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November 24, 2024 3:35 pm

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गुलज़ार….शब्दों का जादूगर जिनके सफर में कई पड़ाव आए लेकिन जो हासिल किया वो लाजवाब रहा

29 पाठकों ने अब तक पढा

मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

‘दांत से रेशमी डोर कटती नहीं, दिल तो बच्चा है जी’… 90 साल की उम्र में भी ऐसी लाइन लिखने वाले गुलज़ार ही हो सकते हैं। जिनके हर गाने में रूमानी अहसास होता है। गुलज़ार को शब्दों का जादूगर भी कहा जाता है, जिनके लिखे गाने होठों के रास्ते न जाने कब दिल की गहराइयों में उतर जाते हैं, पता ही नहीं चल सकता। 

गुलजार का असली नाम

18 अगस्त 1934 को पंजाब (अब पाकिस्तान) में झेलम जिले के दीना गांव में पैदा हुए गुलज़ार ने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें किस्मत बंबई (अब मुंबई) लेकर आएगी। लेकिन, ‘किस्मत का कनेक्शन’ ऐसा रहा कि उन्होंने बॉलीवुड में बड़ा नाम कमाया। हॉलीवुड तक उनकी क़लम की गूंज सुनाई देती है। तो आइए झांकते हैं संपूरण सिंह कालरा से गुलज़ार बनने वाले की जिंदगी में!

मशहूर कवि, लेखक, गीतकार और स्क्रीन राइटर गुलज़ार किसी पहचान के मोहताज़ नहीं हैं। 1947 में बंटवारे के बाद गुलज़ार का परिवार भारत आ गया।

परिवार ने अमृतसर में आशियाना बनाया। उनके पिता का नाम माखन सिंह कालरा और मां का नाम सुजान कौर था। 

जब गुलजार छोटे थे तभी उनकी मां दुनिया से रुखसत हो गईं। उनके हिस्से में पिता का प्यार भी नहीं आया। 

बचपन से लिखने-पढ़ने का शौक था तो संपूरण सिंह ने अपने खालीपन को शब्दों से भरना शुरू कर दिया। एक वक्त आया, जब गुलज़ार ने सपनों की नगरी मुंबई का रुख किया और यहीं के होकर रह गए।

कई मीडिया रिपोर्ट्स में गुलज़ार के मुंबई में आने और संघर्षों का ज़िक्र है। कहा तो यहां तक जाता है कि मुंबई आने के बाद गुलज़ार ने गैराज में काम करना शुरू किया। खाली समय में कविताएं लिखने में जुट जाते थे। 

उनके फिल्मी करियर की शुरुआत 1961 में विमल रॉय के असिस्टेंट के रूप में हुई। गुलज़ार ने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के साथ भी काम किया था। इसी बीच उन्हें ‘बंदिनी’ फिल्म में गीत (लिरिक्स) लिखने का मौका मिला। इसके बाद गुलज़ार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

संपूरण सिंह कालरा के गुलज़ार बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले संपूरण सिंह कालरा ने अपना नाम ‘गुलज़ार दीनवी’ कर लिया था। 

उनका परिवार दीना गांव (अब पाकिस्तान) से था। उन्होंने अपने नए नाम गुलज़ार में ‘दीनवी’ भी जोड़ लिया। वक्त गुज़रा तो उन्होंने अपने नाम से ‘दीनवी’ को विदाई दे दी और सिर्फ गुलज़ार होकर रह गए। गुलज़ार का मतलब होता है, जहां गुलाबों या फूलों (गुलों) का बगीचा हो। 

हकीकत में गुलज़ार ने अपने नाम के मतलब के लिहाज से हर गीत लिखे, जिसमें शब्दों की बेइंतहा खुशबू शामिल रहती है।

अपने शब्दों को बिंब का जामा पहनाने वाले गुलज़ार को लोग नए शायरों के लिए किसी उपमा की तरह प्रयोग करते हैं। 

गुलज़ार फ़िल्मी लेखन का माइलस्टोन हैं। हर नया लिखने वाला गुलज़ार की तरह लिखना चाहता है, फ़िल्में बनाना चाहता है, सोचना चाहता है, बल्कि वैसी ही नज़्में भी पढ़ना चाहता है। गुलज़ार ने अमृता प्रीतम की कई नज़्में अपनी आवाज़ में पढ़ी हैं। वही अमृता जिन्होंने गुलज़ार के लिए कहा था कि – 

“गुलज़ार एक बहुत प्यारे शायर हैं, जो अक्षरों के अंतराल में बसी हुई ख़ामोशी की अज़मत को जानते हैं… उन्होंने इसे इतना पहचाना है कि उसकी बात अक्षरों में ढालते हुए उन्होंने उस ख़ामोशी की अज़मत रख ली है, जो एहसास में उतरना जानती है पर होटों पर आना नहीं जानती।” 

गुलज़ार ने ख़ामोशी को शब्द दिए हैं, वक़्त के बहते पानी पर निशान छोड़ा है, हवाओं में हाथ घुमाकर कल्पनाएं बुनी हैं और अपनी मेज़ से लाखों-करोड़ों लोगों के दिल तक उसे पहुंचाया है। उस कोने तक जहां वे ख़ुद ख़ामोशी के साथ बैठकर अपने आप को महसूस कर सकें। 

गुलज़ार की कल्पनाशीलता वाकई अलग और कमाल है। वो यार मिसाल-ए-ओस चले कि माशूक की चाल को इससे सुंदर और क्या कहा जा सकेगा, फिर पानी पानी रे खारे पानी रे नैनो में भर जा नींदें खाली कर जा, मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, यारा सीली-सीली बिरहा की रात का जलना, कितने गीत गिनवाए जा सकते हैं गुलज़ार की प्रशंसा में कि शब्द ख़त्म हो जाएंगे लेकिन गीत नहीं।

कितना अजीब है न कि कोई किसी लेखक की तारीफ़ के लिए कुछ शब्द कहे, उस लेखक के लिए जो अपने शब्दों से ही लोगों का दिल जीत लेता है। 

गुलज़ार साहब का जन्मदिन है, शुभकामना के लिए शब्द ख़ाली हो चुके हैं। बस एक आशा कि उनके पास से और ऐसे तमाम गीत निकलेंगे जिन पर मुग्ध होकर कोई आने वाली सदी का गुलज़ार बनना चाहेगा। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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