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November 22, 2024 7:30 am

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फंस गए अफजाल अंसारी, गांजा पर किए थे टीका टिप्पणी…

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अनिल अनूप

बाबाजी और उनकी जड़ी-बूटी का चर्चित किस्सा, जो आजकल सुर्ख़ियों में है, एक ऐसा मामला है जिसे हंसी-मज़ाक की हल्की परत में लपेटकर गंभीरता से देखने की आवश्यकता है। जब अफजाल अंसारी जैसे राजनेता, जिन्हें जनता ने एक जिम्मेदार प्रतिनिधि के रूप में चुना है, बाबा जी की जड़ी-बूटियों के चक्कर में फंस जाते हैं, तो यह न केवल उनके व्यक्तिगत निर्णयों पर सवाल खड़े करता है, बल्कि हमारे समाज की भी एक बड़ी विडंबना को उजागर करता है।

अब ऐसा नहीं है कि जड़ी-बूटी का चमत्कारी प्रभाव सिर्फ आजकल की खोज है। हमारे देश में आयुर्वेदिक चिकित्सा और जड़ी-बूटियों का प्रचलन सदियों से रहा है। लेकिन जैसे ही इस ज्ञान को ‘बाबाजी के आशीर्वाद’ के रूप में प्रचारित किया जाता है, स्थिति अचानक हास्यप्रद हो जाती है। यह वही बाबाजी हैं, जिनकी ‘जड़ी-बूटी’ न जाने कितने रोगों का इलाज कर चुकी है – प्यार में असफलता से लेकर राजनीति में पराजय तक। और अब, जब अफजाल अंसारी साहब भी इस जड़ी-बूटी की कृपा से लाभान्वित हो गए हैं, तो हम सबका सिर ठनकना स्वाभाविक है।

दरअसल, राजनीति का खेल ही कुछ ऐसा है कि इसमें आने वाले खिलाड़ी अक्सर ऐसे ‘बाहरी सहायता’ की तलाश में रहते हैं, जो उन्हें बिना मेहनत के सबकुछ दिला दे।

जड़ी-बूटी की आड़ में, ऐसी आशाओं का बाज़ार गरम रहता है। कोई बाबाजी का आशीर्वाद लेकर चुनाव जीतने का सपना देखता है, तो कोई आर्थिक संकट से उबरने का। परंतु जब यह जड़ी-बूटी अफजाल अंसारी जैसे वरिष्ठ नेताओं के जीवन में प्रवेश करती है, तो बात केवल हास्य का विषय नहीं रह जाती। यह दर्शाता है कि हमारी राजनीति कितनी हद तक चमत्कारों और अंधविश्वासों पर निर्भर हो चुकी है।

अब जरा सोचिए, जब अफजाल अंसारी ने बाबाजी की इस जड़ी-बूटी का सेवन किया होगा, तब उनके मन में क्या विचार आ रहे होंगे? क्या वह सोच रहे होंगे कि अचानक से सभी उनके खिलाफ होने वाले आरोप धुल जाएंगे? क्या उन्हें यकीन था कि यह जड़ी-बूटी उन्हें सत्ता में बनाए रखने का गुप्त हथियार साबित होगी? जो भी हो, परंतु एक बात तो साफ है कि उन्होंने अपने ऊपर हंसी का पात्र बनने का अवसर स्वयं ही चुना।

वैसे, यह सिर्फ अफजाल अंसारी की बात नहीं है। हमारे देश की राजनीति में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे, जहां नेता बाबाओं, तांत्रिकों, और जड़ी-बूटी वाले वैद्यों के पास जाते हैं, यह उम्मीद करते हुए कि इन ‘अलौकिक’ शक्तियों से उनकी राजनीतिक समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन जब यह सारी प्रक्रिया सार्वजनिक हो जाती है, तो यही नेता जनता की नज़रों में गिर जाते हैं। लोग यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जो व्यक्ति अपने निर्णय लेने के लिए बाबाजी के पास जा सकता है, वह कैसे एक जिम्मेदार नेता हो सकता है?

बाबाजी के इस जड़ी-बूटी प्रकरण में जो सबसे हास्यप्रद बात है, वह यह कि अफजाल अंसारी जैसे अनुभवी नेता भी इस जाल में फंस गए। यह कोई नई बात नहीं है कि बाबा लोग अपने अनुयायियों को विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों से इलाज का भरोसा दिलाते हैं। लेकिन जब यह इलाज राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है, तब न केवल नेता की बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो जाते हैं।

और क्या यह अजीब नहीं है कि जिन नेताओं को जनता अपने भविष्य के निर्माण का जिम्मा सौंपती है, वे खुद अपने भविष्य के लिए जड़ी-बूटी और चमत्कारों का सहारा लेते हैं? इसका सीधा मतलब यह है कि वे अपनी योग्यता और क्षमता पर उतना भरोसा नहीं करते, जितना किसी अज्ञात शक्ति या चमत्कारी तत्व पर करते हैं।

बाबाजी की जड़ी-बूटी के इस प्रकरण ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारी राजनीति सचमुच इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसे किसी चमत्कार की जरूरत पड़ती है? और अगर हां, तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या हमारे नेता? क्या हमारी जनता? या फिर वह माहौल जिसमें ऐसे चमत्कारी समाधानों को इतना महत्व दिया जाता है?

सवाल यह भी है कि क्या अफजाल अंसारी साहब अब बाबाजी की इस जड़ी-बूटी से होने वाले ‘चमत्कारी प्रभाव’ का इंतजार कर रहे हैं? क्या वह सोचते हैं कि एक दिन अचानक उनकी सारी परेशानियां इस जड़ी-बूटी के प्रभाव से गायब हो जाएंगी? या फिर यह केवल एक तात्कालिक उपाय था, जिसे उन्होंने शायद दबाव में अपनाया हो?

बाबाजी और उनके जैसे अन्य चमत्कारी चिकित्सक हमेशा से राजनीति के समीकरणों में एक विशेष स्थान रखते आए हैं। अफजाल अंसारी का मामला तो केवल एक उदाहरण है। लेकिन यह उदाहरण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सच में अपने नेतृत्व के चयन में सही दिशा में जा रहे हैं?

जड़ी-बूटी के इस चक्कर में केवल अफजाल अंसारी ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच भी कहीं न कहीं लटपटा रही है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि राजनीति में ऐसे चमत्कारिक समाधान नहीं होते। देश और समाज को आगे ले जाने के लिए केवल योग्यता, मेहनत और सच्चाई की आवश्यकता होती है, न कि बाबाजी की जड़ी-बूटी की।

तो अफजाल अंसारी जी, अगर आप इस जड़ी-बूटी के चमत्कारिक प्रभाव से कुछ बदलने की उम्मीद कर रहे हैं, तो शायद आपको वास्तविकता का सामना करने की आवश्यकता है। और हां, अगर आपको सचमुच किसी जड़ी-बूटी की आवश्यकता है, तो क्यों न वह जड़ी-बूटी हो जो आपको सही दिशा दिखाए, न कि भटकाए!

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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