अनिल अनूप के साथ ठाकुर बख्श सिंह की एक यात्रा वृत्तांत
“मन तड़पत हरि दर्शन को आज…’, मौसी के कानों में जब भी इस गाने के बोल पड़ते थे, उनका स्थायी सवाल होता, ‘को गा रहा है?’ जवाब में मोहम्मद रफी का नाम बताते ही कह उठतीं, ‘ई गावै-बजावै वाले तर जइहैं’।
इस अमर गीत को संगीत में पिरोने वाले नौशाद लखनऊ में ही जन्मे, पले थे। लाटूश रोड पर आज भी वह दुकान आबाद है, जहां से निकल कर नौशाद ने पूरी दुनिया में अपने फन का डंका बजाया।
यहां की हवाओं में नेह भरा आमंत्रण है। फिजा में संगीत की सुमधुर स्वर लहरियां सुनाई देती हैं। यह दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में से एक है, जो गोमती नदी के दोनों किनारों पर आबाद है। लखनऊ की शाम तो विश्वप्रसिद्ध है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाबों का शहर कहा जाता है। अदब के इस शहर में आप हमेशा के लिए यहां के बारे में सोचते रहेंगे। नाख़ून को नज़ाकत और नफ़ासत का शहर भी कहते हैं। यहां के खाने के साथ आप ‘पहले आप’ ‘पहले आप’ के मुरीद बने रहेंगे।
तहजीबों के इस शहर का रहना-सहन, पहनावा और स्वाद सब कुछ काफी अच्छा है। ये यहां के लोगों को देश-दुनिया की अलग-अलग विचारधारा से अलग करता है।
हालाँकि आधुनिक समय और तारीख के साथ काफी कुछ बदला है, लेकिन यह शहर आज भी अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति और विरासत को बड़ी नजाकत के साथ बरकरार रखता है।
यहां चिकन की रोटी, जरी-जरदोजी और अवधी-नवाबी खाना आप कभी नहीं भूलेंगे। यहां की बिरयानी, कबाब और नॉनवेज की महक आपके मुंह में पानी लाजमी ला देगी अगर आप मांसाहारी हैं।
लखनऊ और इसके आसपास का पूरा शहर अवध नाम से जाना जाता है। बताया गया है कि इसका प्राचीन नाम लक्ष्मणपुर था। आदर्श भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इसे बसाया था। अयोध्या यहां से पास ही है और भगवान राम ने आविष्य नदी के किनारे का यह क्षेत्र अपने भाई लक्ष्मण को दिया था। इस नगर को बाद में लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से भी जाना जाने लगा, जो धीरे-धीरे बदलकर लखनऊ हो गया।
लखनऊ को ग्रैंड आर्किटेक्चर का शहर भी कह सकते हैं। यहां के नवाबों ने कई खूबसूरत स्तम्भ बनवाये। इन आर्किटेक्चर के आर्किटेक्चर को देखकर आप आज भी इसे देखने के लिए तैयार नहीं होंगे।
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बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, मोती महल और राजशाही यहां की भव्यता की कहानी है। अब यहां लोग कॉल पार्क देखने भी दुनिया भर से आते हैं। आम के बागों के लिए मशहूर लखनऊ को बागों का शहर भी कहते हैं।
अगर आप यहां ट्रेन से आएं तो यहां के चारबाग रेलवे स्टेशन की वास्तुकला को देखकर ही मोहित हो जाएं।
राजस्थानी मुगल एवं शैली से निर्मित इस स्टेशन की भव्यता किसी महल से कम नहीं है। यहां से निकल कर आप इस नवाबों के शहर में घूम सकते हैं।
खरीदारी के लिए आप यहां के गंज या चौधरी गंज बाजार में जा सकते हैं। ये लखनऊ के सबसे प्रमुख बाज़ार हैं। शाम को यहां की चमक-धमक और राजघराने अलग ही रहते हैं। लखनऊ आने के बाद आपका यहां आना जरूर बनता है।
हर बात में अलहदा
हजरतगंज का एक चक्कर लगा लीजिए, तो चोला मस्त हो जाएगा। लखनऊ के नवाब जहां अपनी नजाकत, नफासत के साथ ही स्थापत्य के लिए जाने गए, वहीं अंग्रेजों ने भी इल्म का परचम फहराने में पूरा जोर लगा दिया।
बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा हो या भूलभुलैया या घंटाघर, नवाबी दौर की तमाम इमारतें अब भी तनकर खड़ी पर्यटकों को आमंत्रण देती दिखती हैं।
लखनऊ की गलियों के तो क्या कहने, कंघी वाली गली से लेकर बताशे वाली गली तक यहां मौजूद है। यूं भी कह सकते हैं कि वह कौन-सी गली है, जो लखनऊ में मौजूद नहीं। जी हां, चोर वाली गली भी है यहां।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के उद्घोष ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ की प्रेरणा आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व मुंशी नवलकिशोर द्वारा लखनऊ की सरजमीं से की गई घोषणा ‘आजादी हमारा पैदाइशी हक है’ से उपजी थी।
लखनऊ से ही सूफी फकीर हजरत मोइनुदीन चिश्ती, हजरत निजामुद्दीन की पुस्तकों के प्रकाशन का श्री गणेश हुआ। लखनऊ की पृष्ठभूमि रजत पट को भी खासी भाती रही।
अपने दौर की चर्चित और यादगार फिल्मों की शूटिंग और प्रेरणा यहीं हुई और यहीं के लेखकों-कलाकारों ने उन्हें समृद्ध किया।
यहां का नॉनवेज भोजन दुनियाभर में मशहूर है। यहां तक कि नॉनवेज वाले चेहरा पढ़ना भी जानते हैं। एक वाकया है।
एक होटल में मैंने रोस्टेड चिकन की डिमांड की। उसने पहले तो मुझे घूरकर देखा, फिर बड़ी नजाकत के साथ कहा,‘अमां मियां, चेहरे से तो आप गोश्तखोर लगते नहीं।’
ऐसा नहीं कि लखनऊ फकत नॉनवेज का शहर है, यहां की चाट भी ऐसी है कि बस चाटते ही रहो। लखनऊ शायद अकेला ऐसा शहर है, जहां के हींगयुक्त समोसे इसका जायका बढ़ा देते हैं।
यह एक प्रयोगधर्मी शहर है। मिष्ठान के नित नूतन अन्वेषण होते रहते हैं यहां। किस्सा है कि नवाब वाजिद अली शाह को जर्दायुक्त पान की जबर्दस्त लत लग गई थी। हकीमों ने भी उन्हें इस लत से बाज आने को कहा, पर वह न माने। आखिर हलवाई राम आसरे को बुलवाया गया और ऐसी मिठाई तजवीजने(तलाशने) को कहा गया, जो सेहत को नुकसान भी न पहुंचाए और पान का मजा भी दे। कुछ यूं ही आविष्कार हुआ यहां मलाई गिलौरी का।
पहले आप की संस्कृति
मिजाज में नजाकत और अंदाज में नफासत। लखनवी की नजाकत का जिक्र अक्सर किसी नामालूम शायर के इस शेर से होता है, अल्लाह रे नाज़ुकी, ये चमेली का एक फूल/सिर पर जो रख दिया तो कमर तक लचक गई। नफासत का नमूना यहां की ‘पहले आप’ वाली संस्कृति है, जो दुनियाभर में मशहूर है।इसीलिए तो कहते हैं, हम फिदा-ए-लखनऊ, है किसमें हिम्मत जो छुड़ाए लखनऊ…!
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."