हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
रायपुर। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सहकार उसके स्वभाव का हिस्सा है। लेकिन जब आर्थिक गतिविधियों की बात आती है, तो वही मनुष्य स्वार्थी हो जाता है। जिनके पास पूंजी है, वे अपनी पूंजी को बढ़ाकर और अधिक सक्षम बन जाते हैं, जबकि जिनके पास पूंजी नहीं है, उनके लिए विकल्प क्या है? ऐसे में सहकारिता ही एक मार्ग हो सकता है, जिससे समाज का आर्थिक उत्थान किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसी अमीर धरती है, जहां गरीब लोग रहते हैं। लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है। इस राज्य के लोग ऋषि और कृषि संस्कृति को मानने वाले हैं और प्रकृतिवादी हैं। वे अपनी आवश्यकताओं को प्रकृति से प्राप्त कर संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के निर्माण के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था कि यह राज्य आर्थिक दृष्टि से भी प्रगति करे। राज्य में 15 वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विकास की यात्रा प्रारंभ की, जिसे वर्तमान सरकार आगे बढ़ा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाया जाए। ऐसे में छत्तीसगढ़ भी इस यात्रा में पीछे नहीं रह सकता।
हाल ही में, प्रदेश में सहकारिता के माध्यम से विकास की गति को बढ़ाने के लिए केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने एक बैठक में कार्ययोजना बनाई है। छत्तीसगढ़ के 70% लोग कृषि और वनों पर निर्भर हैं। यहां के 70% किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास औसतन एक एकड़ भूमि है। केवल खेती के सहारे ये किसान अपनी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं ला सकते। भाजपा सरकार ने किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण सुविधा दी है, और धान की खरीद सहकारी समितियों (पैक्स) के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है। साथ ही, दुग्ध और मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी सहकारिता के माध्यम से किसानों और गरीबों की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयास किया जा रहा है।
अब सहकारिता के माध्यम से मैदानी क्षेत्रों के साथ-साथ वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को भी सहकारिता से जोड़ने की योजना बनाई जा रही है। राज्य में 2058 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां (पैक्स) कार्यरत हैं। अब अगले दो वर्षों में प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर बहुआयामी पैक्स, दुग्ध और मत्स्य सहकारी समितियों का गठन सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर एक समझौता (MOU) किया जाएगा, जिसके बाद विशेषकर अनुसूचित जनजाति के लोगों को दुग्ध सहकारिता से जोड़ने की पहल की जाएगी। उन्हें दुधारु पशुओं के पालन के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वे पांच वर्षों के भीतर दुग्ध सहकारी समितियों से लाभ अर्जित कर सकें और आठ से दस पशुधन के मालिक बन सकें।
इस प्रकार राज्य में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होगी, और इस दूध का उपयोग सहकारी संघों के माध्यम से विभिन्न दुग्ध उत्पादों के निर्माण में किया जा सकेगा। अमूल की तरह ही, जो एक छोटे से गांव आणंद में सहकारी आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था और आज वह एक वैश्विक ब्रांड बन चुका है, छत्तीसगढ़ में भी इसी मॉडल पर काम शुरू किया जाएगा। सहकारिता के माध्यम से किसानों द्वारा उत्पादित दुग्ध के लिए पर्याप्त प्रशीतक केंद्र और प्रक्रिया इकाइयों की स्थापना की जाएगी।
सहकारिता के माध्यम से अर्थव्यवस्था के विकास और इसका लाभ आमजन तक पहुंचाने के लिए कृषि, पशुपालन, मत्स्य और जनजाति विभाग के मंत्रियों और सचिवों की एक पृथक समिति बनाई जाएगी। वर्तमान में केवल 6 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक संचालित हैं, लेकिन सहकारिता के विस्तार के साथ पैक्स की संख्या बढ़ेगी और सभी जिलों में सहकारी बैंकों की संख्या भी बढ़ानी होगी। साथ ही सहकारी बैंकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाया जाएगा।
छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन को गति देने के लिए जैविक कृषि, बीज उत्पादन और मत्स्य पालन जैसे अन्य आयामों को भी मजबूत किया जाएगा। छत्तीसगढ़ में सहकारिता के माध्यम से जब कार्य शुरू होंगे, तब ही जनता के आर्थिक उद्धार का मार्ग प्रशस्त होगा।
Author: samachar
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