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November 22, 2024 4:36 pm

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किसी को कुकुरमुत्ता किसी को भटकती आत्मा कहा… आखिर विधायकों को संभालने में नाकाम अखिलेश की नैया कैसे लगेगी पार

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के सामने चुनौती काफी बढ़ गई है। राज्यसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव की रणनीति पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। भले ही अखिलेश अब कार्रवाई की बात कर रहे हैं। उनके चाचा शिवपाल यादव बागी विधायकों को भटकती आत्मा और राम गोपाल यादव कुकुरमुत्ता कहकर संबोधित कर रहे हैं। लेकिन, पार्टी को एकजुट रखने में नाकामयाबी का सेहरा तो अखिलेश यादव के ही सिर बंधेगा। 

संख्या बल के आधार पर सपा आराम से तीन उम्मीदवारों को जिता ले जाती, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सधी हुई राजनीति ने पार्टी को हार की तरफ धकेल दिया। अखिलेश यादव को लेकर अब कहा जा रहा है कि उन्होंने लड़ाई सही तरीके से लड़ी ही नहीं। यही कारण रहा कि पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 

इससे पहले भी अखिलेश को यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 में करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस प्रकार दूसरे चुनाव में पार्टी हारी है।

पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए की राजनीति प्रदेश में करने की बात करने वाले अखिलेश पर राज्यसभा उम्मीदवारों के चयन को लेकर सवाल किया गया। आलोक रंजन और जया बच्चन पर सवाल किए गए।

पूर्व आईएएस आलोक रंजन और फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन से पार्टी को फायदा मिलने पर सवाल किया गया। पार्टी विधायकों के इस प्रकार के सवालों ने अखिलेश यादव की पार्टी पर पकड़ को सवालों के घेरे में ला दिया है। पार्टी विधायकों को एकजुट रखने को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।

राज्यसभा चुनाव की रणनीति भी सही नहीं

राज्यसभा चुनाव को लेकर भाजपा और सपा की रणनीति बिल्कुल अलग रही। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले बैठकें की। संगठन के स्तर पर विधायकों को ट्रेनिंग दी गई। सीएम योगी आदित्यनाथ ने डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विधायकों को रणनीति समझाई। यही वजह रही कि भाजपा के छह उम्मीदवारों को 38 वोट मिले। 

आरपीएन सिंह जीत के लिए जरूरी 37 वोट पाए। वहीं, भाजपा के आठवें उम्मीदवार संजय सेठ के पक्ष में 29 वोट पड़े। इसके बाद दूसरी वरीयता के वोटों में भाजपा के आठवें उम्मीदवार ने बाजी मार ली। सपा की ओर से अखिलेश यादव ने भी डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विधायकों को जीत का समीकरण समझाया था।

अखिलेश यादव की ओर से जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजी लाल सुमन को वोट डालने की रणनीति समझाई गई। लेकिन, उनकी यह रणनीति मीटिंग हॉल से विधानसभा के तिलक हॉल में बने वोटिंग सेंटर तक पहुंचते- पहुंचते बिखड़ गई। सपा उम्मीदवार जया बच्चन को 41 और रामजी लाल सुमन को 40 वोट मिले। 

जया बच्चन पर अखिलेश का जोर था। जोर तो आलोक रंजन पर भी था। लेकिन, दलित रामजी लाल सुमन पार्टी विधायकों का अधिक समर्थन पा गए। अखिलेश के विरोध में विधायक पल्लवी पटेल आखिरी समय तक खुलकर खड़ी रही।

पल्लवी ने पीडीए के साथ के लिए आलोक रंजन की जगह रामजी लाल सुमन को वोट दिया। जया बच्चन को जीत के लिए जरूरी 37 से चार अधिक प्रथम वरीयता के वोट मिले। वहीं, रामजी लाल सुमन को तीन अतिरिक्त वोट मिले। अगर ये वोट आलोक रंजन को मिलते तो वे 26 वोटों तक पहुंच सकते थे। 

इस प्रकार रणनीति को बेहतर तरीके से तैयार न कर पाने के कारण सपा अध्यक्ष को नुकसान झेलना पड़ा। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ विधायक अखिलेश की नजर में आने के लिए जया बच्चन को वोट देते रहे। वहीं, जीतने वाले उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के भी इस प्रकार की वोटिंग की बात कही जा रही है।

राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारों को मिले कुल वोट:

उम्मीदवार का नाम पार्टी प्रथम वरीयता के वोट

अमरपाल मौर्य        भाजपा       38

तेजवीर सिंह           भाजपा       38

नवीन जैन              भाजपा       38

आरपीएन सिंह       भाजपा        37

साधना सिंह           भाजपा        38

सुधांशु त्रिवेदी         भाजपा        38

संगीता बलवंत        भाजपा        38

संजय सेठ              भाजपा       29

जया बच्चन             सपा          41

रामजी लाल सुमन    सपा         40

आलोक रंजन          सपा         19

विद्रोह को रोकने में कामयाबी नहीं

अखिलेश यादव पार्टी में विद्रोह रोकने में कामयाब नहीं रहे। मुलायम सिंह यादव के निधन के अखिलेश यादव पार्टी के विधायकों को एक सूत्र में बांधने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई, जब शिवपाल यादव और राम गोपाल यादव जैसे मुलायम के रणनीतिकार भी उनके साथ रहे। मुलायम ने तीन बार यूपी की बागडोर संभाली थी। वे समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत न दिला पाने के बाद भी विपक्ष में सेंधमारी कर अपनी सरकार को बचाने और कार्यकाल पूरा कराने के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2003 में बसपा के विधायकों में सेंधमारी को कौन भूल सकता है।

इस प्रकार की राजनीति अखिलेश तैयार नहीं कर पा रहे हैं। मुलायम के रहने तक पार्टी से विद्रोह के मामले कम आते थे। आजम खान, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेताओं की नाराजगी आती थी, लेकिन मुलायम उन्हें वापस जोड़ लेने में किसी प्रकार की झिझक नहीं रखते थे। उन्होंने कभी भी साथ छोड़ने वालों के बारे में बयान नहीं दिया। अखिलेश इस मामले में अगल रुख अपनाते दिख रहे हैं।

सातवें दिन ही लगा झटका

प्रदेश में सपा- कांग्रेस गठबंधन के ऐलान के एक सप्ताह के भीतर ही बड़ा झटका लगा है। इन दो दलों के साथ आने के बाद भी विधायकों के बीच एकजुटता कायम नहीं हो सकी। कांग्रेस ने तो अपने दोनों विधायकों को साथ जोड़कर रखा। लेकिन, अखिलेश यादव का कुनबा बिखरता दिखा। इस प्रकार की स्थिति का असर लोकसभा चुनाव में दिखना तय है। सपा के कुछ कद्दावर नेताओं के बागी रुख का फायदा सीधे तौर पर भाजपा को मिल सकता है। राज्यसभा चुनाव को लेकर भाजपा में बड़ा संदेश देने में सफल रही है। भाजपा ने सपा- कांग्रेस के साथ हुए सीधे मुकाबले में भारी बढ़त बना ली है।

रायबरेली- अमेठी पर दिख सकता है असर

राज्यसभा चुनाव के बाद बनी स्थिति का असर अमेठी, रायबरेली समेत छह सीटों पर दिख सकता है। भाजपा ने अपने आठों उम्मीदवारों को जिताया। इसके साथ-साथ कई जिलों में सियासी गुणा- गणित को भी बेहतर कर लिया है। मिशन- 80 के साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा के लिए मनोज पांडेय, महाराजी देवी, पूजा पाल, राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह जैसे दिग्गजों की सपा से बगावत बूस्टर डोज का काम करेगी। अमेठी, रायबरेली, प्रयागराज, अयोध्या जैसे जिलों में भाजपा और मजबूत होगी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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