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November 22, 2024 5:29 pm

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केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच टकराव: राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में हाल के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने राजनीतिक हलचल को और बढ़ा दिया है। बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत हासिल करने में विफलता प्राप्त की है, और इस विफलता में उत्तर प्रदेश की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

पहले के समय में उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वर्चस्व रहा था, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दूसरी पंक्ति में स्थान मिल गया। समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से अधिक सीटें जीती हैं। इसके परिणामस्वरूप बीजेपी में समीक्षा और चिंतन का दौर शुरू हुआ है, और इसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आलोचनाओं के केंद्र में आ गए हैं।

लोकसभा चुनाव के परिणामों ने बीजेपी की ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) वोटरों को लेकर चिंता बढ़ा दी है। ओबीसी और दलित मतदाता, जो पहले बीजेपी के साथ थे, अब पार्टी से दूर हो गए हैं। 

इस बीच, उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है। मौर्य की एक चिट्ठी हाल ही में वायरल हुई है, जिसमें उन्होंने कार्मिक विभाग से जानकारी मांगी है कि संविदा और आउटसोर्सिंग के तहत भर्ती किए जा रहे कर्मचारियों में किस प्रकार आरक्षण लागू किया जा रहा है। यह विभाग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है, और माना जा रहा है कि मौर्य ने इस चिट्ठी के जरिए मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है।

यूपी के सूचना विभाग ने मौर्य के सवाल के जवाब में आंकड़े जारी किए हैं, जिनके अनुसार 512 आउटसोर्स्ड कर्मचारियों में से 75 प्रतिशत यानी 340 ओबीसी वर्ग के हैं। इसके बाद, मौर्य के कार्यालय में विरोधी खेमे के नेताओं की भीड़ लग गई है, जिसमें विधायक, मंत्री, सांसद और पूर्व सांसद शामिल हैं। बीजेपी के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद भी मौर्य से मिले हैं, इसके अतिरिक्त दारा सिंह चौहान ने भी मौर्य से मुलाकात की है।

इसके जवाब में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने खेमे के ओबीसी नेताओं से मिल रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने पिछड़ा वर्ग मंत्री नरेंद्र कश्यप, राज्य मंत्री रामकेश निषाद और रानीगंज के विधायक राकेश कुमार वर्मा से मुलाकात की है।

चुनाव परिणामों के बाद, बीजेपी के ओबीसी नेताओं में बेचैनी बढ़ गई है। ग़ैर यादव ओबीसी वोटरों की बीजेपी से दूरी के कारण, योगी विरोधी ओबीसी नेता एकजुट हो रहे हैं और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य खुलकर बैटिंग कर रहे हैं। ओबीसी नेता हार के लिए योगी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और अपनी साख बचाने की कोशिश में लगे हैं। बीजेपी के कुर्मी, मौर्य, राजभर और पासी समाज के नेता भी परेशान नजर आ रहे हैं। इन वर्गों का समर्थन पहले बीजेपी के साथ था, लेकिन अब ये वर्ग बीजेपी से दूर हो गया है, जिसका असर चुनाव परिणामों पर पड़ा है। 

बीजेपी के सामने चुनौती है कि इन वर्गों को कैसे वापस लाया जाए। पार्टी ने ओबीसी विभाग की बैठक बुलाकर नेताओं से कहा है कि वे अपने समाज को फिर से पार्टी के साथ जोड़ें, लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया के अनुसार, “ओबीसी का मतलब ग्रुप ऑफ कास्ट है। बीजेपी ने इन्हें अपनी राजनीति के हिसाब से जोड़ा था, लेकिन कोई ठोस एजेंडा नहीं बनाया। कुछ को प्रतिनिधि बना दिया, जबकि प्रतिनिधि और प्रतिनिधित्व में फर्क है। बीजेपी की विचारधारा ने समाज के मुद्दों को हाशिए पर डाल दिया।”

वहीं, मुख्यमंत्री से हाल ही में मिलने वाले पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री और बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष नरेंद्र कश्यप ने कहा कि ओबीसी बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो रहा है और इसके लिए ज़मीनी काम शुरू हो चुका है। उन्होंने बताया कि 29 जुलाई को बीजेपी के ओबीसी विभाग की बैठक बुलाई गई है, जिसमें मुख्यमंत्री और दोनों उप-मुख्यमंत्री शामिल होंगे। कश्यप ने मौर्य की आरक्षण वाली चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा कि वर्तमान में संविदा और आउटसोर्सिंग में आरक्षण लागू नहीं है, लेकिन यदि ऐसा होता है तो यह पिछड़ी जातियों के लिए लाभकारी होगा।

बीजेपी के लिए ओबीसी मतदाताओं का समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, जो पिछले दो लोकसभा चुनावों और दो विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन 2024 के चुनाव के लिए स्थिति चिंताजनक होती जा रही है, क्योंकि ग़ैर यादव ओबीसी मतदाता अब बीजेपी की ओर से मुंह मोड़ते नजर आ रहे हैं। इस बदलाव ने बीजेपी के ओबीसी नेताओं को भी चिंतित कर दिया है।

सीएसडीएस लोकनीति के हालिया सर्वे के अनुसार, बीजेपी को ऊँची जातियों का 79 प्रतिशत वोट मिला है, जबकि इंडिया गठबंधन को केवल 16 प्रतिशत वोट मिले हैं। हालांकि, इंडिया गठबंधन ने ओबीसी वोटों में बढ़त बना ली है। ओबीसी मतदाता संविधान, आरक्षण और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर अपनी वोटिंग कर रहे हैं। 

सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को कोरी-कुर्मी वोट का 61 प्रतिशत मिला है, जो पिछली बार से 19 प्रतिशत कम है। ग़ैर यादव ओबीसी का वोट 59 प्रतिशत मिला है, जो पिछली बार से 13 प्रतिशत कम है। ग़ैर जाटव दलित वोट भी 29 प्रतिशत पर आ गया है, जो पिछली बार से 19 प्रतिशत कम है। 2019 में बीजेपी ने 62 लोकसभा सीटें जीती थीं, लेकिन 2024 में यह संख्या घटकर सिर्फ 33 रह गई है।

पिछड़ा वर्ग मंत्री नरेंद्र कश्यप का कहना है कि पार्टी अपने नेताओं को फिर से प्रशिक्षित करके इस वर्ग को जोड़ने की कोशिश करेगी। उन्होंने किसी भी अंदरूनी कलह से इनकार किया है। 

इस बीच, बीजेपी के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ने योगी आदित्यनाथ की मीटिंग में शामिल नहीं होकर केशव प्रसाद मौर्य से लखनऊ में मुलाकात की। यह संकेत देता है कि बीजेपी के अंदर गहरी अंदरूनी फूट है। जल्द ही उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, जिनमें अयोध्या की मिल्कीपुर और आंबेडकर नगर की कटेहरी सीटें शामिल हैं।

समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) कार्ड का इस्तेमाल कर बीजेपी को कई सीटों पर हराया है, जैसे सुल्तानपुर, मछली शहर, आज़मगढ़, कौशांबी और प्रयागराज में। गाज़ीपुर बलिया, बस्ती और श्रावस्ती की सीटें भी बीजेपी के हाथ से निकल गई हैं। 

केशव प्रसाद मौर्य की महत्वाकांक्षा भी एक मुद्दा रही है। 2017 में वे प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने जीत हासिल की। मौर्य ने पीडब्ल्यूडी विभाग में मंत्री का पद संभाला, लेकिन 2022 के चुनाव में सिराथू से हार गए। अब वे उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन मंत्रालय में बदलाव के कारण नाराज़गी जता रहे हैं। 

राजनीतिक जानकार रतन मणिलाल के अनुसार, बीजेपी ने 2014 से सभी जातियों को आकर्षित करने का प्रयास किया, लेकिन उसकी हिंदुत्व की विचारधारा के कारण जातिगत मुद्दों को नजरअंदाज किया गया। केशव मौर्य आरक्षण की बात करके जातिगत महत्व को उजागर करना चाहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें मिलेगी।

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने ओबीसी के मास लीडर्स को समाप्त कर संगठन के ज़रिए आए नेताओं को ज्यादा तवज्जो दी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेता हिंदुत्व की विचारधारा के तहत काम कर रहे हैं और जनाधारविहीन हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो रहा है।

बीजेपी के अंदर मतभेद जरूर हैं, लेकिन पार्टी ने इस मामले को दबाने की कोशिश की है। नेताओं से बातचीत की गई है और भूपेंद्र चौधरी और केशव प्रसाद मौर्य के बीच भी बातचीत की गई है ताकि सभी को साथ काम करने की नसीहत दी जा सके।

कांग्रेस के प्रवक्ता अनिल यादव ने कहा कि बीजेपी ओबीसी नेताओं से जवाब मांग रही है क्योंकि 2024 के चुनाव में ओबीसी वोट न मिलने की वजह से बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ है। पिछड़ा वर्ग अब बीजेपी से जवाब मांग रहा है, और यह स्थिति पार्टी के लिए चिंता का विषय है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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