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November 21, 2024 11:39 pm

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राजनीति और उम्र : सत्ता के गलियारों में नैतिकता और व्यावहारिकता का द्वंद्व

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अनिल अनूप

राजनीति का खेल सदैव से ही शक्ति, रणनीति और जनभावनाओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। हर चुनाव में नेताओं के बयानों, सवालों और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर देखा जाता है, और यह परंपरा इस बार भी अलग नहीं है। दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की आहट के बीच आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक नया सवाल उठाया है। केजरीवाल ने पूछा है कि क्या मोदी 75 साल की उम्र में रिटायर हो जाएंगे, जैसा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ हुआ है?

यह सवाल केवल केजरीवाल द्वारा उछाला गया तात्कालिक राजनीतिक मुद्दा भर नहीं है, बल्कि यह उस नैतिकता और आचार विचारधारा पर केंद्रित है जो सत्ता और उम्र के संबंध में भाजपा के भीतर लंबे समय से बहस का हिस्सा रही है। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता, जैसे अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, एक वक्त पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा थे। लेकिन बाद में, जब उन्हें पार्टी के “मार्गदर्शक मंडल” में स्थानांतरित किया गया, तब से यह चर्चा और प्रबल हो गई कि भाजपा में एक उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली जाती है।

75 साल का सवाल: क्यों है यह महत्वपूर्ण?

भाजपा ने अपने संविधान में 75 साल की उम्र का कोई प्रावधान नहीं रखा है। यह बात खुद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट की है। शाह का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी 75 साल के बाद भी देश का नेतृत्व करेंगे और पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर कोई भ्रम नहीं है। फिर भी, 75 साल की उम्र का सवाल बार-बार इसलिए उठता है क्योंकि भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को इस उम्र के बाद मार्गदर्शक मंडल में भेजा गया, जो अनौपचारिक रूप से रिटायरमेंट के समान माना गया।

इस विषय पर विचार करते समय यह समझना आवश्यक है कि भाजपा एक संगठित दल होने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वैचारिक मूल्यों से भी प्रभावित है। संघ की दृष्टि से नानाजी देशमुख जैसे नेताओं का उदाहरण महत्वपूर्ण है, जिन्होंने एक उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर समाज सेवा का रास्ता अपनाया। नानाजी के इस निर्णय ने राजनीति में एक नई परंपरा की नींव रखी, जहां सत्ता से अधिक सामाजिक जिम्मेदारी और नैतिकता पर जोर दिया गया।

भाजपा का आंतरिक संशोधन और भविष्य की दिशा

भाजपा के संविधान में बदलावों की बात करें तो यह स्पष्ट है कि पार्टी ने समय-समय पर अपने नियमों में संशोधन किया है। 2012 में, नितिन गडकरी के अध्यक्ष पद का कार्यकाल बढ़ाने के लिए भी संविधान में संशोधन किया गया था। इसी तरह, पार्टी के हालिया अधिवेशन में कुछ अन्य प्रावधानों में भी बदलाव किए गए, जो पार्टी के संसदीय बोर्ड को आपात स्थिति में निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करते हैं।

यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा की इस रणनीति का उद्देश्य न केवल आंतरिक अनुशासन बनाए रखना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि पार्टी नेतृत्व में अनुभव और नए विचारों का संतुलन बना रहे। मोदी के मामले में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा किस दिशा में आगे बढ़ेगी, क्योंकि उनकी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए पार्टी के लिए उन्हें “रिटायर” करना न केवल राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, बल्कि पार्टी के भीतर भी एक बड़ा प्रश्न खड़ा करेगा।

संघ और राजनीति में नैतिकता का स्थान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में राजनीति का स्थान हमेशा से समाज सेवा के संदर्भ में देखा गया है। संघ के कई वरिष्ठ नेताओं ने यह राय व्यक्त की है कि नेताओं को एक निश्चित उम्र के बाद सत्ता से हटकर समाज के लिए काम करना चाहिए। नानाजी देशमुख का उदाहरण इस दृष्टिकोण को मजबूत करता है, जिन्होंने 62 साल की उम्र में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर गोंडा में ग्रामोदय प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। उनके इस कदम ने राजनीति से इतर एक नई नैतिक दिशा दी, जिसे संघ के कई लोग अनुकरणीय मानते हैं।

यह स्पष्ट है कि राजनीति में उम्र को लेकर बहस केवल भाजपा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक प्रश्न है जो हर राजनीतिक दल और उनके नेताओं के सामने आता है। जहां भाजपा ने इस मुद्दे पर कभी आधिकारिक रूप से कोई नियम नहीं बनाया, वहीं संघ की नैतिकता और पार्टी की रणनीति के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी के 75 साल पूरे होने के बाद क्या पार्टी उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजेगी या वे अपनी भूमिका में बने रहेंगे, यह भविष्य की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण सवाल है। लेकिन इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि राजनीति में उम्र से ज्यादा महत्वपूर्ण नैतिकता, समाज सेवा और जनसेवा की भावना होनी चाहिए, जैसा कि नानाजी देशमुख और अन्य नेताओं ने अपने जीवन में दर्शाया।

अंततः, राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज और देश के लिए एक सेवा है। चाहे उम्र 75 साल हो या 85, जब तक एक नेता समाज के लिए सकारात्मक योगदान दे सकता है, उसकी भूमिका को केवल आयु के आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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