सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
हाथरस में हुई भगदड़ में 121 लोगों की मौत ने सभी का ध्यान इस घटना की ओर खींचा है। इस घटना के पहले, कई शहरी इलाकों के लोग शायद ही भोले बाबा के बारे में जानते थे। इस घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया होगा कि इतने सारे लोग उनके आश्रम में क्यों जाते हैं? लोगों का मकसद शायद उनके पैरों की छुई मिट्टी या उनके सत्संगों में दिए गए ‘पवित्र’ जल को प्राप्त करना होता है। लेकिन नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा जैसे कई स्वयंभू बाबाओं ने भारी संख्या में अनुयायियों को इकट्ठा किया है, जो उन्हें आलीशान स्विमिंग पूल और हरी-भरी जगहों के साथ विशाल आश्रम बनाने में सक्षम बनाता है। इन्हें दर्जनों वॉलंटियर्स के साथ एसयूवी में घुमाया जाता है, और अक्सर राजनेताओं, फिल्मी सितारों और अन्य मशहूर हस्तियों का संरक्षण प्राप्त होता है।
स्वयंभू बाबाओं की लोकप्रियता क्यों?
कई स्वयंभू बाबाओं का आपराधिक रिकॉर्ड भी है। हरियाणा के बाबा रामपाल और डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम इंसान को हत्या का दोषी पाया गया है। आसाराम को बलात्कार और गलत तरीके से कारावास में रखने का दोषी पाया गया है। फिर भी लाखों भारतीय उन पर आंख मूंदकर भरोसा क्यों करते हैं?
भोले बाबा खुद एक दलित हैं और उनकी पहुंच सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों में अधिक है। उनके अमीर अनुयायियों की भी कमी नहीं है, जो दान देने में उदार होते हैं। अवधेश माहेश्वरी, जो खुद को साकार का सेवक कहते हैं, बताते हैं कि भोले बाबा के अनुयायी मुख्य रूप से निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं।
लोगों का आकर्षण
भोले बाबा ने जातीय बंधनों को तोड़कर आइडिया ऑफ सोसायटी का समर्थन किया, जिससे एक बड़े दलित समुदाय पर उनका प्रभाव बना।
रामपाल, जो सोनीपत के एक किसान के बेटे हैं और पहले सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे, ने कबीर से प्रेरणा लेकर ‘संत’ बनने का रास्ता चुना। इसी तरह, पंजाब और हरियाणा के डेरों में भी हर जाति के अनुयायी हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर दलित और ओबीसी हैं।
गुरमीत राम रहीम का प्रभाव
सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की जेल की सजा भी दलित सिखों के बीच उनकी लोकप्रियता को कम नहीं कर सकी। डेरा की प्रथाओं ने अनुयायियों के बीच समानता की भावना पैदा की।
सशक्तिकरण का वादा
जेएनयू के सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर अजय गुडुवर्ती कहते हैं कि पंथ समुदाय और अपनेपन की भावना देते हैं। यह सशक्तिकरण की भावना पैदा करता है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री के. कल्याणी बताती हैं कि हिंदू धर्म के विपरीत, ये स्वयंभू बाबा अपने अनुयायियों को तुरंत संतुष्टि देते हैं।
सामाजिक मुद्दों को उठाना
ये बाबा सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका भी निभाते हैं। नशाखोरी, जातिगत भेदभाव, घरेलू हिंसा आदि समस्याओं के खिलाफ अभियान चलाते हैं।
मेडिकल चमत्कारों का वादा
ये बाबा ‘मेडिकल चमत्कारों’ का भी वादा करते हैं, जिससे गरीब लोग हताशा में उनके पास आते हैं।
अंधविश्वास और सोशल मीडिया
सोशल मीडिया के जरिए ये ‘गुरु’ फॉलोअर्स को आकर्षित करते रहते हैं। गुरमीत राम रहीम, रामपाल, और नित्यानंद सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं।
जन जागरूकता की जरूरत
तर्कवादी श्याम मीना का कहना है कि इस अंध भक्ति को कम करने के लिए सतत जन जागरूकता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
समाजशास्त्री कल्याणी का कहना है कि छात्रों को तर्क और तर्कसंगतता के दर्शन सिखाए जाने चाहिए और इन्हें हर स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."