दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव, दोनों ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के नेतृत्व में सरकार चलाई है। हालांकि, इन दोनों नेताओं की सरकारों की प्राथमिकताएं और नीतियां अलग-अलग थीं, लेकिन उनके शासन काल के दौरान राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं। आइए, विस्तार से चर्चा करें कि इन दोनों शासन काल में उत्तर प्रदेश में आपराधिक मामलों की स्थिति कैसी रही।
मुलायम सिंह यादव का शासन काल
मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे:
1. दिसंबर 1989 – जून 1991
2. दिसंबर 1993 – जून 1995
3. सितंबर 2003 – मई 2007
आपराधिक मामलों का विश्लेषण
मुलायम सिंह के शासनकाल को अक्सर ‘जंगल राज’ के रूप में आलोचना का सामना करना पड़ा। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उस दौरान अपराधियों के हौसले बुलंद थे। अपहरण, फिरौती, हत्या, बलात्कार, और डकैती जैसे अपराधों में वृद्धि देखी गई। कई मामलों में सपा नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं पर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगे।
माफिया और गैंग्स का प्रभाव
मुलायम सिंह के कार्यकाल के दौरान अपराधियों और माफिया सरगनाओं का राजनीति में सीधा हस्तक्षेप बढ़ गया था। अपराधी नेताओं को पार्टी टिकट देकर चुनाव लड़वाया गया, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में माफिया तत्वों का बोलबाला बढ़ गया। उदाहरण के लिए, मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफिया डॉन को समाजवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त था।
प्रशासनिक ढिलाई
मुलायम सरकार पर अक्सर आरोप लगाया गया कि उसने प्रशासनिक ढांचे को कमजोर किया, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिली। पुलिस बल का राजनीतिकरण किया गया और कई बार देखा गया कि अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बजाय उन्हें संरक्षण दिया गया।
सांप्रदायिक हिंसा
मुलायम सिंह के कार्यकाल में सांप्रदायिक तनाव भी देखने को मिला। हालांकि, उन्होंने हमेशा खुद को ‘मुस्लिम हितैषी’ के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन कई बार उनकी सरकार पर आरोप लगे कि वह दंगों को रोकने में नाकाम रही।
अखिलेश यादव का शासन काल
अखिलेश यादव ने मार्च 2012 से मार्च 2017 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और खुद को एक प्रगतिशील नेता के रूप में प्रस्तुत किया।
कानून-व्यवस्था की चुनौतियाँ
अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान, उत्तर प्रदेश में अपराध के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई। 2012-2017 के बीच, उत्तर प्रदेश ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में उच्चतम अपराध दर वाले राज्यों में से एक के रूप में स्थान प्राप्त किया। विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध, लूट, हत्या, और अपहरण के मामलों में वृद्धि देखी गई।
बढ़ते अपराधी तत्व
अखिलेश सरकार पर भी अपने पिता मुलायम सिंह के शासन की तरह अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगे। उनके कार्यकाल में भी अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी जैसे माफिया सरगनाओं का प्रभाव बना रहा। हालांकि, अखिलेश ने अपने शासन की शुरुआत में ‘गुंडा राज’ खत्म करने का वादा किया था, लेकिन जमीनी हकीकत में स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ।
मुज़फ्फरनगर दंगे (2013)
अखिलेश के कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती मुज़फ्फरनगर दंगे थे, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग बेघर हो गए। इस घटना ने उनकी सरकार की कानून-व्यवस्था की अक्षमता को उजागर किया और सरकार पर सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव करने के आरोप लगे।
राजनीतिक हस्तक्षेप
अखिलेश यादव के समय भी पुलिस और प्रशासनिक तंत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप की शिकायतें आम थीं। पुलिस सुधारों की कोशिशें तो की गईं, लेकिन उनका असर सीमित रहा। इस कारण पुलिस बल की स्वतंत्रता पर सवाल उठे और अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई में कमी आई।
युवा और नई सोच की छवि
अखिलेश ने अपने शासन काल में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास की दिशा में कई कदम उठाए, जैसे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे और मेट्रो परियोजनाएं, लेकिन कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर उनकी सरकार की छवि कमजोर रही।
तुलनात्मक विश्लेषण: मुलायम बनाम अखिलेश
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव, दोनों के शासन काल में कानून-व्यवस्था एक प्रमुख मुद्दा रहा। मुलायम सिंह का शासन ‘जंगल राज’ के लिए कुख्यात था, जहां अपराधियों का बोलबाला था और कानून-व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई थी। वहीं, अखिलेश यादव ने विकास परियोजनाओं के माध्यम से एक नई छवि बनाने की कोशिश की, लेकिन वह भी अपराधों पर काबू पाने में असफल रहे।
इन दोनों ही नेताओं के शासन काल में उत्तर प्रदेश में आपराधिक मामलों की स्थिति में अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिला, जिसके कारण राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर समाजवादी पार्टी की सरकारें लगातार आलोचना का शिकार होती रहीं।