मुरारी पासवान की रिपोर्ट
कांडी : झारखंड का सीमावर्ती प्रखण्ड कांडी वर्षों से तकनीकी व व्यवसायिक शिक्षा से वंचित हैं। प्रखण्ड मुख्यालय में 20-21 साल पूर्व निर्मित आईटीआई भवन का आजतक ताला नहीं खुला। वर्षो से यह भवन जंगल झाड़ी में घिरकर रह गया है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अति महत्वाकांक्षी कौशल विकास कार्यक्रम यहां खाऊं पकाऊ बनकर रह गया है।
सोन नदी के तट व झारखंड बिहार के सरहद पर अवस्थित कांडी प्रखंड की आबादी करीब सवा लाख की आसपास है। पहले से कांडी प्रखण्ड में शामिल तेरह पंचायतों में तीन पंचायत और शामिल हो गए हैं। लिहाजा इसकी अच्छी खासी आबादी हो गई है। इसमें 70 से 80 हज़ार युवाओं की संख्या हैं। इतनी विशाल आबादी के सवा लाख से भी अधिक हाथ बिना हुनर के हैं। और बिना हुनर के ये हाथ अकुशल मजदूर के रूप में मात्र ईट, सिमेंट, गिट्टी ढोने, मिट्टी खोदने या बहुत हुआ तो सुदूर प्रदेशों में सरिया सैट्रिंग ढोने के लिए लाचार हैं।
बाहर जाकर बेहद खतरनाक परिस्थितियों में अनस्किल्ड मजदूर के रूप में काम करते हुए प्रति वर्ष औसतन दर्जन डेढ़ दर्जन मजदूरों की दुर्घटनाग्रस्त होकर मौत हो जाती हैं। राष्ट्र निर्माण करने में सक्षम युवा शक्ति की ऐसी दुर्दशा कांडी में हैं।
कांडी प्रखण्ड की ऐसी करुण व्यथा कथा बयान करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नगर मंत्री प्रिन्स कुमार सिंह ने कहा की आजतक इस अति भयावह परिस्थिति की ओर किसी जनप्रतिनिधि ने ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। इसी करण कांडी प्रखण्डवासी युवाओं को स्थानीय स्तर पर तकनीकी शिक्षण प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। जबकि उन्होंने कई बार विभिन्न माध्यमों से सरकार व प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने का काम किया है। बावजूद इसके कभी किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
भवन निर्माण से लोगों जगी आस हो गई निराश
कांडी में आईटीआई भवन का निर्माण से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। उन्हे अपने घर के निकट ही इलेक्ट्रिशियन, फिटर, वेल्डर, मोल्डर, टर्नर आदि की ट्रेनिंग लेकर रोजी रोजगार से जुड़ जानें की आस जगने से बेहद खुशी हुई थी। लेकिन बेहद लम्बे इन्तजार ने आखिर दम तोड़ दिया।
बिना स्वीकृति के ठेकेदारी के लिए बना दिया गया भवन
बिना आईटीआई संस्थान की स्वीकृति के वर्ष 2001-02 में ही दस लाख रुपए की प्राक्कलित राशि से मात्र ठेकेदारी के लिए कांडी में आईटीआई संस्थान का भवन निर्माण करा दिया गया। तब से लेकर आज तक न तो कांडी में आईटीआई खुला न इस भवन का ताला खुला। आज अनुपयोगी पड़े इस भवन के आस पास उगी झाड़ियों ने जंगल का रूप ले लिया है।
कहीं कागज़ पर तो नहीं चल रहा आईटीआई : प्रिन्स
सूत्रों की माने तो पांच साल पहले ही श्रम विभाग के हवाले से कांडी आईटीआई को शुरू करने की बात कही गई थीं। न्यूनतम दस प्रशिक्षुओं के एडमिशन का भी हवाला दिया गया था। इस हालत में कहीं कागज़ पर ही कांडी आईटीआई चल रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। प्रिन्स ने कहा की यह जांच का विषय है।
कौशल विकास का दावा, पर विकास का पता नहीं
कांडी में कई नामी बेनामी संस्थान कौशल विकास का भी दावा करते हैं।
पर ये किसके कौशल का विकास कर रहे हैं पता नहीं चलता। प्रिन्स कुमार सिंह ने कहा कि प्रशिक्षुओं को चिन्हित कर उन्हें दी गई ट्रेनिंग की प्रायोगिक जांच करने के बाद ही सही स्थिति सामने आ पाएगी। कहा की निष्पक्ष जांच के बाद बड़ा खुलासा हो सकता हैं।
Author: samachar
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