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November 22, 2024 11:38 am

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खाने पीने के मामले में सरकारी सतर्कता पर मचा बवाल, आखिर क्यों? क्या है नया नियम? 

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मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में खाद्य पदार्थों में मिलावट के बढ़ते मामलों के मद्देनजर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इस संदर्भ में, सरकार ने सभी खाद्य प्रतिष्ठानों, जैसे कि होटल, रेस्तरां और दुकानों पर संचालक, प्रबंधक और मालिक के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया है। यह निर्णय खाद्य सुरक्षा और जन स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में यह तय किया गया कि खाद्य व्यवसायों में काम कर रहे कर्मचारियों, विशेषकर शेफ के लिए मास्क और दस्ताने पहनना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, सभी खाद्य प्रतिष्ठानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का भी निर्देश दिया गया है। यह कदम उन हालिया घटनाओं की पृष्ठभूमि में उठाया गया है, जहाँ जूस, दाल, और रोटी जैसे खाद्य पदार्थों में मानव अपशिष्ट और अन्य अयोग्य सामग्री की मिलावट के आरोप लगे थे।

सरकार ने इन घटनाओं को गंभीर मानते हुए कहा है कि ऐसे कृत्य सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं और इस तरह की गतिविधियाँ पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। बयान में स्पष्ट किया गया है कि सभी खाद्य प्रतिष्ठानों पर संचालकों को सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करनी होगी, ताकि जरूरत पड़ने पर पुलिस और प्रशासन को यह फुटेज उपलब्ध कराया जा सके।

इसके साथ ही, कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान खाद्य विक्रेताओं को अपने नाम बड़े अक्षरों में लिखने का आदेश दिया गया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया था। उस समय यह तर्क दिया गया था कि इससे यात्रा कर रहे कांवड़ियों को भ्रम की स्थिति से बचाया जा सकेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुकानदारों को अपने नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि शाकाहारी और साफ-सुथरा खाना उपलब्ध हो।

हालिया घटनाओं की बात करें तो, गाज़ियाबाद में एक जूस विक्रेता को जूस में पेशाब मिलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा, सहारनपुर में एक युवक पर थूक लगाकर रोटी पकाने का आरोप लगा, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह सभी नियम और आदेश जनहित में लागू किए जा रहे हैं, ताकि लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। मुख्यमंत्री ने दोहराया है कि इस मामले में लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं है और खाद्य सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आएगी।

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खाद्य प्रतिष्ठानों पर संचालक, प्रबंधक और मालिक के नाम प्रदर्शित करने के आदेश को लेकर कई कानूनी और नैतिक सवाल उठ रहे हैं। विशेष रूप से, यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा नाम लिखवाने के आदेश पर लगाई गई रोक के संदर्भ में जटिल हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा का कहना है कि यह नया आदेश एक प्रकार से कोर्ट के पहले के आदेश से बचने का प्रयास है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर याचिका लंबित है।

भारत में खाद्य प्रतिष्ठानों के संचालन के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के तहत पंजीकरण या लाइसेंस लेना आवश्यक है। छोटे खाद्य विक्रेताओं, जैसे रेहड़ी-पटरी वालों, को पंजीकरण कराना होता है, जबकि बड़े रेस्तरां को लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता है। प्राचा ने कहा कि राज्य सरकार एफएसएसएआई के कानूनों को बदलने का अधिकार नहीं रखती है, और उसका यह आदेश कानून के मूल उद्देश्य के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण आदेश यह है कि कोई भी विधानसभा या संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को रद्द करने का प्रयास करे। प्राचा का कहना है कि यूपी सरकार का यह आदेश सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के खिलाफ है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े का मानना है कि कांवड़ यात्रा के दौरान सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश एक अलग मामले में था। अब यदि कोई इस नए आदेश को चुनौती देना चाहता है, तो उसे एक नई याचिका दायर करनी होगी। हेगड़े के अनुसार, पुराने आदेश का अब कोई प्रभाव नहीं रहेगा।

भारत में रेहड़ी-पटरी और छोटे दुकानदारों के लिए पंजीकरण की स्थिति भी चिंताजनक है। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, भारत में लगभग 18.5 लाख रेहड़ी-पटरी दुकानदारों में से केवल 17 प्रतिशत ही पंजीकृत हैं। प्राचा का कहना है कि छोटे दुकानदारों को पंजीकरण और लाइसेंस प्राप्त करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि अभी तक आवश्यक ढांचा पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है।

भाजपा प्रवक्ता हरीश चंद्र श्रीवास्तव ने इस नए आदेश का बचाव करते हुए कहा है कि यह जनहित में लाया गया है और इसका सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोई संबंध नहीं है। उनका तर्क है कि यह आदेश पारदर्शिता बढ़ाने के लिए है, और जब पारदर्शिता होगी, तो अपराध और भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होगी। उन्होंने जूस में पेशाब मिलाने और रोटी पर थूक लगाने जैसी हालिया घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे कृत्यों को रोकना जरूरी है।

श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि यदि कोई होटल या रेस्तरां चला रहा है, तो उसे अपने नाम प्रदर्शित करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने छोटे दुकानदारों की समस्याओं का खंडन करते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा के नियमों को सख्ती से लागू करने से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

मुज़फ़्फ़रनगर में पहले नाम लिखवाने के आदेश के दौरान आरोप लगे थे कि यह विशेष धर्म के दुकानदारों को निशाना बनाने के लिए किया गया था, जिसे श्रीवास्तव ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार का यह आदेश सभी नागरिकों के हित में है।

इस बीच, हिमाचल प्रदेश में भी इस तरह के आदेश की तैयारी की जा रही है। राज्य के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने घोषणा की है कि हिमाचल प्रदेश में भी रेहड़ी-पटरी लगाने वालों को पहचान पत्र जारी किए जाएंगे। हालांकि, उन्होंने अपने बयान पर सफाई दी कि यह आदेश यूपी या किसी अन्य राज्य से प्रेरित नहीं है, बल्कि राज्य में हाल में हुई घटनाओं के संदर्भ में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है।

इस तरह, उत्तर प्रदेश सरकार का नया आदेश विभिन्न स्तरों पर विवाद का कारण बन रहा है, और इसकी वैधता को लेकर कानूनी पेंच और नैतिक प्रश्न उठ रहे हैं। 

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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