
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
कानपुर की 74 वर्षीय बुजुर्ग महिला को उनकी बेटी और दामाद ने बीमार अवस्था में वाराणसी के घाट पर छोड़ दिया। महिला तीन दिन तक लावारिस पड़ी रहीं, अब अस्पताल में भर्ती हैं। जानिए पूरी कहानी।
वाराणसी से दिल को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक 74 वर्षीय बुजुर्ग महिला को उनकी अपनी बेटी और दामाद ने मणिकर्णिका घाट पर अकेला छोड़ दिया। महिला व्हीलचेयर पर थीं और बीमार भी, फिर भी उन्हें घाट पर बेसहारा छोड़ दिया गया।
घटना का वीडियो हुआ वायरल
जिस समय महिला घाट पर पड़ी थीं, किसी राहगीर ने उनका वीडियो बना लिया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया और महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
अस्पताल के लावारिस वार्ड में हो रही देखभाल
अब बुजुर्ग महिला को अस्पताल के लावारिस वार्ड में भर्ती कर दिया गया है। महिला कर्मचारियों ने उन्हें नहलाकर साफ कपड़े पहनाए। उनकी पीठ और हाथों पर चोट के कई निशान भी पाए गए हैं, जिससे संदेह होता है कि उनके साथ मारपीट भी की गई थी।
कहां की रहने वाली हैं महिला?
बुजुर्ग महिला ने अपना नाम तो नहीं बताया, परंतु उन्होंने खुद को कानपुर के ‘पटकापुर’ क्षेत्र का निवासी बताया। उनके अनुसार, उनके पति का नाम राजकुमार है। जैसे ही कोई उनकी बेटी का नाम पूछता है, वो चुप हो जाती हैं और रोने लगती हैं। इससे स्पष्ट है कि बेटी के नाम से उन्हें गहरा आघात पहुंचा है।
तीन दिन तक घाट पर पड़ी रहीं लावारिस
जानकारी के अनुसार, बुजुर्ग महिला तीन दिनों तक मणिकर्णिका घाट पर लावारिस हालत में पड़ी रहीं। इस दौरान उनके पास केवल एक थैला था जिसमें एक स्टील का गिलास, कटोरी, चम्मच और कुछ कपड़े रखे थे। चौंकाने वाली बात यह है कि उनकी बेटी ने उन्हें एक रूपया तक नहीं दिया और यूँ ही छोड़ गई।
मां के आंसू और बेटी का नाम
सोमवार को एक सफाईकर्मी जब उन्हें शौच के लिए लेकर गई तो महिला जोर-जोर से रोने लगीं। उन्होंने बताया कि उनका कोई बेटा नहीं है, बस एक ही बेटी है जिसने उन्हें यहाँ छोड़ दिया। वे बार-बार बेटी को याद करती हैं, लेकिन उसका नाम नहीं बतातीं।
बेटी ने साथ रखने से किया इनकार
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो महिला की बेटी और दामाद ने साफ मना कर दिया है कि वे अब उन्हें साथ नहीं रख सकते। यह अमानवीय व्यवहार समाज के उस कटु यथार्थ को उजागर करता है जिसमें वृद्धजनों के प्रति संवेदना लुप्त होती जा रही है।
यह घटना हमें झकझोर देती है कि जब अपने ही अपनों का साथ छोड़ दें, तो बुजुर्गों का जीवन कितना कठिन हो सकता है। यह केवल एक महिला की कहानी नहीं, बल्कि उन सभी बुजुर्गों का प्रतिनिधित्व करती है, जो अपने ही बच्चों के हाथों उपेक्षा का शिकार होते हैं।