मोहन द्विवेदी
दुनिया की राजनीति में हमेशा से ही कुछ चेहरे ऐसे रहे हैं जिन्होंने सत्ता में आते ही वैश्विक राजनीति का तापमान बढ़ा दिया है। इनमें से एक नाम जो हर बार सुर्खियों में छा जाता है, वह है डोनाल्ड ट्रंप।
अमेरिकी राजनीति में ट्रंप का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जब भी वे सत्ता में आते हैं या उनकी वापसी की अटकलें लगाई जाती हैं, तो यह मान लेना चाहिए कि वैश्विक राजनीति में एक नई गर्मी आने वाली है।
ट्रंप का राजनीति में पुनः प्रवेश या वापसी कोई साधारण घटना नहीं है। यह वैश्विक परिदृश्य में भूचाल लाने जैसा है। उनकी नीतियाँ, उनके विवादित बयान, और उनका अप्रत्याशित रवैया न केवल अमेरिका बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों के लिए एक चुनौती बन जाती है। ट्रंप के विचार और नीतियों का स्वरूप ऐसा है जो स्थापित कूटनीति की धारा को उलट-पलट कर रख देता है।
उनके कार्यकाल में हमने देखा कि उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय संधियों को रद्द किया, नाटो के सदस्य देशों से अधिक आर्थिक योगदान की माँग की, और चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध का आगाज किया।
‘अमेरिका फर्स्ट’ की वापसी?
ट्रंप की वापसी का मतलब ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का दोबारा उभरना है। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका को अपने हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए, चाहे इसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय रिश्तों को नजरअंदाज क्यों न करना पड़े। उनके लिए जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार, और लोकतांत्रिक मूल्यों की अपेक्षा व्यापारिक हित और सैन्य शक्ति अधिक महत्वपूर्ण हैं।
इस दृष्टिकोण का प्रभाव न केवल अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक समीकरणों पर पड़ता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हो रहे वैश्विक प्रयासों को भी कमजोर करता है। जब ट्रंप सत्ता में थे, उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था, जिससे दुनिया भर में हलचल मच गई थी।
एशिया और मध्य पूर्व की राजनीति
ट्रंप की वापसी का असर एशिया और मध्य पूर्व पर भी पड़ेगा। चीन, जो अमेरिका का सबसे बड़ा रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी है, ट्रंप की वापसी से फिर से तनावपूर्ण रिश्तों का सामना कर सकता है।
ट्रंप का चीन के प्रति आक्रामक रुख, विशेषकर ताइवान और दक्षिण चीन सागर के मुद्दों पर, दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात उत्पन्न कर सकता है। वहीं, ईरान के साथ परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने की संभावनाएं भी धूमिल हो सकती हैं।
रूस और यूक्रेन का संकट
ट्रंप की विदेश नीति को लेकर यह धारणा है कि वे रूस के प्रति नरम रुख रखते हैं। यदि वे पुनः सत्ता में आते हैं, तो यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता को लेकर अमेरिकी समर्थन में कमी आ सकती है। यह यूरोप के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, खासकर उन देशों के लिए जो रूस के बढ़ते प्रभाव से चिंतित हैं।
भारत के लिए क्या मायने?
भारत के लिए ट्रंप की वापसी मिलाजुला असर ला सकती है। एक तरफ, ट्रंप भारत को चीन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानते हैं।
लेकिन दूसरी तरफ, उनके अप्रत्याशित निर्णय और व्यापारिक सौदेबाजी का स्वभाव भारत-अमेरिका रिश्तों में तनाव भी ला सकता है। ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का मतलब है कि वे एच1-बी वीजा, व्यापारिक सौदों, और अन्य मुद्दों पर भारत पर दबाव बना सकते हैं।
वैश्विक राजनीति में अस्थिरता
ट्रंप की राजनीति का एक बड़ा पहलू यह है कि वे स्थापित कूटनीतिक परंपराओं को चुनौती देते हैं। उनके निर्णय अचानक और अप्रत्याशित होते हैं, जो वैश्विक स्थिरता को कमजोर कर सकते हैं। चाहे वह उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन के साथ वार्ता हो या फिर संयुक्त राष्ट्र को दिए जाने वाले आर्थिक योगदान में कटौती—ट्रंप की नीति हमेशा ‘अस्थिरता’ का पर्याय बन जाती है।
‘ट्रंप आए तो गर्मी बढ़ेगी’—यह कथन न केवल अमेरिकी राजनीति के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी जैसा है। उनकी वापसी का अर्थ है एक नई तरह की वैश्विक राजनीति का आगमन, जहां स्थापित नीतियों और मानकों को चुनौती दी जाएगी। यह समय बताएगा कि ट्रंप का पुनः आगमन दुनिया को किस दिशा में ले जाएगा, लेकिन इतना निश्चित है कि उनकी वापसी से राजनीतिक तापमान में भारी वृद्धि होगी।
दुनिया अब तैयार है एक नए अध्याय के लिए, जो संघर्ष, अस्थिरता, और अप्रत्याशितता से भरा हो सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार ट्रंप का ‘आगमन’ किस तरह की गर्मी लाता है, और यह गर्मी वैश्विक राजनीति के समीकरणों को किस तरह प्रभावित करती है।