डा निधि माहेश्वरी
पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के मकसद से विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाने की शुरुआत हुई थी। हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर और सुरक्षित पर्यावरण सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। मानव और पर्यावरण के बीच गहरे संबंध को समझाना जरूरी है। तभी लोग इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेंगे।
प्रकृति हमारे लिए क्या है….? ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है, इसे कैसे बचाएं ये ज्ञान भी आप सबको नित प्रतिदिन कहीं न कहीं मिलता भी रहता है। पर बात यही है कि इतना ज्ञानवान होने के बाबजूद भी सृष्टि की सबसे समझदार रचना, ये मानव क्यों प्रकृति का इतना दोहन कर रहा है….?
सारी प्रकृति हमारे प्रयोग के लिए ही है और सदियों से हम सभी प्राकृतिक संसाधन प्रयोग भी कर रहे हैं,परंतु आज के इस युग में क्यों हर किसी को जागरूक करने की जरूरत आन पड़ी है?
ये हम सब जानते हैं कि सृष्टि का ये शाश्वत नियम है ” जो हम देंगे,वो हम लेंगे” और प्रकृति के कुछ नियम हैं जो सभी के लिए समान हैं और ना मानने पर जीव अवनति की ओर जाने लगता है।
“प्रकृति अगर निर्माणकर्ता है तो प्रकृति विनाशकारी भी हो सकती है” इसके उदाहारण समय समय पर सामने आते भी रहते हैं।
फिर भी हम सब क्यों नासमझों की तरह चुप्पी लगाए हुए हैं? हमने अपने जीवन का एक अच्छा भाग व्यतीत कर लिया,क्या ये सोचकर कि अब बाकी जीवन में हमें जरूरत नहीं है या अपनी कमाई को अति से ज्यादा जोड़ने के चक्कर में हम प्रकृति को धोखा देते जा रहें हैं?
पर जिनके लिए जी जान से कमाने में लगे हैं और क्या उनके लिए प्रकृति को सुरक्षित रखना जरूरी नहीं है?
हम आम जनता बिजली का बिल देने के नाम से कतराते हैं परंतु बिजली बचाने के नाम पर जीरो….।
आज भी गांवों में सौ वाट के बल्ब डायरेक्ट जलते हैं ,बिजली चोरी की जाती है क्योंकि वो ये नहीं सोचते कि अगर हम इस बरबादी को रोक लेंगे तो कितनी ही आबादी रोशनी में रह सकेगी।
क्यों एक बड़ा औद्योगिक प्रोजेक्ट, निवासीय क्षेत्र या हाईवे बनाते समय जितने पेड़ काटे गए उतने ही पेड़ लगाने का नियम क्यों नहीं बनाता? केवल लगाने की औपचारिकता पूरी ही नहीं करनी बल्कि उनकी देखभाल जरूरी होती है।
“हमें प्रकृति के संरक्षण की जिम्मेदारी की नींव अपने बच्चों में उनकी वृद्धि की जरूरत की तरह डालनी पड़ेगी।
नही तो कुछ सालों में ही हमारी बढ़ती पीढ़ी हमारे ही सामने अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए एक दूसरे का खून पीती नजर आएंगी।”
मैं प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के तरीके नहीं बताऊंगी , मैं कहूंगी कि हम अपने-अपने तरीके इजाद करें जिससे इन संसाधनों को सर्वव्यापक बनाया जा सके।
कभी तसल्ली से सोचें तो पता चलेगा कि इन संसाधनों का असीमित उपयोग से क्या ये हमारी आने वाली पीढ़ी को जरूरत पूरी करने को मिल पाएंगे?
इसीलिए जोड़ना है तो अपने बच्चों को प्रकृति के संरक्षण से जोड़ो,ये उनके लिए अनमोल तोहफा होगा। उन्हें भी सिखाएं कि ” प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग उन्हें जीवन जीने के लिए असीमित खुशियां व सुविधा दे सकता है।”
जहां किसी भी संसाधन का उपयोग या सुविधा की अति बुरी होती है वहीं उस सुविधा का सीमित उपयोग कर अपनी सेहत का ध्यान भी रखा जा सकता है।
आज घरों में हमें A.C. की ठंडक बड़ा सुहाती है परंतु जब समय से पहले हड्डियां खराब हो जाएं तब ख्याल आता है कि जो बीमारियां हमें आज 30-40 की उम्र में हो रही हैं वो हमारे बुजुर्गों को 60-80 की उम्र के बाद हुई थीं। और हमारी बढ़ती पीढ़ी में वही सब 20 की उम्र में लगनी शुरू हो गई ,पर ये कोई अचंभा नहीं।
इन सबका कारण जीवन में अति से ज्यादा सुविधा ,प्रदूषित पानी ,प्रदूषित भोजन,प्रदूषित मिट्टी…… कुल मिलाकर हमने प्रकृति को खराब किया और प्रकृति ने हमें।
ना भोजन शुद्ध, ना पानी शुद्ध, ना वायु शुद्ध ….तो हमारे शरीर कैसे रहेंगे स्वस्थ?
इसीलिए कह रही हूं अपने तरीके सोचें और ये ना कहें कि सरकार ही कुछ करेगी ,अपने व अपने बच्चों के भविष्य के लिए एक शुरुआत करें और कारवां जुड़ता चला जाएगा। अगर आंकड़े उठाकर देखें तो केवल स्थानीय लोगों ने मिलकर कुआं व तालाब फिर से खोद डाले।
हमें अपनी पुरानी परंपराओं की और लौटना पड़ेगा।
मैं ये भी जानती हूं और मानती भी हूं कि आधुनिकीकरण व वैश्वीकरण जरूरी है परंतु उस उन्नति का क्या फायदा जब वो नुकसान पहुंचाने लगे?
इसीलिए हम इस रेस में प्रतिभागी तो बनें लेकिन प्रकृति में संतुलन बैठाकर, जो हर एक व्यक्ति और हर बच्चे को करना होगा।
अभी भी वक्त है हम सब समझ जाएं कि हम और प्रकृति के बिना सृष्टि अधूरी है।हम दोनों के बीच में हजारों ,लाखों वो छोटे बड़े जीव जो बेजुबान होने पर भी प्रकृति के संरक्षक होते हैं,वो उसे नष्ट नहीं करते तो प्रकृति भी उन्हें अपनी शरण में रखती है परंतु ये सारा संतुलन बिगाड़ा है हम समझदार इंसानों ने ….।
“तो आओ मिलकर करें शुरुआत,
करें प्रकृति के संरक्षण की बात।।”
बस कुछ शब्दों में यह भी कहना चाहूंगी
खूब बढ़ो और विकास करो,
प्रकृति का ना विनाश करो।
आज की एक समझदारी से,
अच्छे कल की आस करो।।
ना सीना धरती का आहत हो,
बस करो अब छोड़ दो जान।
धरती के सीने में पलने वाले,
क्यों हैं इस सच से अनजान।।
बिगड़ गई जिस दिन ये धरती,
रूठ गई अगर ये प्रकृति…..।
कैसे बच पाएंगे हम?????
जब होगी प्रदूषण की अति।।
(डा. निधि माहेश्वरी, उ.प्रा. वि. उदयपुर, हापुड़,उत्तर प्रदेश)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."