Explore

Search
Close this search box.

Search

11 January 2025 10:24 pm

लेटेस्ट न्यूज़

मैं हर आंसू का बदला लूंगी…बाप से इतनी नफ़रत कि बेटी लटक गई सूली पर, खबर आपको हिला देगी 

41 पाठकों ने अब तक पढा

सविता सूर्यवंशी की रिपोर्ट 

नई दिल्ली : ‘पापा, आई हेट यू…मेरी मौत की एक ही वजह है और वो हैं आप…मां मुझे माफ कर दो, मैं इतने तनाव में नहीं जी सकती हूं। मेरी आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी। मैं अपने हर आंसू का बदला लूंगी।’ गुजरात के राजकोट के धोराजी हॉस्टल में रहकर 11वीं की पढ़ाई करने वाली दिव्या डोडिया ने ये लिखकर अपनी जान दे दी। हॉस्टल के कमरा नंबर 318 में उसकी लाश पंखे से लटकती मिली। सुसाइड नोट में उसने अपनी मौत के लिए पिता को कसूरवार ठहराया है। दिल को झकझोर देने वाली ये घटना चौंकाने वाली है। हर पैरेंट्स की चिंता बढ़ाने वाली है, चौकन्ना करने वाली है।

दिव्या जिसकी गोद में पली-बढ़ी, जिसकी उंगलियां पकड़कर चलना सीखी होगी, कभी तोतली आवाज में पापा-पापा बोली होगी। कभी कंधे पर बैठकर घूमी होगी तो पीठ पर बैठकर चल मेरा घोड़ा टुक-टुक टुक कहकर खिलखिलाई होगी, सीने से लिपटी होगी। उसकी रगों में जिसका खून बह रहा था, आखिर ऐसा क्या हुआ जो उसी से उसे नफरत हो गई। इतनी नफरत की बेटी ने जान दे दी?

दिव्या जिसकी गोद में पली-बढ़ी, जिसकी उंगलियां पकड़कर चलना सीखी होगी, कभी तोतली आवाज में पापा-पापा बोली होगी। कभी कंधे पर बैठकर घूमी होगी तो पीठ पर बैठकर चल मेरा घोड़ा टुक-टुक टुक कहकर खिलखिलाई होगी, सीने से लिपटी होगी। उसकी रगों में जिसका खून बह रहा था, आखिर ऐसा क्या हुआ जो उसी से उसे नफरत हो गई। इतनी नफरत की बेटी ने जान दे दी?

दिव्या ने जो सुसाइड नोट छोड़ा उसमें लिखा है, ‘पापा, मेरी मौत की एक ही वजह है और वो हैं आप। मैं तुमसे बहुत नफरत करती हूं क्योंकि आपने मुझे कभी अपनी बेटी नहीं समझा। आप केवल आदेश देना और गुस्सा जानते हैं।’ उसने मां के लिखा, ‘मां जब भी याद करोगी मैं तुम्हारे साथ होऊंगी। मुझे माफ कर दो मां। मैं इतने तनाव में नहीं जी सकती हूं। मेरी आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी। मैंअपने हर आंसू का बदला लूंगी।’

दिव्या के ये आखिरी शब्द दिलों को चीर देने वाले हैं। उसके सुसाइड नोट से साफ है कि कहीं न कहीं बाप-बेटी के बीच कम्यूनिकेशन गैप था। संवाद की कमी थी। एक बार अपने बाप से दिल की बात कह ली होती, गिले-शिकवे कर ली होती, भड़ास निकाल ली होती तो शायद आज दिव्या जिंदा होती। बेटी की आत्महत्या के लिए वो अभागा बाप जिम्मेदार है या नहीं, ये तो कानून तय करेगा, अदालत तय करेगी लेकिन उसने भी अगर एक बार बेटी को समझने की कोशिश की होती तो शायद वह आज जिंदा होती। राजकोट की ये हृदयविदारक घटना हर मां-बाप की आंखें खोलने वाली है।

दिव्या 11वीं में पढ़ती थी। किशोरावस्था में थी। वहीं अवस्था जिसे मनोवैज्ञानिक असीम संघर्ष, तनाव और तूफान का काल कहते हैं। स्टैनली हॉल के शब्दों में, ‘किशोरावस्था तनाव, तूफान और संघर्ष का काल है।’ 12 वर्ष से 21 साल की उम्र को किशोरावस्था कहते हैं जो बहुत ही नाजुक अवस्था है। यही उम्र बनने और बिगड़ने की होती है। ऊर्जा ऐसी कि कुछ भी असंभव नहीं लगता। लेकिन भावनात्मक तूफान भी उमड़ता-घुमड़ता है। द्वंद्व चलता रहता है। इस उम्र में माता-पिता से संघर्ष, जिद्द, जुनून, मूड का उखड़ना और दिशा भटकना मुमकिन है। इस नाजुक उमर में बच्चों को परिवार से सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। आपको दोस्त बनकर अपने बच्चों को समझना होगा।

दिव्या ने अपने सुसाइड नोट में आरोप लगाया है कि उसके पिता ने उसे कभी अपनी बेटी नहीं समझा, हमेशा आदेश दिया, गुस्सा दिखाया। जाहिर है, बाप अपनी बेटी को समझ नहीं पाया। बेटी घुटती रही मगर बाप उसका दर्द पढ़ नहीं पाया। इस उम्र में बच्चों को ये भी गलतफहमी हो सकती है कि उसे उतना प्यार नहीं मिल रहा जितना उसके भाई को या उसकी बहन को। मां-बाप पर अपना अलग दबाव होता है। कभी कामकाज का तो कभी किसी अन्य चीज का दबाव। लेकिन उन्हें अपने बच्चों के लिए समय निकालना ही होगा। अपने बच्चों में कभी भेदभाव न करे। बच्चों को कभी ऐसा न लगे कि ये सिर्फ हुक्म बजाते हैं, गुस्सा करते हैं, डराते हैं। हर बच्चा अलग है। उनकी तुलना से बाज आएं। ध्यान रखें कि पढ़ाई-लिखाई को लेकर कहीं आप बच्चों पर अनुचित दबाव तो नहीं डाल रहे। कई बार मां-बाप अपनी अधूरी ख्वाहिशों को अपने बच्चों में पालने लगते हैं, उन पर अपनी अधूरी ख्वाहिशों का बोझ न लादें। ये बेहद जरूरी है कि बच्चों को लेकर आपका व्यवहार दोस्ताना हो, ऐसा कि बच्चे बेहिचक आपसे अपनी बात कह सकें। अगर इस तरह का रिश्ता दिव्या और उसके पिता का रहा होता तो वो आज जिंदा होती।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़