आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
2024 लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे राजनीतिक दल अपनी तैयारियों को अमली जामा पहनाने में जुट गए हैं। उधर इस लोकसभा में मोदी सरकार को हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए इंडिया गठबंधन तैयार हो चुका है। कांग्रेस, सपा, आरएलडी समेत तमाम विपक्षी दल एक साथ बीजेपी का मुकाबला करने को तैयार है।
लेकिन इस वक्त सबकी निगाहें बहुजन समाज पार्टी पर टिकी हुई हैं। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) पहले ही इस चुनाव के लिए एकला चलो की राह चुन चुकी हैं, लेकिन इंडिया गठबंधन के कुछ दल मायावती को साथ लाना चाहते हैं।
इसी बीच दावा किया जा रहा है कि मायावती अपने जन्मदिन यानी 15 जनवरी को कोई बड़ा एलान कर सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मायावती अपने पत्ते चुनाव की तारीख का एलान होने के बाद खोल सकती हैं। लेकिन अगर मायावती अकेले लड़ीं तो घाटे का सौदा होगा।
कांग्रेस नेता अजय लल्लू ने की मायावती से अपील
हाल ही में यूपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने हाथ जोड़कर बसपा सुप्रीमो मायावती से इंडिया गठबंधन में शामिल होने का अनुरोध किया था। उधर मायावती के करीबी माने जाने वाले बसपा सांसद मलूक नागर ने इंडिया गठबंधन से बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री चेहरा घोषित करने की मांग कर दी थी।
कांग्रेस नेता अजय कुमार लल्लू ने कहा था कि इस समय के माहौल के चलते इंडिया गठबंधन बहुत जरूरी है। इसलिए हाथ जोड़कर बहनजी से अनुरोध करता हूं कि देश, लोकतंत्र, संविधान, गांव, गरीब, दलित-पिछड़े के आरक्षण को बचाने के लिए बहनजी भी इस गठबंधन का हिस्सा बनें। कांग्रेस चाहती है कि सभी दल एक हों ताकि इस अहंकारी, घमंडी, देश-नौजवान-संविधान-गरीब-दलित विरोधी सरकार को उखाड़ फेंक सकें।
‘मायावती इंडिया गठबंधन के साथ आईं तो तस्वीर बदल जाएगी’
वहीं बसपा सांसद मलूक नागर ने अपने एक बयान में कांग्रेस के दो नेताओं का जिक्र करते हुए कहा था कि कांग्रेस नेता कह रहे है कि यूपी में अगर बसपा साथ नहीं आती तो बीजेपी यूपी में 73 से 75 के बीच सीट जीत जाएगी। यही नहीं, बसपा सांसद ने कहा कि कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि अगर बीजेपी को पूरे देश से हराना है तो बीएसपी को साथ लाना होगा। इसलिए अगर कांग्रेस या गठबंधन के दल दलित प्रधानमंत्री का चेहरा चाहते हैं तो मायावती जी को पीएम उम्मीदवार डिक्लेयर कर दें।
हालांकि बसपा सांसद ने कहा है कि राजस्थान, उत्तराखंड और एमपी में कांग्रेस ने बसपा विधायक तोड़े हैं, इसलिए वे मायावती से मांफी मांगें। बसपा सांसद ने कहा कि अगर कांग्रेस मांफी मांग लेगी तो बात बन सकती है। मायावती जी विचार कर सकती हैं। अगर बसपा साथ आई तो तस्वीर बदल जाएगी। गठबंधन अकेले यूपी में 60 से ज्यादा सीटें जीतेगा।
सपा को मायावती की भूमिका पर विश्वास नहीं
उधर मायावती के इंडिया गठबंधन के साथ आने के सवाल पर समाजवादी पार्टी का कहना है कि सपा चाहती है कि सभी विपक्षी दल साथ आएं, लेकिन वो दल साथ ना आएं जो बीजेपी के साथ खड़े हुए नजर आते हैं। सपा को 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा की भूमिका के चलते अब बसपा पर विश्वास नहीं रह गया है।
सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि बसपा को इंडिया गठबंधन के साथ आने से पहले यह साबित करना होगा कि वह बीजेपी के खिलाफ है। क्योंकि बसपा को जब भी मौका मिला है वह बीजेपी के साथ खड़े नजर आई है। इसलिए सपा बसपा पर भरोसा कैसे कर लें कि बसपा बीजेपी के साथ नहीं है।
सपा बड़ा दल, बसपा को हैसियत के हिसाब से मिलेगी सीट’
सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने कहा कि सपा चाहती है कि यूपी में इंडिया गठबंधन सपा, कांग्रेस, आरएलडी और अन्य जो छोटे दल हैं वो सभी मिलकर चुनाव लड़ें। बसपा का बीजेपी के साथ जो अघोषित गठबंधन है उससे बाहर आए तब देखा जाएगा कि बसपा को गठबंधन का हिस्सा होना चाहिए कि नहीं।
इसके साथ ही सपा प्रवक्ता ने साफ कहा कि सपा यूपी में इंडिया गठबंधन का बड़ा दल है। इसलिए सीटों का बंटवारा यूपी में सपा करेगी। अगर बसपा साथ आती है तो हैसियत के हिसाब से सीट मिलेगी, क्योंकि बसपा समाजवादी पार्टी की बराबरी नहीं कर सकती है।
‘आचार संहिता लगने या चुनाव बाद भी मायावती खोल सकती हैं पत्ते’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद गोस्वामी ने कहा कि बसपा सुप्रीमो मायावती के अगले कदम का का अंदाजा लगाना मुश्किल है। वह कहती कुछ हैं और करती कुछ हैं।
आखिर तक हामी भरने के बाद एनमौके पर पलटने से अटल जी की सरकार गिर गई थी, जबकि बीजेपी ने तीन बार CM बनवाने में मदद की थी। इसलिए उनका क्या स्टैंड रहेगा पहले से कुछ नहीं कहा जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि मायावती चुनाव की तारीखों का एलान होने तक अपने पत्ते ना खोलें।
आचार संहिता लगते ही अपना स्टैंड क्लियर कर दें कि वह किसके साथ जाएंगी। साथ ही यह भी हो सकता है कि मायावती अभी शान्त रहें और चुनाव बाद अपना कदम उठाएं। नतीजे आने के बाद जरूरत के हिसाब से निर्णय लें। चुनाव से पहले पत्ते ना खोलने पर चुनाव बाद दोनों गठबंधन से बात कर सकती हैं। जिसकी सरकार बनने वाली होगी उसके साथ जाने का रास्ता भी खुला रहेगा।
एकला चलो वाली मायावती धर्म संकट में फंसी
इसके साथ ही वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि इतना जरूर है कि मायावती यूपी में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं। हालांकि इस दौरान कुछ वोट उनका इधर-उधर जरूर हुआ है। उन्होंने कहा कि मायावती इंडिया गठबंधन को लेकर सामने बड़ा धर्म संकट है। उसका एक बड़ा कारण कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे है क्योंकि वह भी दलित समाज से आते हैं। मायावती को चिंता है कि कहीं मल्लिकार्जुन के दौरे से उनका वोटबैंक ना खिसक जाए।
वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अगर मायावती BJP के साथ जाती हैं तो बीजेपी उन्हें 10 से ज्यादा सीटें नहीं देगी। वहीं अगर मायावती अकेले चुनाव लड़ती है तो उनका ग्राफ 10 से नीचे आकर 2-3 तक सिमट सकता है, अगर जीरो पर आ जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसलिए मायावती अगर अकेले लड़ेगी तो घाटे का सौदा होगा। क्योंकि इसबार के राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं।
मुस्लिम वोट बसपा को नहीं मिलेगा चाहे मुस्लिम उम्मीदवार ही क्यों ना उतार दें। इसबार मुस्लिम पूरा इंडिया गठबंधन के साथ जाएगा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."