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आज का मुद्दा

“अजान” की आंच बड़ी तेज जलने लगी और झुलसने लगी मानसिकता इंसानों की

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नागार्जुन

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार, आवासीय इलाकों में दिन में ध्वनि की सीमा 55 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल होनी चाहिए। इसी तरह, औद्योगिक इलाकों में दिन में 75 डेसीबल व रात में 70 डेसीबल तथा व्यावसायिक इलाकों में दिन में 65 और रात में 55 डेसीबल स्तर तक ध्वनि की अनुमति है।

महाराष्ट्र में मस्जिद से लाउडस्पीकर पर उठा अजान का शोर कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के कई राज्यों में पहुंच चुका है। हर तरफ से इस कर्कश-कानफाड़ू शोर को बंद करने की मांग की जा रही है। लाउडस्पीकर के शोर से मस्जिद के आसपास रहने वाले लाखों लोगों की नींद में खलल तो पड़ता ही है, मरीजों, बच्चों और विद्यार्थियों को भी परेशानी होती है। हिंदू संगठन इसके विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं और इस पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। वहीं, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस, सपा और जद(एस) सहित तमाम सेकुलर और वामपंथी दल हिंदू संगठनों के विरोध को भाजपा की लिखी पटकथा बता रहे हैं। राकांपा प्रमुख शरद पवार ने तो मस्जिद में लाउडस्पीकर के विरुद्ध आवाज उठाने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार को कार्रवाई करने के लिए कहा है। सवाल यह है कि लाउडस्पीकर पर अजान क्यों? शांति से जीने की किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को क्या मजहबी प्रथाओं की आड़ में बाधित किया जा सकता है? क्या लाउडस्पीकर पर अजान देना इस्लाम और शरिया का हिस्सा है भी? सवाल यह भी है कि क्या सेकुलरिज्म की आड़ में अन्य मतावलंबियों की आस्था पर चोट करने, उन्हें ललकारने की छूट एक मजहब विशेष को दी जा सकती है? किसी मजहब विशेष की जिद के लिए अदालतों के निर्देश को नजरअंदाज करना एक लोकतांत्रिक देश और सभ्य समाज में उचित है? इन सवालों के जवाब कौन देगा?

उधर, राज ठाकरे पर ठाणे में आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे ठाणे में एक समारोह में तलवार लहराते दिख रहे हैं। उनके साथ मनसे के दो कार्यकर्ताओं को भी नामजद किया गया है। अगर राज ठाकरे गलत हैं तो महाविकास अघाड़ी सरकार उनके विरुद्ध नफरत फैलाने का मामला दर्ज करती। बहरहाल, बढ़ते विवाद के बीच महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान की सरकारों ने लाउडस्पीकर पर रोक लगाने का आदेश दे दिया है।

महाराष्ट्र से बिहार तक विरोध

महाराष्ट्र में शिवसेना, राकांपा, सपा तथा कर्नाटक में कांग्रेस मुसलमानों के पक्ष में खड़ी है। इधर, विरोध की आंच बिहार तक पहुंच गई है। राज्य के खनन मंत्री जनक राम ने भी मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर अजान का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर तेज आवाज में पांच वक्त की अजान से आम आदमी से लेकर छात्रों तक को परेशानी होती है। जब होली और दीपावली के दौरान डीजे या अन्य चीजों पर रोक लगाई जाती है तो मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर भी रोक होनी चाहिए। वहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा है कि लाउडस्पीकर विवाद की जड़ कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति है। हर मुद्दे पर बात करके लोगों को समझाना पड़ता है। मुख्यमंत्री बोम्मई ने कहा कि केवल अजान ही नहीं, सभी तरह के लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। यह उच्च न्यायालय का आदेश है। जरूरी नहीं कि हर मुद्दे पर लोगों से बात की जाए। अरागा ज्ञानेंद्र ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के शिवकुमार से पूछा कि उन्होंने नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हिजाब के मुद्दे पर बोलने क्यों नहीं दिया? यह और कुछ नहीं, बल्कि उनकी साजिश है। हालांकि, सिद्धारमैया ने उलटे यह आरोप लगाया कि भाजपा ने अजान विवाद पैदा किया है। मस्जिदों में तो बरसों से अजान दी जाती रही है। भाजपा अब क्यों इसे मुद्दा बना रही है।

लाउडस्पीकर पर फैसला कब-कब?

मस्जिदों में अजान के लिए प्रयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर पर देश के उच्च न्यायालयों के अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद अभी तक लाउडस्पीकर के शोर पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकी।

सर्वोच्च न्यायालय

18 जुलाई, 2005 को रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूर्ण पाबंदी लगाई। कुछ राज्य सरकारों की याचिका पर उसी साल 28 अक्तूबर को त्योहारों के दौरान साल में 15 दिन आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति राज्य सरकारों यह हिदायत दी कि पाबंदी में ढील देने का अधिकार अधिकारियों को नहीं दिया जा सकता।

बॉम्बे उच्च न्यायालय

अगस्त 2016 में फैसला दिया कि लाउडस्पीकर बजाना मौलिक अधिकार की श्रेणी में नहीं आता। इसलिए कोई मजहब या संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता कि संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत उसे लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने का मौलिक अधिकार मिला है। सभी पांथिक स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण के नियमों का कड़ाई से पालन हो और बिना अनुमति किसी को लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाए।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय

26 जून, 2018 को लाउडस्पीकर के लिए 5 डेसीबल की सीमा तय करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि संबंधित अधिकारियों या प्राधिकरण की लिखित अनुमति के बिना पांथिक स्थलों सहित किसी भी व्यक्ति या संगठन को लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करने दिया जाए। बाद में एक याचिका पर जुलाई 2020 ‘भूल सुधार’ करते हुए अदालत ने आदेश में संशोधन किया।

कर्नाटक उच्च न्यायालय

सितंबर 2018 में रात 10 बजे के बाद लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया। लाउडस्पीकर पर पाबंदी लगाते समय अधिकारियों को अनुमेय ध्वनि स्तरों को निर्दिष्ट करने वाले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय

उडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल केवल पूर्व अनुमति से ही किया जा सकता है। लेकिन ध्वनि का मानक स्तर 10 डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए। पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि प्राधिकरण की लिखित अनुमति के बिना दिन में भी पांथिक निकायों सहित कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर का इस्तेमाल न करें।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय

15 मई, 2020 को दिए अपने फैसले में कहा कि लाउडस्पीकर इस्लाम का हिस्सा नहीं है। मस्जिदों की मीनारों से मुअज्जिन अजान तो दे सकते हैं, लेकिन लाउडस्पीकर या इस तरह के उपकरण का उपयोग नहीं कर सकते।

कर्नाटक उच्च न्यायालय

11 जनवरी, 2021 को राज्य सरकार को पांथिक स्थलों पर लगे अवैध लाउडस्पीकरों को हटाने का निर्देश दिया। राज्य सरकार को तत्काल पुलिस और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश देने तथा ध्वनि प्रदूषण कानून का उल्लंघन करने पर कार्रवाई का निर्देश देने को कहा। न्यायालय ने नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदत्त अधिकारों की सुरक्षा करने का निर्देश भी दिया था। इसके बाद नवंबर 2021 में न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा था कि कानून के किस प्रावधान के तहत मस्जिदों में लाउडस्पीकर और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली लगाने की अनुमति दी गई। इनके इस्तेमाल को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

पहली बार प्रयोग

लाउडस्पीकर का आविष्कार 1898 में हुआ और 1936 के आसपास पहली बार सिंगापुर की सुल्तान मस्जिद में अजान के लिए इसका प्रयोग किया गया। तब कहा गया कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज एक मील तक सुनाई देगी।

इन देशों में पाबंदी

ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड,स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया, फ्रांस, नॉर्वे, बेल्जियम, फ्रांस और नाइजीरिया के लागोस शहर में लाउडस्पीकर अजान के लिए ध्वनि सीमा तय है। दुबई, तुर्की और मोरक्को में अजान के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं होता। इज्राएल में भी इस पर पाबंदी है। इंडोनेशिया में भी लाउडस्पीकर के लिए दिशानिर्देश हैं।

विरोध पहली बार नहीं

सवाल यह है कि लाउडस्पीकर पर अजान क्यों? इसका विरोध पहली बार नहीं हो रहा है। देश के कुछ हिस्सों में इसके विरुद्ध आवाजें उठती रही हैं और समय-समय पर देश की अदालतों ने भी इस पर फैसले दिए हैं। 2017 में पार्श्व गायक सोनू निगम भी इसके विरुद्ध आवाज उठा चुके हैं। लाउडस्पीकर पर अजान के खिलाफ उन्होंने कुछ ट्वीट किए थे। इसके बाद सेकुलर, वामपंथी और कट्टरपंथी उन पर टूट पड़े थे। कट्टरपंथियों ने तो उनके खिलाफ फतवा तक जारी किया था। उस समय सोनू निगम ने केवल इतना कहा था कि लाउडस्पीकर से दी जाने वाली अजान से उनकी नींद खराब होती है। वे मुस्लिम नहीं हैं, फिर भी इस मजहबी कट्टरता को क्यों बर्दाश्त करें? इस बार मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने यह मुद्दा उठाया तो सेकुलर दलों ने उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। राज ठाकरे ने 2 अप्रैल को शिवाजी पार्क में आयोजित एक रैली में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मस्जिदों में लाउडस्पीकर इतनी तेज आवाज में क्यों बजाए जाते हैं? अगर इसे नहीं रोका गया तो मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकर पर इससे भी तेज आवाज में हनुमान चालीसा बजाया जाएगा।’’ राज ठाकरे ने स्पष्ट किया, ‘‘हम किसी मजहब विशेष की प्रार्थना के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ अपने ही मजहब पर गर्व है। यह मुद्दा सामाजिक है, मजहबी नहीं।’’ लेकिन महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार में शामिल दलों के नेता उन पर टूट पड़े। इससे पहले, जनवरी में मध्य प्रदेश के इंदौर में मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के खिलाफ वकीलों ने मोर्चा खोला था। 300 से अधिक वकीलों ने ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर शहर की मस्जिदों में बिना अनुमति लाउडस्पीकर से दी जा रही अजान से पैदा होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने की मांग की थी।

जिद नहीं तो और क्या है?

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने दो साल पहले प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत की थी कि रोज सुबह करीब 5:50 बजे अजान के कारण उनकी नींद में खलल पड़ता है। नींद बाधित होने के बाद तमाम कोशिशों के बाद भी वे सो नहीं पातीं। इस कारण दिन भर उन्हें सिरसर्द होता रहता है और कामकाज भी प्रभावित होता है। उनकी शिकायत पर नियमानुसार कार्रवाई भी हुई, लेकिन मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय चले गए। 15 मई, 2020 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में लाउडस्पीकर से अजान पर रोक को सही बताया। साथ ही, कहा कि अजान इस्लाम का हिस्सा है, लेकिन लाउडस्पीकर नहीं। जब लाउडस्पीकर नहीं था, तब भी अजान होती थी। उस समय भी लोग नमाज के लिए मस्जिदों में इकट्ठे होते थे। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि लाउडस्पीकर से अजान पर रोक अनुच्छेद-25 के तहत मिली पांथिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद-21 स्वस्थ जीवन का अधिकार देता है। बोलने या अभिव्यक्ति की आजादी किसी को जबरदस्ती सुनाने का अधिकार नहीं देती। इसलिए बिना अनुमति मानक डेसीबल से तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने की छूट नहीं दी जा सकती है। लेकिन कट्टरपंथी मुसलमानों ने इस फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती देने की बात कही थी। जिद के लिए न्यायालय के निर्णय को नहीं मानना कहां तक उचित है?

तर्क कैसे-कैसे?

अब शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत कह रहे हैं कि मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकरों को हटाने की बात करने वाले राज ठाकरे पहले यह देखें कि भाजपा शासित राज्यों में क्या अजान बंद हो गई है? मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटा लिए गए हैं? महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल ने भी राज ठाकरे के बयान की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह के बयान समाज को विभाजित करने का प्रयास मात्र है। वहीं, सुन्नी उलेमा परिषद ने ‘हिंदू शक्तियों’ पर देश को नफरत की ओर धकेलने का आरोप लगाया है। परिषद के महासचिव हाजी मोहम्मद सालीस का तर्क है कि अजान तो दो-तीन मिनट में खत्म हो जाती है, इसलिए इससे ध्वनि प्रदूषण नहीं होता। हिंदुओं को इससे भी समस्या है, लेकिन वे अपने 24 घंटे के अखंड पाठ में होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नहीं देखते। सपा सांसद शफीकुर्रहमान का भी यही तर्क है। उन्होंने कहा है कि अजान को लेकर विवाद खड़ा कर देश में नफरत फैलाने की साजिश रची जा रही है। अजान केवल 2-3 मिनट की होती है, इतने समय में ध्वनि प्रदूषण कैसे फैल सकता है? मुस्लिम समुदाय को कभी अजान तो कभी किसी और चीज के लिए हमेशा परेशान किया जाता है। नागपुर जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद हाफिजुर रहमान का कहना है कि मस्जिद एक मजहबी स्थल है और अजान एक तरह की घोषणा है, जो ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में नहीं आती। इसे छोड़कर बाकी आयोजन अधिक शोर पैदा करते हैं।

मुस्लिम भी परेशान

मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर तेज आवाज में अजान का विरोध केवल हिंदू या हिंदू संगठन ही नहीं कर रहे हैं, मुसलमान भी इससे परेशान हैं। हरियाणा के पानीपत जिले के मोहम्मद आजम पेशे से अधिवक्ता हैं। उन्होंने एसपी और डीसी को लिखित शिकायत देकर इस शोर को बंद कराने की मांग की है। इसमें उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया है, जिसमें रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर नहीं बजाने के निर्देश दिए गए हैं। उनका कहना है कि अदालत ने हर जिले के एसपी और डीसी को इस शोर को रोकने की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बावजूद पानीपत में सुबह 3 बजे ही लाउडस्पीकर पर अजान शुरू हो जाती है। इससे परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों और मरीजों को परेशानी होती है। शिकायत करने के बाद उन्हें इस्लाम छोड़ने की नसीहत दे रहे हैं। मोहम्मद आजम का कहना है कि जरूरत पड़ी तो देशहित में वे इस्लाम छोड़ भी सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि 7 दिन में लाउडस्पीकर नहीं हटाए गए तो वे उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल करेंगे।- साभार

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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