस्पताल में आग बुझाने के उपकरण और प्लांट की एक्सपायरी डेट कब की खत्म हो चुकी थी। यह सब जांच का विषय है।”
वहीं, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस आईसीयू वार्ड में यह हादसा हुआ, उसे कुछ महीनों पहले ही “वर्ल्ड क्लास” बताकर शुरू किया गया था, लेकिन यहीं पर ऐसी भयावह घटना हो गई। उन्होंने मांग की कि पीड़ित परिवारों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए।
जांच की मांग और प्रशासन पर सवाल
नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की। उन्होंने कहा, “इस हादसे में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को तुरंत बर्खास्त किया जाए और मामले की गहन जांच के लिए किसी रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में स्वतंत्र जांच कमेटी का गठन किया जाए।” साथ ही, उन्होंने अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर जोर दिया ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो।
क्या कहती है प्रारंभिक जांच?
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट्स के अनुसार, झांसी के मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू वार्ड में आग बुझाने वाले यंत्र 2020 से ही निष्क्रिय थे। इसके अलावा, वार्ड में धुएं को बाहर निकालने के लिए कोई उचित वेंटिलेशन सिस्टम भी नहीं था। इस लापरवाही के कारण आग तेजी से फैल गई, जिससे नवजात शिशुओं को बाहर निकालने का मौका नहीं मिल पाया।
जनता में आक्रोश, अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल
इस हृदयविदारक घटना से जनमानस में आक्रोश है। लोग अस्पतालों में बुनियादी सुरक्षा इंतजामों की कमी और सरकार की उदासीनता पर सवाल उठा रहे हैं। घटना ने राज्य सरकार और चिकित्सा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह दर्दनाक हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की लापरवाही और चिकित्सा व्यवस्थाओं की खामियों का स्पष्ट उदाहरण है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित जांच टीम इस घटना की तह तक पहुंचती है या नहीं, और दोषियों के खिलाफ क्या सख्त कदम उठाए जाते हैं।
इस हादसे से प्रशासन को सबक लेते हुए भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जनता और पीड़ित परिवार अब न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।