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आज का मुद्दा

अपनों से बिछड़े हर व्यक्ति के लिए यह कुंभ, एक अंतहीन इंतजार में तब्दील हो चुका है… महाकाल की शक्ति या प्रलय का संकेत? 

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

प्रयागराज—आस्था के महासंगम में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, पवित्र स्नान का पुण्य लाभ, और अचानक मच गई अफरा-तफरी… देखते ही देखते कुंभ का पावन अवसर एक दर्दनाक हादसे में तब्दील हो गया। मौनी अमावस्या के स्नान के लिए उमड़ी अपार भीड़ के बीच भगदड़ ने कई परिवारों को जिंदगी भर का जख्म दे दिया। कोई अपनी मां से बिछड़ गया, तो किसी के चाचा-चाची अब तक लापता हैं। प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के बाहर अपनों की तलाश में भटकते लोग, आंखों में आंसू लिए बस एक ही सवाल कर रहे हैं—”हमारे अपने कहां हैं?”

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जब आस्था पर भारी पड़ी भीड़ की बेकाबू लहर

मौनी अमावस्या के शुभ अवसर पर हजारों नहीं, लाखों श्रद्धालु गंगा के पवित्र तट पर पुण्य स्नान के लिए पहुंचे थे। लेकिन मध्य रात्रि के बाद अचानक मची भगदड़ ने इस श्रद्धा पर्व को भय और त्रासदी में बदल दिया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 30 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग लापता हैं। हालात इतने विकट हैं कि अपनों की तलाश में परिजन अस्पतालों और मेले के हर कोने में भटकने को मजबूर हैं।

परिजनों की पीड़ा: कोई रो रहा, कोई तस्वीर दिखा रहा

हर किसी की आंखों में अपने खोए हुए परिजनों की तलाश है। कोई रोते हुए अपने रिश्तेदारों का नाम पुकार रहा है, तो कोई मोबाइल में उनकी तस्वीर दिखाकर दर-दर भटक रहा है।

बिहार के सासाराम से आए द्वारिका सिंह की दर्दभरी दास्तान

बिहार के सासाराम से आए द्वारिका सिंह मौनी अमावस्या का पुण्य लाभ लेने पत्नी, साला और दो सरहज के साथ कुंभ पहुंचे थे। लेकिन आधी रात के बाद भगदड़ मचते ही सब कुछ बिखर गया। “मैंने बस अपनी पत्नी का हाथ पकड़ रखा था, पर भीड़ इतनी ज्यादा थी कि अचानक वो मुझसे छूट गईं। मैं चिल्लाता रहा, पुकारता रहा, लेकिन मेरी आवाज उस भीड़ में कहीं गुम हो गई,”—कहते हुए उनकी आवाज भर्रा जाती है। तब से लेकर अब तक द्वारिका सिंह एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल चक्कर काट रहे हैं, लेकिन पत्नी का अब तक कोई पता नहीं चला।

दीपक कुमार की मां का कोई सुराग नहीं

रोहतास (बिहार) के रहने वाले दीपक कुमार की मां भी स्नान के लिए आई थीं। लेकिन हादसे के बाद से वह लापता हैं। दीपक अपने मोबाइल में मां की तस्वीर दिखाते हुए पूछते फिर रहे हैं—”क्या आपने इन्हें कहीं देखा है?” लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला। उनकी आंखों में एक ही सवाल तैर रहा है—”क्या मैं अपनी मां को फिर देख पाऊंगा?”

बिहार के मनोज कुमार भी खोज में जुटे

सीतामढ़ी के रहने वाले आदित्य रंजन सिंह के चाचा-चाची भी इसी भगदड़ में खो गए। आदित्य ने बताया, “मैंने 15 से 20 किलोमीटर पैदल चलकर हर जगह खोजबीन की, लेकिन अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया है।”

हर तरफ अफरा-तफरी, ट्रैफिक ने बढ़ाई मुश्किलें

मेले के दौरान भीड़ नियंत्रण के लिए कई रास्तों को बंद कर दिया गया है। इस कारण अपनों की तलाश कर रहे परिजनों को 15-20 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा है। कोई अस्पताल से मेला क्षेत्र की तरफ दौड़ रहा है, तो कोई गंगा घाटों पर जाकर अपने प्रियजनों की तलाश कर रहा है।

अब सवाल यह—कौन जिम्मेदार?

श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन यह हादसा उन सभी दावों पर सवाल खड़े करता है। अगर व्यवस्था बेहतर होती, भीड़ पर नियंत्रण रखा जाता, तो शायद यह त्रासदी टाली जा सकती थी।

अब हर किसी की नजरें प्रशासन पर हैं—क्या लापता लोगों को खोजने की कोई ठोस व्यवस्था होगी? क्या इस हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को न्याय मिलेगा? या फिर यह दर्दनाक घटना भी बीते कुंभ की कई कहानियों की तरह सिर्फ एक संख्या बनकर रह जाएगी?

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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