वल्लभ लखेश्री की रिपोर्ट
इंसान की प्रथम दृष्टया पहचान केवल दो ही बातों से होती है एक उसका व्यवहार और दूसरा उसका कौशल ।लेकिन व्यवहार किसी इंसान की सफल का पहला द्योतक होता हैं। मेरी निगाहें सदैव अच्छे इंसान का पीछा करती रहती हैं और मेरी इस तलाश को आत्मा शांत करने के लिए एक न एक किरदार मेरे जेहन में उतरता ही रहता है।
मेरी इस लत को आत्मसात करने के लिए एक शिक्षक साथी अश्विनी जोशी मेरी कलम से रूबरू हो रहें हैं।इस किरदार को परिलक्षित करने के लिए कुछ पंक्तियां अपने आप में सब कुछ बयान करती हुई दृष्टिपात होता हैं कि:-
इंसान का इंसान से हो भाई चारा। यही पैगाम हमारा।
जी हां मैं यहां एक सामान्य व्यक्ति के कृतित्व और व्यक्तित्व को लेखनीबद्ध कर रहा हूं जो अपने आप में अनेक संदेशों का कारवां अपने साथ लेकर चलता प्रतीत हो रहा है । जिसमें सामाजिक समरसता, सामाजिक समानता का संदेश है। मानवीय संवेदनाओं और बन्धुत्व का वाहक है । जिसमें ढोंगी जातिय व्यवस्था के विरुद्ध चुनौती देने का मादा है ।जो मुख्य धारा से वंचित और उपेक्षित तबके के प्रति अपने दायित्व निर्वाहन की स्व प्रेरणा का जुनून है । जो स्वप्रेरणा को यथार्थ की धरती पर उतारने के लिए सदैव आतुर रहता हो।
अपने पूरे परिवार एवं मित्र मंडल के साथ लगकर दलित समाज का जो तबका ढोंग और पाखंड के दंश के दो पाटन के बीच पिस्ता आ रहा है ,जो जातीय भेदभाव के कलंक से प्रताड़ित हैं। उन्हें गले लगाकर अपनी अंतरात्मा की आवाज को सरे आम करते हुए, उपेक्षित एवं प्रताड़ित लोगों के बीच में पहुंचकर उनकी दिनचार्य का अवलोकन करना ,उनके अभाव को समझना ,उनके मन से जातीय दंश का भ्रम निकालने के लिए हर संभव उनके बीच शिक्षा, चिकित्सा की जागृति का शंखनाद करना जैसे कार्यों को अन्जाम तक पहुंचाने की ललक रखने वाले भाई अश्विनी जोशी का नाम गर्व के साथ लेना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
क्षेत्र में कई ऐसी बस्तियां हैं जो रोज़ी रोटी, शिक्षा, ईलाज, के साथ अनेक मूलभूत सुविधाओं की उड़ीक में है। जहां एक तरफ सरकारी तंत्र जो अपने दायित्व निर्वाह में खोखला साबित हो रहा है ।तो दूसरी तरफ सामाजिक तानों बानों की वर्ण व्यवस्था के शिकार लोग जातीय भेदभाव के दंश और उपेक्षा से संलिप्त है। ऐसे लोगों , महिलाओं और बच्चा के बीच यदि उनकी सार संभाल लेने वाला कोई व्यक्ति पहुंचे। जो न कोई राजनेता है ,न सन्यासी है ।न जिसे वोटों की जरूरत है, न प्रशंसा पत्र की आवश्यकता है । और वही व्यक्तित्व यदि एक सामान्य ब्राह्मण परिवार से आया शिक्षक हो तो मेरी कलम का सर भी गर्व से ऊंचे उठ जाता है ।
जो सदैव अपने आप को गरीब से गरीब लोगों के बीच खड़ा पाकर फक्र और सुकून महसूस करता है। उनके अनुसार अभाव, उपेक्षा गरीबी ,पीड़ा आदि की कोई जात या धर्म नहीं होता है।दोजक में कभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख एवं ईसाई नहीं देखा जाता है।वह मात्र और मात्र इंसान है। मानव और मानवता के नाते हमारे हर सहयोग का हकदार है ।
इसी मिशन को साकार रूप देते हुए क्षेत्र की सबसे गरीब और अभावग्रस्त अतिदलित जाति “सांसी समाज” के बीच जाकर अपने मित्रों के सहयोग से उनके अभाव साझा करने का प्रयास करना है। और इतना ही नहीं वर्ण व्यवस्था के अत्यंत ढोंगी स्वरूप को चुनौती देते हुए भाई अश्विनी मानवीय संवेदनाओं का साहसी कदम उठाते हुए उन लोगों के बीच रहन-सहन ,खान पान कर उनके जीवन की साझेदारी में भागीदारी निभाते रहे हैं।
इनकी सोच का कारवां यही नहीं थमता है। जो अनेक ऐसे प्रसंगों उल्लेख करता है।
एक वाकया जिसमें सांसी समाज के लोगों को अपने घर बुलाकर ,अपने घर के सबसे महत्वपूर्ण एवं शुद्ध पात्र रोटी के लिए आटा गोदने वाला बर्तन परात में सांसी समाज की बच्चियों के पांव खंखोल करके उसी बर्तन में खाना पकाना और उस भोजन को अति दलित समाज के उन लोगों के साथ बैठकर के बड़े चाव,मान व सम्मान के साथ सपरिवार भोजन ग्रहण करना और करवाना जोशी के अनुसार सुखद अनुभूति हैं।
वैसे एक इंसान का दूसरे इन्सान के साथ में मानवीय व्यवहार करना और उस घटना को लेखनी बंद्ध करना कोई बड़ी बात भी नहीं है ।साथ ही इस बात का आज के समय में चर्चा का विषय भी नहीं होना चाहिए ।लेकिन जहां आज भी सामाजिक रूढ़िवादिता गाहे-बगाहे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है। दलित समाज को उपेक्षित का शिकार होना पड़ रहा है ।
छुआछूत दबे पांव भी सही अपनी मौजूदगी बदस्तूर बरकरार रखे हुए है । वहां पर श्री अश्विन जोशी जैसे चरित्र का उल्लेख कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का सामाजिक संदेश बहुत मायना रखता है। वह बहुत लंबी दूरी और लंबा सफर तय करके समाज के अन्य लोगों तक पहुंच कर अपने लक्ष्य और उद्देश्य में सफल होगा। अन्य लोगों को अपने अन्दर झांकने की सीख देगा। यही इस उल्लेखित प्रसंग का साकारात्मक पहलू है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."