Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 8:31 am

लेटेस्ट न्यूज़

डाकू था लेकिन देशभक्त, लूटता था लेकिन किसी की इज्जत नही और मौत भी लगाया गले जो अंग्रेजों ने दी, आइए जानते हैं इस डाकू को

76 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी

इतिहास के पन्नों में लाखों नाम दर्ज हैं, जिनके बारे में जानना या फिर समझना जरूरी नहीं है। लेकिन कुछ नाम, वंशज ऐसे हैं, जिनको आज भी याद किया जाता है जैसे- मुगल वंश, राजपूत वंश, ब्रिटिश राज आदि। इसलिए आपने कई राजा या फिर बादशाहों की कहानी सुनी होगी।

लेकिन आज हम आपको इतिहास में एक विलेन का किरदार निभाने वाले सुल्ताना डाकू के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने कई तरह की अजीबोगरीब नौटंकी या फिर कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। बता दें कि अब सुल्ताना डाकू एक काल्पनिक किरदार बन चुका है, जिसपर कई फिल्मों भी बनाई जा चुकी हैं।

कौन था सुल्ताना डाकू? (Who is Sultana Daku)

सुल्ताना डाकू का असली नाम कुख्यात सुल्तान सिंह था, जो उत्तर प्रदेश राज्य से संबंध रखता था। कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू यानि सुल्तान सिंह घुमंतू, बंजारे भांतू समुदाय से ताल्लुक रखता था और एक साधारण इंसान था।

बता दें कि सुल्ताना का जन्म मुरादाबाद जिले के एक हरथला गांव में हुआ था। लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि सुल्ताना डाकू बिजनौर राज्य का रहना वाला था। कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू खुदको महाराणा प्रताप के खानदान का बताता था।

सुल्तान सिंह से सुल्तान डाकू बनने की कहानी- (Sultana Daku History And Story)

सुल्ताना डाकू एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था और बहुत ही सरल इंसान था। हालांकि, सुल्ताना सिंह को लेकर कई तरह के मिथक हैं जैसे- कहा जाता है कि सुल्ताना सिंह अपनी मोहब्बत में डाकू बना था। उसे एक अंग्रेजी महिला से प्यार हो गया था, जिसका इजहार करने के बाद इसे अंग्रेजों ने सुल्ताना को धमका दिया था। इसके बाद सुल्ताना ने महिला का अपहरण कर लिया था और इसके बाद से ही सुल्ताना ने आतंक की राह पकड़ ली थी।

कई जगह उल्लेख मिलता है कि सुल्ताना सिंह इंसाफ करने वाला इंसान था। इसलिए वे अमीरों का सामान चुराकर गरीबों को बांटा करता था। क्योंकि उसे लगता था कि समाज में गरीबों के साथ अन्याय हो रहा है। इसलिए सुल्ताना आतंक की राह पर चलने लगा और कई सालों तक जेल में भी रहा।

नजीबाबाद में स्थित है सुल्ताना डाकू का किला- (Sultana Daku Kila)

एक वक्त के बाद सुल्ताना डाकू का खौफ काफी बढ़ गया था। लोग सुल्ताना से काफी डरने लगे थे क्योंकि सुल्ताना लोगों को सरेआम लूटने लग गया था। इतना ही नहीं कहा जाता है कि सुल्ताना ने चार सौ साल पूर्व नजीबाबाद में स्थित नजीबुद्दौला के किले को भी लूट लिया था और अपना कब्जा कर लिया था।

अमीरों का माल लूटना और गरीबों में बांटने का जिक्र हो तो 14वीं सदी का एक कैरेक्टर ‘रॉबिन हुड’ याद आता है, जो अपने साथियों समेत ब्रिटेन के काउंटी नॉटिंघम शायर में शेरवुड के जंगलों में रहता था। वो एक आम नागरिक था लेकिन नॉटिंघम के कुख्यात शेरिफ ने उसकी जमीन जबरदस्ती छीन ली थी, जिसकी वजह से वो डकैती करने लगा था। इसके बारे में कई नॉवेल लिखे गए और बहुत सी फिल्में बनीं, मगर फिर भी इसके बारे में ये संशय है की वो वास्तविक जीवन में था भी या नहीं।

हालांकि, इसी तरह का एक कैरेक्टर भारत में भी था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो अमीरों को लूटता था और गरीबों की मदद करता था। ये कैरेक्टर था सुल्ताना डाकू, जिसे 96 साल पहले सात जुलाई 1924 को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था।

सुल्ताना डाकू के धर्म के बारे में कुछ यकीन से नहीं कहा जा सकता। ज्यादातर लोगों का मानना है कि वो मुसलमान था जबकि कुछ इतिहासकारों ने उसे हिंदू धर्म का मानने वाला बताया है, क्योंकि वो भातो समुदाय से था और ये समुदाय हिंदू धर्म को मानने वाला था। 

सुल्ताना शुरुआत में छोटी-छोटी चोरी करता था। उर्दू के पहले जासूसी उपन्यासकार और अपने जमाने के मशहूर पुलिस अधिकारी जफर उमर इसे एक बार गिरफ्तार करने में कामयाब हुए थे, जिस पर उन्हें पांच हजार रुपये का इनाम मिला था। जफर उमर की बेटी हमीदा अख्तर हुसैन राय पुरी ने अपनी किताब ‘नायाब हैं हम’ में लिखा है कि जफर उमर ने सुल्ताना को एक मुठभेड़ में गिरफ्तार किया था।

उस समय सुल्ताना पर चोरी के अलावा हत्या का कोई आरोप नहीं था, इसलिए उसे सिर्फ चार साल जेल की कड़ी सजा सुनाई गई थी। जफर उमर ने उसकी गिरफ्तारी पर मिलने वाले रुपये अपने सिपाहियों और स्थानीय लोगों में बांट दिए थे। इसके बाद जफर उमर ने उर्दू में कई जासूसी नॉवेल लिखे, जिनमें पहला नॉवेल ‘नीली छतरी’ था और इसकी कहानी का मुख्य पात्र सुल्ताना डाकू ही था। 

सुल्ताना की ‘वारदात का तरीका’ 

रिहाई के बाद सुल्ताना ने अपने गिरोह को फिर से इकठ्ठा किया। इसने नजीबाबाद और साहिनपुर के सक्रिय लोगों से संपर्क किए और अपने भरोसेमंद मुखबिरों का जाल बिछाकर लूटना शुरू कर दिया। उसे अपने मुखबिरों के जरिये मालदार लोगों की खबर मिलती। सुल्ताना हर डकैती की योजना बड़े ध्यान के साथ बनाता और हमेशा कामयाब लौटता। अपने जमाने के मशहूर शिकारी जिम कार्बिट ने भी अपने कई लेखों में सुल्ताना के बारे में लिखा है। 

जफर उमर के अनुसार सुल्ताना डाकू बड़ा निडर होकर डकैती डालता था और हमेशा पहले से लोगों को सूचित कर देता था कि श्रीमान पधारने वाले हैं। डकैती के दौरान वो खून बहाने से जहां तक हो सकता बचने का प्रयास करता था, लेकिन अगर कोई शिकार विरोध करता और उसे या उसके साथियों की जान लेने की कोशिश करता तो वो उनकी हत्या करने से भी परहेज नहीं करता था।

ये भी मशहूर है कि वो अपने विरोधियों और जिनकी वो हत्या करता उनके हाथ की तीन उंगलियां भी काट डालता था। अमीर साहूकारों और जमींदारों के हाथों पीड़ित गरीब जनता उसकी लंबी आयु की दुआएं मांगते और वो भी जिस क्षेत्र से माल लूटता, वहीं के जरूरतमंदों में बंटवा देता था।

डाकू पकड़ने के लिए बुलाया अंग्रेज पुलिस अधिकारी

सुल्ताना की डकैती और आतंक का ये सिलसिला कई साल तक जारी रहा मगर अंग्रेजों की सरकार थी और वो यह स्थिति ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। पहले तो उन्होंने भारतीय पुलिस के जरिए सुल्ताना को ठिकाने लगाने की कोशिश की, मगर सुल्ताना के मुखबिर और गरीब देहातियों की मदद की वजह से वो अपने इरादों में कामयाब ना हो सके। 

अंत में अंग्रेजों ने सुल्ताना डाकू की गिरफ्तारी के लिए ब्रिटेन से फ्रेडी यंग नामक एक तजुर्बेकार अंग्रेज पुलिस अधिकारी को भारत बुलाने का फैसला किया। फ्रेडी यंग ने भारत पहुंचकर सुल्ताना की सभी वारदातों का विस्तार से अध्ययन किया और उन घटनाओं की विस्तृत जानकारी जमा की जब सुल्ताना और उसके गिरोह के सदस्य पुलिस के हाथों गिरफ्तारी से साफ बच निकले थे। 

फ्रेडी यंग को ये निष्कर्ष निकालने में ज्यादा देर नहीं लगी कि सुल्ताना की कामयाबी का राज उसके मुखबिरों का जाल है जो पुलिस विभाग तक फैला हुआ है। वो यह भी जान गया कि मनोहर लाल नामक एक पुलिस अधिकारी सुल्ताना का खास आदमी है जो सुल्ताना की गिरफ्तारी की हर कोशिश की खबर को उस तक पहुंचा देता है और इससे पहले कि पुलिस उनके ठिकाने तक पहुंचती वो अपना बचाव कर लेता है। 

फ्रेडी यंग ने सुल्ताना को गिरफ्तार करने के लिए बड़ी होशियारी से योजना बनाई। सबसे पहले तो उसने मनोहर लाल का ट्रांसफर दूर के इलाके में कर दिया, फिर नजीबाबाद के बुजुर्गों की मदद से सुल्ताना के एक विश्वसनीय व्यक्ति मुंशी अब्दुल रज्जाक को अपने साथ मिलाने में कामयाब हो गया। सुल्ताना मुंशी अब्दुल रज्जाक पर सबसे ज्यादा भरोसा करता था। 

सुल्ताना के छिपने की जगह नजीबाबाद के पास स्थित एक जंगल था, जिसे कजली बन कहा जाता था। यह जंगल बहुत ही घना और जंगली जानवरों से भरा हुआ था, लेकिन सुल्ताना जंगल के चप्पे-चप्पे को जानता था। उसके रहने की जगह जंगल के ऐसे घने इलाके में थी, जहां दिन के समय में भी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती थी। सुल्ताना भेष बदलने का भी माहिर था और उसके बदन पर कट के निशान की वजह से उसे देखने वाला कोई व्यक्ति भी नहीं जान पाता था कि ये सुल्ताना हो सकता है। 

फ्रेडी यंग ने मुंशी अब्दुल रज्जाक की सूचना की बुनियाद पर सुल्ताना के चारों तरफ घेरा तंग करना शुरू कर दिया। मुंशी अब्दुल रज्जाक एक तरफ सुल्ताना से संपर्क में था और दूसरी तरफ उसकी हर हरकत की सूचना फ्रेडी यंग तक पहुंचा रहा था। एक दिन मुंशी ने सुल्ताना को एक ऐसे स्थान पर बुलाया, जहां पुलिस पहले से ही छुपी हुई थी। सुल्ताना जैसे ही मुंशी के बिछाए हुए जाल तक पहुंचा तो सेमुअल पेरिस नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने उसे अपने साथियों की मदद से काबू कर लिया। सुल्ताना ने पहले फायर करना चाहा मगर पुलिस उसकी राइफल छीनने में कामयाब हो गई। 

अब उसने भागना चाहा, लेकिन एक कॉन्स्टेबल ने उसके पैरों पर राइफल की बट मारकर उसे गिरा दिया और इस तरह सुल्ताना गिरफ्तार हो गया। ऑपरेशन को फ्रेडी यंग लीड कर रहे थे, जिन्हें इस कारनामे के बाद तरक्की देकर भोपाल का आईजी जेल बना दिया गया। 

फ्रेडी यंग सुल्ताना को गिरफ्तार करके आगरा जेल ले आए, जहां उस पर मुकदमा चला और सुल्ताना समेत 13 लोगों को सजा-ए-मौत का हुक्म सुना दिया गया। इसके साथ ही सुल्ताना के बहुत से साथियों को उम्रकैद और काला पानी की सजा भी सुनाई गई। सात जुलाई 1924 को सुल्ताना को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया, लेकिन अमीरों पर इसका खौफ और जनता में इसके आतंक के चर्चे लंबे समय तक जारी रहे। 

डाकू और उसे पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी की दोस्ती

सुल्ताना अंग्रेजों से बहुत नफरत करता था। कहते हैं इसी नफरत की वजह से वो अपने कुत्ते को राय बहादुर कहकर बुलाता था। ये एक सम्मानजनक उपाधि थी, जो अंग्रेज सरकार की तरफ से उनके वफादार भारतीयों को दी जाती थी। सुल्ताना के घोड़े का नाम चेतक था। जिम कॉर्बेट ने लिखा है कि जिस जमाने में सुल्ताना पर मुकदमा चलाया जा रहा था, उसकी दोस्ती फ्रेडी यंग से हो गई। फ्रेडी यंग जो सुल्ताना की गिरफ्तारी की वजह बना था, सुल्ताना की कहानी से इतना प्रभावित हो गया कि उसने सुल्ताना को माफी की अर्जी तैयार करने में मदद दी, लेकिन यह अर्जी रद्द हो गई।

सुल्ताना ने फ्रेडी यंग से कहा कि उसके मरने के बाद उसके सात साल के बेटे को उच्च शिक्षा दिलवाई जाए। फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की इच्छा का सम्मान किया और उसकी मौत की सजा के बाद उसके बेटे को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। शिक्षा प्राप्त करने के बाद वो भारत वापस आया और आईसीएस का एग्जाम पास करने के बाद पुलिस विभाग का एक उच्च अधिकारी बना और वो इंस्पेक्टर जनरल के पद से रिटायर हुआ। 

सुल्ताना सिनेमा में…

सुल्ताना अपने जीवन में ही एक काल्पनिक किरदार बन चुका था। जनता उससे प्यार करती और उसके कैरेक्टर की खूबियों ने साहित्यकारों और लेखकों को अपनी तरफ आकर्षित किया और इसके बारे में हॉलीवुड, बॉलीवुड और लॉलीवुड तीनों फिल्मी क्षेत्रों में फिल्में बनीं। हॉलीवुड में इसके बारे में बनने वाली फिल्म का नाम ‘द लॉन्ग डेविल’ था, जिसमें सुल्ताना का किरदार युल ब्रेनर ने निभाया था।

पाकिस्तान में इसके किरदार पर 1975 में पंजाबी भाषा में फिल्म बनाई गई, जिसमें सुल्ताना का किरदार कलाकार सुधीर ने अदा किया था। सुल्ताना के किरदार पर सुजीत सराफ ने ‘द कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू’ (सुल्ताना डाकू का कबूलनामा) के नाम से एक उपन्यास भी लिखा। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़