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December 12, 2024 6:35 am

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कछुआ तस्करी की ये कहानी चौंकाती है ; यौनवर्धक दवाइयों से लेकर पढिए और क्या काम आता है यह दुर्लभ कछुआ? कैसे हो रही है इसकी तस्करी? 

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

प्रयागराजः घर में सुख-शांति और धन की कामना किसे नहीं होती, लेकिन इसकी कीमत किसी बेजुबान की जान हो तो बात समझ से परे है। वो भी तब, जबकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार न होकर केवल अंधविश्वास हो। धन, सुख-शांति, वास्तु से लेकर यौनवर्धक के तौर पर संरक्षित वन्य जीवों की तस्करी, भारत के संरक्षित वन्य जीवों के लिए बड़ा खतरा बन चुकी हैं और यूपी इन तस्करों का मुख्य अड्डा। इन जीवों की तस्करी में सोशल मीडिया और इंटरनेट विलेन की भूमिका निभा रहे हैं।

राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने प्रयागराज जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर चार से दो झोलों में रखे गये 10 कछुए बरामद कर उनकी तस्करी करने वाले दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। जीआरपी ने इसकी जानकारी दी। पुलिस अधीक्षक (जीआरपी) अभिषेक यादव ने बताया कि रेलवे पुलिस के कर्मी बृहस्पतिवार को प्रयागराज जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर गश्त कर रहे थे।

इसी बीच उन्हें दो संदिग्ध व्यक्ति दिखे, जिनसे पूछताछ पर उनके पास से दो झोले में से 10 कछुए बरामद किए गए। उन्होंने बताया कि आरोपियों की पहचान पदेश के अमेठी के रहने वाले गुड्डू कंजड़ एवं आकाश कंजड़ के रूप में हुई है। इन्हें गिरफ्तार कर वन दारोगा शिवदत्त और कपिलदेव को सौंप दिया गया। क्षेत्रीय वन दरोगा कपिलदेव ने बताया कि पूछताछ अभियुक्तों ने बताया कि इन्हें सुल्तानपुर में एक व्यक्ति ने ये कछुए सौंपे और बिहार के भागलपुर पहुंचाने को कहा था। इस काम के एवज में उनलोगों को 1500-1500 रुपये दिए गए।

प्रयागराज के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) अरविंद यादव ने बताया कि ये इंडियन सॉफ्टशेल प्रजाति के कछुए हैं जो अनुसूची एक में शामिल हैं और स्वच्छ पानी वाले जलाशयों में पाए जाते हैं। यादव ने बताया कि इन कछुओं को अदालत में साक्ष्य के तौर पर पेश करने के बाद प्रयागराज में साफ पानी वाले जलाशयों में छोड़ दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि वन्यजीव संबंधित अपराधों के अधिनियम की सुसंगत धाराओं में इन अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।

बरामद कछुओं को स्पोडिड पोंड टर्टल या रेड सेंड टर्टल के नाम से जाना जाता है। ये कछुए जियोटलिनिस जीनस प्रजाति के हैं।

एशिया भर में अवैध पालतू व्यापार को बढ़ावा देने वाले आपराधिक नेटवर्क द्वारा हर साल हज़ारों की संख्या में असुरक्षित भारतीय स्टार कछुए की तस्करी की जाती है। वन्यजीव न्याय आयोग और मॉनिटर कंज़र्वेशन रिसर्च सोसाइटी (मॉनीटर) द्वारा सह-लिखित हाल ही में प्रकाशित शोधपत्र में हमारे ऑपरेशन ड्रैगन के डेटा का उपयोग करके आपराधिक तरीकों और इसे बचाने के लिए आवश्यक प्रयासों को उजागर किया गया है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश में कछुओं की तस्करी की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। विशेषकर प्रयागराज में दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया, जो अवैध रूप से कछुओं को तस्करी करने की कोशिश कर रहे थे। कछुओं की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ी है, जहां उन्हें पालतू जानवरों के रूप में रखा जाता है या उनके अंगों का उपयोग औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह समस्या केवल स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक तस्करी नेटवर्क का हिस्सा है, जो तटीय और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों से संचालित होता है।

उत्तर प्रदेश में कछुआ तस्करी बढ़ती हुई समस्या है, जिसमें कई आपराधिक नेटवर्क शामिल हैं। ये तस्करी अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए की जाती है, जहां कछुओं की मांग अधिक है, विशेष रूप से पालतू जानवरों के रूप में और औषधीय उपयोग के लिए। पुलिस और वन्यजीव सुरक्षा एजेंसियों द्वारा लगातार निगरानी के बावजूद, तस्कर नए रास्तों और तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। हाल के समय में कई गिरफ्तारियां हुई हैं, जैसे प्रयागराज में रेलवे स्टेशन पर, जहां तस्करों को कछुओं की खेप के साथ पकड़ा गया।

ये कछुए सामान्यतः दक्षिण भारत की नदियों में पाए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के इटावा के आसपास चंबल के करीब खेतों में भी ये कछुए बहुतायत मात्रा में मिलते हैं। इस इलाके में चंबल, यमुना, सिंधु, क्वारी और पहुज जैसी अहम नदियों के अलावा छोटी नदियों और तालाबों में कछुओं की भरमार है। यहीं से इनकी तस्करी दुनिया भर में हो रही है। एसटीएफ द्वारा बरामद किए गए कछुए भी इटावा की बसेहर रेंज से तस्करी कर लाए गए थे, जिन्हें पश्चिम बंगाल भेजा जाना था। वहां से इन कछुओं को मेलिशाय, चीन, थाईलैंड, बैंकॉक समेत कई देशों में ऊंची कीमत पर तस्करी कर बेचा जाता है। आइये जानते हैं इन बेहद खूबसूरत और संरक्षित कछुओं की तस्करी का क्या उद्देश्य है।

सुख समृद्धि के लिए

आपने बहुत से घरों, दुकान या अन्य प्रतिष्ठानों में छोटे से पानी के पात्र में चांदी या मार्बल का बना कछुआ रखा देखा होगा। इन्हें वास्तुशास्त्रियों की सलाह पर वास्तु दोष दूर करने और सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है। इसकी जगह अब भारत समेत दुनिया के कई देशों में लोग घरों की खूबसूरती बढ़ाने और वास्तु दोष दूर करने के लिए कांच के बर्तन में असली कछुओं को पालने लगे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि घर में कछुआ रखने से धन यानि लक्ष्मी आती है। इस तरह की भ्रांतियां इन संरक्षितों जीवों की जान पर खतरा साबित हो रही हैं।

यौनवर्धक के तौर पर

वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था के डॉ. राजीव चौहान बताते हैं कि विदेशों में इन कछुओं की कीमत काफी ज्यादा होती है। भारत के कुछ राज्यों और कई देशों में इन कछुओं का इस्तेमाल यौनवर्धक के तौर पर भी होता है। इस वजह से इनकी मांग और बढ़ जाती है।

मांस खाने के लिए

पूर्वोत्तर भारत समेत कुछ राज्यों में कछुए का मांस खाने का भी चलन है, जो कि प्रतिबंधित है। लिहाजा गैरकानूनी तरीके से मांस के लिए भी इनकी बिक्री होती है। भारत समेत एशिया के लगभग सभी देशों में कछुए का मांस खाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कछुए का मांस बहुत गुणकारी होता है। हालांकि, इसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

1979 में इन कछुओं को बचाने की शुरू हुई थी पहल

सरकार ने वर्ष 1979 में लुप्त प्राय इन कछुओं को संरक्षित घोषित कर इन्हें बचाने की मुहिम शुरू की ती। इसके लिए चंबल नदी के तकरीबन 425 किलोमीटर में फैले तट से सटे हुए इलाके को राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य घोषित किया गया था। इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में पाए जाने वाले घड़ियाल, कछुओं और गंगा में पाई जाने वाली राष्ट्रीय जल जीव डॉल्फिन का संरक्षण करना था। इस संरक्षित अभ्यारण्य का क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश व राजस्थान तक फैला हुआ है। इसमें से करीब 635 किलोमीटर का हिस्सा उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा जिले में आता है। इसी वजह से इटावा इन कछुओं की अंतरराष्ट्रीय तस्करी का गढ़ बन चुका है।

चंबल किनारे के क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित करने के बाद वर्ष 1980 से अब तक 38 वर्षों में इटावा क्षेत्र से ही यूपी पुलिस, एसटीएफ व वन्य विभाग समेत अन्य एजेंसियां ने 100 से ज्यादा वन्य जीव तस्कर गिरफ्तार किए हैं। इनके पास से कुल लगभग एक लाख संरक्षित कछुए बरामद किए जा चुके हैं। शुरूआत में एजेंसियां को न तो इन जीवों की तस्करी की जानकारी थी और न ही उनके पास इन तस्करों से निपटने के लिए पर्याप्त संशाधन और सूचनाएं थीं। पिछले वर्षों में एजेंसियों ने तस्करों पर काफी हद तक शिकंजा कसा है। बावजूद यहां वन्य जीवों की तस्करी बदस्तूर जारी है।

तस्करों को प्रत्येक कछुए के लिए 50-250 रुपये तक मिलते हैं। पश्चिम बंगाल में ये कछुए 500 से 1000 रुपये तक में बिकते हैं। विदेश में इनकी कीमत हजारों या कई बार लाखों रुपये हो जाती है। ये कछुए की प्रजाति और आयु आदि पर निर्भर करता है। जिंदा कछुओं की कीमत सबसे ज्यादा होती है, क्योंकि उनका खोल (कवच) और मांस ताजा मिलता है।

इस तरह से होती है तस्करी

इन कछुओं को पश्चिम बंगाल ले जाकर वहां से अवैध तरीके से बांग्लादेश पहुंचाया जाता है। इसके बाद ये कछुए चीन, हांगकांग, मलेशिया, थाईलैंड आदि देशों में सप्लाई किए जाते हैं। इन देशों में कछुए का मांस, सूप और चिप्स काफी पसंद किया जाता है। साथ ही इसके कवच से यौनवर्धक दवाएं और ड्रग्स बनाई जाती है। कछुओं के खोल से तरह-तरह का सजावटी सामान, आभूषण, चश्मों के फ्रेम आदि भी बनाए जा रहे हैं। इंडियन स्टार टॉर्ट्स को तस्करी कर भारत से अमेरिका के फ्लोरिडा या नेवादा या यूके के हैंपशायर तक भेजा जाता है। सी-कुकुंबर को म्यांमार भेजा जाता है और भारतीय तोते को ऑस्ट्रेलिया तक तस्करी कर भेजा जाता है। बैंकॉक पालतू जीव-जंतूओं के लिए सबसे बड़ा बाजार है।

चीन में सालाना 73 हजार कछुए मारे जाते हैं

टॉरट्वाइज इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले चीन में कछुओं की खोल (कवच) से जेली बनाने के लिए प्रति वर्ष 73 हजार कछुए मारे जाते हैं। इस मांग को पूरा करने के लिए चीन कई देशों से कानूनी या गैरकानूनी तरीके से कछुए मंगाता है। इसके अलावा चीन के लोग कई तरह के पूचा-पाठ और भविष्यवाणी के लिए लंबे अरसे से कछुओं की खाल का इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन में कछुए की खाल से भविष्य बताने की कला को किबोकू कहा जाता है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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