Explore

Search
Close this search box.

Search

20 January 2025 3:32 am

लेटेस्ट न्यूज़

राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर बवाल मचाने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की इन बातों से आप भिज्ञ हैं? पढिए ?

38 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर हिंदू समाज में जहां एक तरफ खुशी की लहर है तो वहीं संत समाज के एक धड़े की तरफ से आपत्ति भी सामने आई है। इस पर आपत्ति जताने वाले उत्तराखंड ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद हैं। उन्होंने अधूरे या निर्माणाधीन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा किए जाने पर ऐतराज जताया है। 

उन्होंने शास्त्रों को हवाला दिए बिना ही सिर या आंखों की मूर्ति शरीर में प्राण प्रतिष्ठा को गलत करार दिया है। यह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Swami Avimukteshwaranand)आखिर हैं कौन, जान लीजिए

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय को लेकर सवाल उठाया है। दरअसल, सितंबर 2022 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद पर समाधि से पहले उत्तराधिकारियों का चयन कर लिया गया था। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने दावा किया कि चारों शंकराचार्यों को प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण नहीं आया, इसलिए वे कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे हैं।

हालांकि स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि अविमुक्तेश्वरानंद किसी भी सूरत में ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य नहीं है और ना ही यह ब्राह्मण है तो इनको संन्यास का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक लगने के बाद अविमुक्तेश्वरानंद ने पट्टाभिषेक करवाया और अब अपने आप को शंकराचार्य लिख रहे हैं जो कि सरासर गलत है। इन पर कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चलना चाहिए।

प्रतापगढ़ के गांव में हुआ जन्म

प्रतापगढ़ के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम उमाशंकर पांडेय था। कक्षा 6 तक की पढ़ाई गांव में ही करने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया गया। एक बार उनके पिता उन्हें गुजरात ले गए, वहां पर काशी के संत रामचैतन्य से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने बेटे को वहीं पर छोड़ दिया। तबसे यहीं पर रहकर उमाशंकर पूजन पाठ और पढ़ाई में रम गए।

गुजरात से पढ़ाई और फिर काशी

गुजरात में रहकर अगले कुछ साल तक पढ़ाई करने के बाद उमाशंकर फिर वाराणसी पहुंचे। वहां पर उनकी मुलाकात स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से हुई। इसके बाद उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। साल 2000 में उन्होंने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ली और उनके शिष्य बन गए। इसके बाद उमाशंकर पांडे से वह दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बन गए।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 4 जून 2022 को ज्ञानवापी परिसर में पूजा का ऐलान किया था। पुलिस प्रशासन की तरफ से रोके जाने के बाद वे 108 घंटे तक अनशन पर बैठे रहे। उसके बाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के कहने पर उन्होंने अनशन को समाप्त कर लिया था।

किस बात पर है आपत्ति?

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि मंदिर में अगर प्रतिष्ठा हो रही तो मंदिर पूरा बना हुआ होना चाहिए। अगर चबूतरे पर प्रतिष्ठा हो रही है तो चबूतरा पूरा बना होना चाहिए। यही इतनी बात कुछ लोगों को समझ नहीं आ रही है क्योंकि उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं है। ऐसे लोग कहते हैं कि गर्भगृह तो बन गया है बाकी भले नहीं बना। अधिकतर लोग समझते हैं कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होनी है, जबकि ऐसा नहीं है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है।’

स्वामी ने आगे बात कहते हुए कहा, ‘मंदिर भगवान का शरीर होता है, उसके अंदर की मूर्ति आत्मा होती है। मंदिर का शिखर भगवान की आंखें हैं। कलश भगवान का सिर है और मंदिर में लगा झंडा भगवान के बाल हैं। बिना सिर या आंखों के शरीर में प्राण-प्रतिष्ठा करना सही नहीं है। यह हमारे शास्त्रों के खिलाफ है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़