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November 1, 2024 4:54 pm

कल्याण कला मंच की मासिक “कला कवि गोष्ठी”

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सुरेंद्र मिन्हास की रिपोर्ट

चान्दपुर:- कल्याण कला मंच की मासिक कला कवि गोष्ठी नगर के साथ लगते लुहणू के बी पी एस सभागार में संपन्न हुई ।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कविता सिसोदिया ने की जबकि सुख राम आजाद और रविंदर भट्टा जी वीशिस्ट अतिथि के रुप में विराजमान रहे ।महासचिव तृप्ता देवी कौर मुसाफिर ने मन्च संचालन करते हुए सबसे पहले किशोरी आशा कुमारी को पुकारा जिसने अपनी रचना में घर और मकान भेद उधेड़ के रख दिया ।

इसके पश्चात दनोह के रविंदर शर्मा ने ‘ इन्सान की खुदगर्जी से प्रकृति में मचा हडकंप है ‘, कर्मवीर कंडेरा ने ‘ यही सोच हैरान हूं पल में दुनियां कैसे बदल जाती है ‘, संयोजक अमरनाथ धीमान ने ‘ ‘ चटपटे म्हारी जिभा रे स्वाद,कोई अट्ठौं पहर मरेलां मारे ‘, शिवनाथ सहगल ने ‘ किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार,’ हुसैन अली नें ‘ चढती रही हांड़ीयां खीर की बुतों पर इधर इक गरीब भूख से मर गया,,’ नैना देवी के परमजीत कहलूरी ने ‘ अब विश्वगूरू भारत ये बात चलनी चाहिये,’ रौडा के सुशील पुन्डीर परिंदा ने प्रकृति ने ऐसा खेल खेला ऐसी त्रासदी कभी देखी ना थी, श्याम सुन्दर ने,’ दिल तड़पता है मेरा जमाने से-आ भी जाओ किसी बहाने से,’ दिव्यांग तेज राम सहगल ने ,’ जिन्दगी की माला के मोती हैं लम्हें-दुख में याद आते है कुच्छ गुजरे लम्हे ।

तत्पश्चात् जीत राम सुमन नें,” हुई बित्ती ए गल्लां दुखडा किसी नी सुनणा, रामपाल डोगरा नें ये अश्क जब तक बह नहीं पाएगे,’ कुमारी पूजा ने,” ओ मेरेआ दिलडूआ हो उजडी रेआ दिलडूआ ओ, आयोजक चन्दर शेखर पन्त ने,” कायनात साए जुडी भला क्युं-कुच्छ तो मानो माता पिता को, लखनपुर के नरेंदर दत्त शर्मा ने हार्मोनियम के साथ चल मेरी जिन्दे नवीं दुनिया बसाणी और गंगीयां, रविंदर कमल चंदेल ने-क्या यही है मेरा अस्तित्व, राकेश मन्हास ने नफरत का बाज़ार ना बन-फूल खिला तलवार ना बन, मंच संचालक तृप्ता कौर मुसाफिर ने-तुम्हें बसाया है जिस्मो जांन में तुम हो दिल के अरमान में, प्रधान सुरेन्द्र मिन्हास ने-प्यारे न्याणेओं आवा घरें रज्जी ने कमावा- बमारिया समारिया च स्याणेआं जो दवा दारु ल्यावा, रविंदर कुमार भट्टा ने- जिन्दगी का सफर लिख दिया अमर ने, सुख राम आजाद ने ना रए से तीज तयहार-हाय ओ मेरिये दसे हुण किस किस ते पुछुं, और अन्त में कवि सम्मेलन की अध्यक्ष कविता सिसोदिया ने कार्यक्रम को सफल बताते हुए अपनी रचना यूं सुनाई- पहाड मकानों को समेटती आगोश में-ऐसी धुंद में छिप जाने को दिल करता है। 

कवि गोष्ठी में आये तीस से अधिक कलाकारों का अमरनाथ धीमान ने धन्यवाद और शुक्रिया किया ।।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."