कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में सड़क चौड़ीकरण और अवैध निर्माण हटाने के नाम पर सरकारी अधिकारियों द्वारा बुलडोजर की आड़ में लोगों के मकानों को ध्वस्त करने की खबरें आम हो चुकी हैं। इस प्रक्रिया में कई बार निर्दोष लोगों के घर भी निशाना बनते रहे हैं। लेकिन हाल ही में महाराजगंज जिले में एक पीड़ित व्यक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने राज्य सरकार और उसके प्रशासनिक अधिकारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक मकान को अवैध तरीके से गिराने के लिए राज्य सरकार को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी करार दिया और राज्य के अधिकारियों को आड़े हाथों लिया। पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि रातों-रात बुलडोजर लेकर किसी के घर पर धावा बोलना आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को इस मामले की पूरी जांच कराने का निर्देश भी दिया है।
राजनीतिक हलकों में गूंजा बुलडोजर नीति का मुद्दा
इस फैसले के बाद प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि “जुर्माना लगाने वाली सरकार पर ही अब कोर्ट ने जुर्माना लगा दिया है।” उन्होंने भाजपा सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि “अब क्या राज्य सरकार अपने ही खिलाफ बुलडोजर चलाएगी?” अखिलेश का यह बयान इस ओर इशारा करता है कि भाजपा की ‘बुलडोजर नीति’ अब खुद सरकार पर ही भारी पड़ रही है।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता शरवेंद्र बिक्रम सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की सराहना करते हुए कहा कि “सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को खुली छूट दे रखी है कि वे आम नागरिकों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें आतंकित करें।” उन्होंने मांग की कि उन अधिकारियों के घरों के नक्शों की भी जांच की जाए, जो बुलडोजर नीति का सहारा लेकर जनता पर अत्याचार कर रहे हैं।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया: ‘सरकार की बुलडोजर नीति आम आदमी पर हमला’
कांग्रेस ने भी इस फैसले पर खुशी जाहिर की और राज्य सरकार की नीति की कड़ी आलोचना की। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मनीष हिंदवी ने कहा कि “सरकारी अधिकारी बुलडोजर लेकर लोगों के घरों पर आ धमकते हैं और उनके सपनों को चकनाचूर कर देते हैं। यह कार्रवाई सिर्फ एक ‘अपराध’ नहीं है बल्कि एक ‘आम आदमी पर सीधा हमला’ है।”
हिंदवी ने आगे कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि गरीब और मध्यम वर्गीय लोग वर्षों की मेहनत से अपने घर बनाते हैं। “एक झटके में बुलडोजर से उनके आशियानों को गिरा देना अमानवीय है और यह एक तानाशाही रवैया है,” उन्होंने कहा।
क्या बदल सकती है बुलडोजर नीति?
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक नजीर साबित हो सकता है। इसे केवल एक व्यक्ति के मुआवजे के रूप में नहीं, बल्कि राज्य सरकार और उसके अधिकारियों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले के बाद राज्य सरकार को अपनी ‘बुलडोजर नीति’ पर पुनर्विचार करना होगा। यह मामला उस समय आया है जब उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां बढ़ रही हैं और विपक्षी दल इस मुद्दे को जनता के बीच भुनाने की तैयारी में हैं।
‘न्याय का बुलडोजर’ बनाम ‘सरकारी बुलडोजर’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जनता में ‘न्याय का बुलडोजर’ कहा जा रहा है, जिसने सरकारी तंत्र के मनमानी पर चोट की है। यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या अब अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी, जिन्होंने इस तरह की गैरकानूनी हरकतें की हैं?
आम जनता के बीच इस फैसले से राहत की भावना है, लेकिन क्या यह सरकार की बुलडोजर नीति को बदल पाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने राज्य सरकार और उसके अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आखिरकार, जनता यह जानना चाहती है कि अगर सरकार उनके घरों को अवैध बताकर गिरा सकती है, तो क्या उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कौन करेगा? शायद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इसका जवाब देने की कोशिश की है।