अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के एक मदरसे में नकली नोटों का रैकेट चल रहा था, जो कि बहुत ही गहराई से जड़ें जमाए हुए था। इस रैकेट का संचालन मदरसे के मौलवी, मोहम्मद तफसीरूल द्वारा किया जा रहा था।
मौलवी जिस कमरे में नकली नोटों की छपाई करवाता था, उसे हमेशा बाहर से ताला लगाकर रखा जाता था, जबकि बाहर मदरसे के बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते थे। बच्चों की छुट्टी होने के बाद, मौलवी खुद भी नकली नोट छापने के काम में शामिल हो जाता था।
पुलिस ने जब अफजल और शाहिद नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया, तो उनकी जेबों से नकली नोटों की कई गड्डियां मिलीं। इनमें से करीब 1300 नोटों पर एक ही सीरियल नंबर था। इन 100 रुपये के नकली नोटों को आस-पास के बाजारों में खपाया जाता था।
मौलवी ने यह समझा कि लोग छोटे नोटों, जैसे 50 या 100 रुपये के नोटों को बिना जांचे स्वीकार कर लेते हैं, और इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए उसने सिर्फ 100 रुपये के नोट छापने शुरू किए।
100 रुपये के एक नकली नोट की लागत केवल 2 रुपये आती थी, क्योंकि वे सस्ते ए-4 साइज के कागज का उपयोग करते थे, जिसे दिल्ली से मंगवाया जाता था। एक ए-4 शीट से कई नोट आसानी से प्रिंट हो जाते थे, और बच्चों की छुट्टी होने के बाद मौलवी खुद इन नोटों की कटाई करता था।
इस रैकेट की जड़ें ओडिशा तक फैली हुई हैं, और आगे की जांच के लिए गिरफ्तार आरोपियों को ओडिशा ले जाया जा सकता है। इस रैकेट का मास्टरमाइंड मोहम्मद जाहिर था, जिसका भाई ओडिशा में आधार कार्ड बनाने के एक सेंटर में काम करता था। जाहिर को नकली नोट छापने का विचार वहीं से आया। वह करीब चार महीने पहले ओडिशा से प्रयागराज आया और मौलवी के साथ मिलकर इस काम को अंजाम देने लगा।
गिरफ्तार आरोपियों से यह भी पता चला है कि यह गैंग 15 हजार रुपये के असली नोट लेकर उसके बदले 45 हजार रुपये के नकली नोट देता था, और ये सभी नोट 100 रुपये के होते थे।
इसके अलावा, इस बात का भी खुलासा हुआ है कि नकली नोटों की एक बड़ी खेप अगले साल होने वाले प्रयागराज महाकुंभ मेले में खपाने की योजना थी।
गिरफ्तार आरोपियों के मोबाइल की ब्राउजिंग हिस्ट्री में महाकुंभ से संबंधित लिंक मिले हैं, जिससे ये अनुमान लगाया जा रहा है कि उनका निशाना महाकुंभ मेला था।
Author: samachar
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