सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
हाल के समय में देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिनमें से कुछ ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि महाराष्ट्र के बदलापुर में दो नाबालिग़ों के साथ यौन शोषण और अकोला में स्कूली छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की खबरें सामने आईं। इन घटनाओं से आक्रोशित आम जनता ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया और दोषियों के लिए कड़ी सजा, यहां तक कि फांसी की मांग की।
इन घटनाओं के बीच, बुधवार को एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट सामने आई जिसने देश की राजनीति में एक और गंभीर समस्या को उजागर किया। रिपोर्ट के अनुसार, 151 मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं। 300 पन्नों की इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कितने सांसदों और विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध, बलात्कार जैसे गंभीर आरोप लगे हैं, और वे किस राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं।
इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए ADR और नेशनल इलेक्शन वॉच ने 4,809 मौजूदा सांसदों और विधायकों में से 4,693 के चुनाव आयोग को सौंपे गए हलफ़नामों का अध्ययन किया है। इन हलफ़नामों से विधायकों और सांसदों ने अपने खिलाफ दर्ज अपराधों की जानकारी दी है। यह जानकारी 2019 से 2024 के बीच हुए उप-चुनावों समेत सभी चुनावों के दौरान दर्ज किए गए हलफ़नामों से जुटाई गई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि महिला उत्पीड़न से जुड़े जिन अपराधों की बात की गई है, उनमें एसिड अटैक, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, महिला पर हमला, वेश्यावृत्ति के लिए नाबालिग़ लड़कियों को खरीदना और बेचना, घरेलू हिंसा, जबरन शादी, और दहेज हत्या शामिल हैं।
151 विधायकों और सांसदों में से 16 सांसद और 135 विधायक शामिल हैं, जिन पर महिला उत्पीड़न के गंभीर आरोप दर्ज हैं। इनमें सबसे ज्यादा 54 प्रतिनिधि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हैं। इसके बाद कांग्रेस के 23, तेलुगु देशम पार्टी के 17, आम आदमी पार्टी के 13, और तृणमूल कांग्रेस के 10 प्रतिनिधि हैं।
राज्यवार देखा जाए तो पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा जन प्रतिनिधियों पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के आरोप लगे हैं। वहीं, 16 जनप्रतिनिधियों पर बलात्कार के मामले दर्ज हैं, जिनमें 2 सांसद और 14 विधायक शामिल हैं। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि ऐसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ गंभीर आरोप होने के बावजूद उन्हें टिकट देना सभी राजनीतिक दलों का पाखंड है। उनका कहना है कि राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है, और इससे महिलाओं की सुरक्षा और न्याय की उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं।
इस रिपोर्ट ने देश की राजनीति में एक गंभीर सवाल खड़ा किया है—जब कानून बनाने वाले खुद अपराधी हों, तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए? महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के बीच, यह रिपोर्ट राजनीतिक दलों की दोहरी नीति और उनकी जिम्मेदारी को लेकर एक गंभीर विमर्श की आवश्यकता पर जोर देती है।
Author: samachar
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