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आज का मुद्दा

सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा उत्सव, या सोशल मीडिया के लिए ‘वायरल कुंभ’?

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

जब भी महाकुंभ का आयोजन होता है, अखबारों में एक सुर्खी बार-बार पढ़ने को मिलती है— “आस्था का सैलाब”। यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि उस विराट जनसमूह का सटीक चित्रण है, जो अपनी श्रद्धा और निष्ठा के साथ संगम में स्नान करने उमड़ पड़ता है। देश के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लाखों लोग इस पवित्र आयोजन में भाग लेने आते हैं। दुनिया में धार्मिक आस्था के नाम पर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक जगह एकत्रित होने का दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता।

लेकिन इतने विशाल आयोजन को व्यवस्थित रूप से संचालित रखना हमेशा से स्थानीय प्रशासन के लिए एक चुनौती रहा है। कुंभ में आने वाले श्रद्धालु, उनकी धार्मिक निष्ठा और अनुशासन के बिना, इसे सुचारू रूप से संपन्न करना असंभव होता। यह वही स्थान है, जहां वर्षों से अनगिनत किंवदंतियां जन्म लेती आई हैं— अपनों से बिछड़ने और फिर मिलने की भावनात्मक कहानियां इस मेले की लोक संस्कृति का अभिन्न अंग बन चुकी हैं।

आस्था और प्रबंधन का संगम

महाकुंभ सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपने बेहतरीन प्रबंधन के लिए भी दुनिया भर के शोधकर्ताओं और प्रबंधन विशेषज्ञों को आकर्षित करता है। विदेशी पर्यटक जहां इस आयोजन की भव्यता से चकित होते हैं, वहीं कई विश्वविख्यात संस्थानों के छात्र और प्रोफेसर यह समझने आते हैं कि कैसे इतनी बड़ी भीड़ के बावजूद कुंभ मेले को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जाता है। यही कारण है कि यह आयोजन धार्मिक अनुष्ठान से आगे बढ़कर एक वैश्विक अध्ययन का विषय बन गया है।

कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियां न केवल इस मेले को देखने आती हैं, बल्कि भारतीय सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं से प्रभावित होकर साधु-संतों से दीक्षा भी लेती हैं। प्रयागराज में इस बार का महाकुंभ भी इस परंपरा से अलग नहीं है।

सोशल मीडिया की नई भूमिका और बदलता परिदृश्य

हालांकि, इस बार के कुंभ में एक नया पहलू जुड़ गया है— सोशल मीडिया। अब यह आयोजन न केवल श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं को आकर्षित कर रहा है, बल्कि सैकड़ों यूट्यूबर, सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर और रील बनाने वालों का भी एक नया संसार यहां बस चुका है।

यह नया वर्ग कुंभ को किसी धार्मिक आयोजन से अधिक “कंटेंट क्रिएशन” का मंच मान रहा है। कैमरे और मोबाइल थामे ये लोग हर कोने में ऐसे विषयों की तलाश कर रहे हैं, जो अधिक से अधिक व्यूज़ और लाइक्स दिला सके। इन डिजिटल रिपोर्टरों को कोई ऐसा बैरागी मिल जाता है, जिसने किसी प्रतिष्ठित आईआईटी से पढ़ाई करने के बाद लाखों की नौकरी छोड़कर संन्यास ले लिया। उन्हें कोई बॉलीवुड की चर्चित पूर्व अभिनेत्री दिख जाती है, जिसे महामंडलेश्वर की उपाधि मिल चुकी है। किसी युवती की तस्वीर वायरल होती है तो कोई नागा साधु अपने अनूठे अंदाज में उनकी उत्सुकता का केंद्र बन जाता है।

रील और वायरल कंटेंट की होड़

कुंभ हमेशा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन सोशल मीडिया की इस नई पीढ़ी के लिए यह केवल आस्था का महापर्व नहीं, बल्कि अनगिनत रील और वीडियो बनाने का मंच बन चुका है।

आज के डिजिटल दौर में जब वीडियो बनाकर अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचाना और उससे पैसा कमाना लाखों युवाओं का पसंदीदा शौक बन चुका है, तब यह कोई आश्चर्य की बात नहीं।

लेकिन इन यूट्यूबरों और कंटेंट क्रिएटर्स को यह समझना मुश्किल लगता है कि कोई व्यक्ति अपनी ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़कर साधु जीवन क्यों अपनाता है। कोई साधु अपनी जटाओं में अनाज उगाता है, कोई कड़ाके की ठंड में बिना वस्त्रों के रहता है, कोई सालों से एक पैर पर खड़ा तपस्या कर रहा है— ये सभी चीजें सोशल मीडिया के लिए “वायरल कंटेंट” बन चुकी हैं।

उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं कि सनातन परंपरा में साधु-संतों और बैरागियों की यह जीवनशैली सदियों से चली आ रही है। ऐसे कई उदाहरण इतिहास में मिल जाएंगे, जहां बड़े व्यवसायी, आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के छात्र या फिल्मी हस्तियां भी आध्यात्मिक शांति की तलाश में संन्यासी जीवन अपना चुके हैं।

आध्यात्मिकता को तमाशा बनने से बचाना होगा

इस बार के कुंभ में चर्चित आईआईटी बाबा पहले और आखिरी बैरागी नहीं हैं, जिन्होंने ऐसा किया। न ही ममता कुलकर्णी पहली अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अध्यात्म की राह चुनी। इससे पहले भी कई प्रसिद्ध अभिनेता और अभिनेत्रियां, जैसे परवीन बाबी और विनोद खन्ना, मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतोष की खोज में संन्यास की ओर मुड़ चुके हैं।

कुंभ सिर्फ एक धार्मिक और आध्यात्मिक पर्व है, जो सैकड़ों वर्षों से करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक रहा है। सोशल मीडिया का प्रभाव हमारे समाज की सच्चाई बन चुका है, लेकिन आस्था और आध्यात्मिक जीवन को तमाशा की तरह प्रस्तुत करना सही नहीं।

अगर कोई आईआईटी का पूर्व छात्र बैरागी जीवन जीना चाहता है, तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है। उसकी निजता का उतना ही सम्मान होना चाहिए जितना किसी अन्य व्यक्ति का। जैसे हम अपने जीवन में अपनी पसंद से चीजें चुनते हैं, वैसे ही किसी का आध्यात्मिक जीवन चुनना भी उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है।

महाकुंभ न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा की अमूल्य धरोहर भी है। यह आयोजन दुनिया को दिखाता है कि अध्यात्म और धर्म के प्रति भारतीय समाज की श्रद्धा कितनी गहरी है। सोशल मीडिया की नई लहर ने इसे एक अलग दिशा में मोड़ दिया है, लेकिन इस आयोजन की गरिमा को बनाए रखना भी हमारी जिम्मेदारी है।

यह आवश्यक है कि हम आधुनिक डिजिटल युग के साथ संतुलन बनाए रखें, लेकिन धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विरूपीकरण (distortion) न करें। कुंभ की महत्ता केवल एक ट्रेंडिंग वीडियो या वायरल रील तक सीमित नहीं होनी चाहिए— यह करोड़ों श्रद्धालुओं के विश्वास और निष्ठा का पर्व है, जिसे उसी सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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