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November 22, 2024 7:27 pm

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अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ राज्य में अत्याचार ज्यादा आगामी चुनाव में क्या होगा असर ?

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सुरेंद्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट

नागौर: राजस्थान में विधानसभा चुनाव होना है। बीजेपी-कांग्रेस सहित चुनाव लड़ रही सभी पार्टियां जीतने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगा रही हैं। हालांकि राज्य की कुछ ऐसी भी सीटें है, जहां वोटरों के मन में सरकार को लेकर निराशा है। नागौर जिले की परबतसर विधानसभा क्षेत्र के बिदियाद गांव दलित बहुल है। यहां रहने वाले लोगों ने अपनी पीड़ा बयां की। ग्रामीण फूला देवी घर बन हुआ था, लेकिन इसमें इसमें शौचालय नहीं था। अपने नवजात शिशु को गोद में लिए हुए 32 वर्षीय फूला देवी ने कहा, ‘हमने शौचालय को अपने पैसे से बनवाया है। सरकारी फंड के लिए हमारे आवेदन बिना किसी कारण के कई बार खारिज कर दिए गए।’ उन्होंने कहा कि, ‘हमारे घरों में शौचालय, राशन… सब कुछ ऊंची जाति के लोगों की दया पर है।’

फूला देवी की पड़ोसी कॉलेज में पढ़ने वाली 21 वर्षीय छात्रा शारदा मेघवाल ने कहा कि सरकारी योजना के तहत शौचालय के लिए उनके परिवार के आवेदन भी खारिज कर दिए गए थे। बाद में पिता ने कुछ लोगों से पैसे उधार लिए और शौचालय बनवाया।

एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों के खिलाफ अपराध/अत्याचार के 7,524 मामले दर्ज किए गए। 2020 में यह आंकड़ा 7017 और 2019 में 6794 था। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में एससी समुदायों के खिलाफ अपराध/अत्याचार में राजस्थान देश में दूसरे स्थान पर था।

यहां हर जगह भेदभाव: ग्रामीण फूला देवी

फूला देवी ने कहा, ‘हर जगह भेदभाव है। जब हम मनरेगा के काम के लिए जाते हैं, तो हमारी उपस्थिति तब तक दर्ज नहीं की जाती, जब तक हम ठेकेदार के सभी ऑर्डर पूरे नहीं कर लेते, जो ज्यादातर ऊंची जातियों से होते हैं।’

पीडीएस दुकानों पर भी राशन मुश्किल से मिलता: दलित महिला

गांव की एक अन्य दलित महिला सीमा ने कहा कि ‘उनके समुदाय के परिवारों को पीडीएस दुकानों पर राज्य सरकार की ओर से दिया जाने वाला राशन मुश्किल से मिलता है। हमें हमेशा कहा जाता है कि स्टॉक ख़त्म हो गया है, लेकिन हम जानते हैं कि यह ख़त्म नहीं हुआ है। वे इसे हमें नहीं देना चाहते हैं और इसे खुले बाज़ार में बेचना चाहते हैं।’ उनसे पूछा कि हम किससे इसकी शिकायत करें?

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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