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5 February 2025 11:25 pm

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गली-गली में पत्रकार : लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की साख पर सवाल

133 पाठकों ने अब तक पढा

अंजनी कुमार त्रिपाठी की खास रिपोर्ट

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, क्योंकि यह सत्ता की निगरानी कर जनता को सच से अवगत कराता है। एक सशक्त और ईमानदार पत्रकार न केवल समाज के हित में कार्य करता है बल्कि वह सत्ता और जनता के बीच सेतु का कार्य भी करता है। लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारिता का स्वरूप तेजी से बदला है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में। आज हर गली, हर मोहल्ले में एक नया पत्रकार मिल जाता है—कोई प्रिंट मीडिया से जुड़ा हुआ, कोई वेब पोर्टल चला रहा, तो कोई यूट्यूब चैनल के माध्यम से खुद को पत्रकार घोषित कर चुका है।

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इन पत्रकारों में पत्रकारिता की बुनियादी समझ, पेशेवर नैतिकता और सत्यता की परख है? क्या सिर्फ एक माइक और कैमरा लेकर सड़क पर खड़े हो जाने से कोई पत्रकार बन सकता है? यह स्थिति न केवल पत्रकारिता की साख पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि आम जनता और प्रशासन के बीच भ्रम और अविश्वास भी पैदा कर रही है।

पत्रकारिता का बदलता स्वरूप

एक समय था जब पत्रकारिता केवल प्रशिक्षित और अनुभवी लोगों के हाथों में हुआ करती थी। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में काम करने के लिए पत्रकारों को गहरी रिसर्च, सटीक रिपोर्टिंग और निष्पक्षता का प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण अब पत्रकारिता की परिभाषा बदल गई है।

आज किसी को भी पत्रकार बनने के लिए किसी विशेष डिग्री या अनुभव की आवश्यकता नहीं है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से कोई भी व्यक्ति खुद को पत्रकार घोषित कर सकता है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में यह प्रवृत्ति और भी अधिक देखने को मिलती है, जहां हर जिले, कस्बे और यहां तक कि गांवों में भी खुद को पत्रकार कहने वाले लोग मिल जाएंगे।

गली-गली में पत्रकार बनने का कारण

उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता के इस अनियंत्रित विस्तार के पीछे कई कारण हैं।

1. डिजिटल मीडिया का आसान उपयोग

पहले पत्रकार बनने के लिए किसी समाचार पत्र, टीवी चैनल या रेडियो स्टेशन का हिस्सा बनना आवश्यक था। लेकिन अब कोई भी व्यक्ति एक वेबसाइट, यूट्यूब चैनल या फेसबुक पेज बनाकर पत्रकारिता करने का दावा कर सकता है।

2. पत्रकारिता का व्यवसायीकरण

आज कई लोग पत्रकारिता को पेशेवर रूप में नहीं, बल्कि एक लाभदायक व्यवसाय के रूप में देखते हैं। बिना किसी योग्यता के लोग खबरें बनाते हैं, विज्ञापन लेते हैं और राजनीतिक या व्यावसायिक हितों के लिए अपनी रिपोर्टिंग का उपयोग करते हैं।

3. सरकारी और गैर-सरकारी लाभ

कई लोग पत्रकारिता का उपयोग विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए करते हैं। प्रेस कार्ड बनाकर वे पुलिस, सरकारी विभागों और निजी संस्थानों में प्रभाव जमाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग इस पेशे में केवल इसलिए आते हैं ताकि वे मुफ्त यात्रा, सरकारी सुविधाएं, आयोजनों में वीआईपी ट्रीटमेंट आदि का लाभ उठा सकें।

4. जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी

पत्रकारिता एक गहरी समझ और शोध का क्षेत्र है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसे पत्रकारों की संख्या अधिक है जो पत्रकारिता का क, ख, ग भी नहीं जानते। वे खबरों को बिना सत्यापन के फैलाते हैं, जिससे समाज में भ्रम और गलतफहमी उत्पन्न होती है।

क्या हर कोई पत्रकार बन सकता है?

पत्रकारिता का मूल उद्देश्य जनता को सच्ची और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करना है। लेकिन जब यह पेशा बिना किसी मानक या योग्यता के हर किसी के हाथ में आ जाता है, तो इसकी विश्वसनीयता और प्रभावशीलता पर सवाल खड़े होने लगते हैं।

पत्रकारिता की बुनियादी शर्तें

एक सच्चे पत्रकार में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता: पत्रकार को बिना किसी पक्षपात के खबरें प्रस्तुत करनी चाहिए।

   2, गहरी रिसर्च और सत्यापन: खबरें तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि अफवाहों और अनुमान पर।

 3, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता: पत्रकारिता का उद्देश्य समाज में जागरूकता फैलाना और समस्या समाधान में मदद करना होना चाहिए।

बिना प्रशिक्षण के पत्रकारिता के दुष्परिणाम

आज उत्तर प्रदेश में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जहां बिना किसी शोध या सत्यापन के खबरें फैलाई जाती हैं। इसके दुष्परिणाम इस प्रकार हैं:

फेक न्यूज़ और अफवाहें: बिना तथ्य जांचे खबरें फैलाने से समाज में गलतफहमियां और तनाव उत्पन्न होता है।

ब्लैकमेलिंग और डराने-धमकाने का खेल: कुछ लोग खुद को पत्रकार बताकर व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों और आम लोगों को धमकाने का काम करते हैं।

पत्रकारिता की साख पर बट्टा: जब गैर-पेशेवर लोग पत्रकार बन जाते हैं, तो आम जनता का भरोसा सच्ची पत्रकारिता से उठने लगता है।

अगर पत्रकारिता की गरिमा को बनाए रखना है, तो इस अनियंत्रित पत्रकारिता पर अंकुश लगाना जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

1. पत्रकारिता के लिए मानक तय किए जाएं

सरकार और मीडिया संगठनों को मिलकर ऐसे मानक बनाने चाहिए, जिनके तहत केवल प्रशिक्षित और योग्य व्यक्तियों को ही पत्रकारिता का अधिकार मिले।

2. फेक पत्रकारों पर सख्त कार्रवाई हो

जो लोग पत्रकारिता के नाम पर गलत कार्यों में संलिप्त हैं, उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

3. मीडिया संगठनों को अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए

प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया संस्थानों को अपने पत्रकारों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, ताकि पत्रकारिता का स्तर ऊंचा बना रहे।

4. आम जनता को भी जागरूक किया जाए

लोगों को यह समझने की जरूरत है कि हर माइक और कैमरा लेकर घूमने वाला व्यक्ति पत्रकार नहीं होता। उन्हें केवल प्रमाणित और विश्वसनीय स्रोतों पर ही भरोसा करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का तेजी से विस्तार हो रहा है, लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा बिना किसी आधार या योग्यता के पत्रकार बने लोगों के हाथों में चला गया है। इससे सच्ची पत्रकारिता के मूल्यों पर खतरा मंडरा रहा है।

पत्रकारिता को एक सम्मानजनक और विश्वसनीय पेशा बनाए रखने के लिए सरकार, मीडिया संस्थान और जनता—सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। अन्यथा, गली-गली में पत्रकार बनने की यह प्रवृत्ति पत्रकारिता की साख को पूरी तरह खत्म कर सकती है।

उत्तर प्रदेश में फर्जी और अयोग्य पत्रकारों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई के कई उदाहरण सामने आए हैं। ये कार्रवाइयाँ राज्य के विभिन्न जिलों में हुई हैं, जहाँ कथित पत्रकारों द्वारा अवैध वसूली, धमकी, और पत्रकारिता की आड़ में अनैतिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप लगे हैं। नीचे कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण प्रस्तुत है:

1. मऊ जिले में फर्जी पत्रकारों पर कार्रवाई

दिसंबर 2024 में, मऊ जिले के सरायलखंसी थाने में छह टीवी पत्रकारों के खिलाफ रंगदारी (अवैध वसूली) का मुकदमा दर्ज किया गया। इन पत्रकारों पर आरोप था कि वे विभिन्न व्यक्तियों से पैसे वसूल रहे थे। प्राथमिकी (FIR) में उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला पंजीकृत किया गया।

2. गाजीपुर जिले में प्रशासन की सख्ती

सितंबर 2024 में, गाजीपुर पत्रकार एसोसिएशन की मांग पर जिलाधिकारी आर्यका अखौरी ने सभी कार्यालय प्रमुखों को निर्देश जारी किया कि वे अपने संस्थानों में आने वाले पत्रकारों के पहचान पत्रों की जाँच करें। यदि किसी पर संदेह हो, तो तुरंत प्रशासन को सूचित करें और उचित कार्रवाई करें। इस कदम का उद्देश्य फर्जी पत्रकारों द्वारा सरकारी और निजी संस्थानों में की जा रही अवैध वसूली को रोकना था।

3. कानपुर में कथित पत्रकारों पर एफआईआर

जनवरी 2025 में, कानपुर के सचेंडी थाना क्षेत्र में एक ट्रांसपोर्टर ने तीन व्यक्तियों पर आरोप लगाया कि वे खुद को पत्रकार बताकर झूठी खबरें चलाने और मुकदमे में फंसाने की धमकी देकर वसूली कर रहे थे। पीड़ित की तहरीर पर पुलिस ने तीनों के खिलाफ मानहानि, वसूली और आईटी एक्ट की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की।

4. सोनभद्र में पत्रकारों पर फर्जी एफआईआर के खिलाफ संगोष्ठी

मई 2024 में, सोनभद्र में पूर्वांचल मीडिया क्लब के तत्वावधान में एक संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें देश भर से पत्रकारों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में फर्जी एफआईआर के मुद्दे पर चर्चा की गई और पत्रकारिता की आड़ में अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों से दूरी बनाए रखने की सलाह दी गई।

5. प्रशासन की सख्त हिदायतें

गाजीपुर के जिलाधिकारी ने सभी कार्यालय प्रमुखों को निर्देश दिया कि वे अपने संस्थानों में आने वाले पत्रकारों के पहचान पत्रों की जाँच करें और संदेह होने पर तुरंत प्रशासन को सूचित करें। इसका उद्देश्य फर्जी पत्रकारों द्वारा की जा रही अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाना था।

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश में फर्जी और अयोग्य पत्रकारों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जा रही है। प्रशासन और पत्रकार संगठनों के संयुक्त प्रयासों से ऐसे व्यक्तियों पर नकेल कसने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, ताकि पत्रकारिता की साख और विश्वसनीयता बनी रहे।

मुख्य व्यवसाय प्रभारी
Author: मुख्य व्यवसाय प्रभारी

जिद है दुनिया जीतने की

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