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November 23, 2024 2:31 am

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भोले बाबा की परत दर परत खुल रही कलई, अब NEET पेपर लीक माफिया से निकला कनेक्शन

14 पाठकों ने अब तक पढा

इरफान अली लारी की रिपोर्ट

हाथरस में हुए भगदड़ कांड के बाद से सत्संग करने आया बाबा भोले नाथ उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ सूरज पाल फरार है। यूपी पुलिस उसकी तलाश में खाक छान रही है। भोले बाबा को लेकर कई राज खुल रहे हैं। अब एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। भोले बाबा का NEET पेपर लीक माफिया से कनेक्शन सामने आया है।

बाबा और पेपर लीक माफिया के तार राजस्थान से जुड़े हैं। जिस पेपर लीक माफिया के साथ ‘भोले बाबा’ का लिंक निकला है, उसका नाम हर्षवर्धन है। पता चला है कि राजस्थान के दौसा में भोले बाबा का जिस घर में दरबार लगता था वो इसी पेपरलीक माफिया हर्षवर्धन का था।

हाथरस में एक सत्संग के दौरान हुए हादसे की न्यायिक जांच की घोषणा हो गई है और इस तरह अब इसके सहारे सरकार इस घटना पर उठने वाले सवालों के शांत होने की उम्मीद कर रही है। अब इस जांच के नतीजे कब आएंगे, किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी, क्या कार्रवाई होगी, यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर है। मगर इस घटना में जो हुआ, उसने न केवल किसी स्वयंभू बाबा और उसके समूह को, बल्कि सरकार और समूचे प्रशासन-तंत्र को कठघरे में खड़ा किया है। हालत यह है कि एक बाबा के कथित सत्संग के आयोजन को लेकर तो सभी स्तरों पर लापरवाही बरती ही गई, उससे उपजी अव्यवस्था की वजह से मची भगदड़ में कम से कम एक सौ इक्कीस लोगों के मारे जाने के बाद कार्रवाई के मामले में भी पुलिस और प्रशासन का जो रुख सामने आया है, वह हैरान करने वाला है।खबरों के मुताबिक भगदड़ के बाद छह सेवादार भाग गए थे, जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन मुख्य आरोपी को पकड़ने के लिए एक लाख रुपए इनाम की घोषणा की गई। इसके अलावा, पुलिस का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो ‘भोले बाबा’ से भी पूछताछ की जाएगी। हालांकि इसका कोई संतोषजनक जवाब सामने नहीं आया है कि बाबा का नाम पुलिस के पास दर्ज प्राथमिकी में क्यों नहीं है!

उत्तर प्रदेश के हाथरस में सूरजपाल ( भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि) के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अभी तक दर्ज की गई एफआईआर में बाबा का नाम शामिल नहीं है। अब इस पूरे मामले को लेकर पुलिस ने बड़ा खुलासा किया है। पुलिस का कहना है कि धार्मिक उपदेशक सूरज पाल (नारायण साकार विश्व हरि या भोले बाबा) के नाम से भी जाना जाता है, जिनके सत्संग में हाथरस में भगदड़ मची थी। वो राजस्थान के एक कुख्यात पेपर लीक आरोपी से परिचित है।

पुलिस के अनुसार, बाबा सूरजवाल जब भी राजस्थान आता था तो दौसा में हर्षवर्धन मीणा के घर पर रुकता था। एडीजीपी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) वीके सिंह ने कहा कि मीणा राजस्थान 2020 जूनियर इंजीनियर परीक्षा (जेईएन) भर्ती परीक्षा पेपर लीक का मुख्य आरोपी है।

सिंह ने बताया, ‘जनवरी में हमने पेपर लीक मामले में दौसा में मीणा के घर पर छापा मारा था। लेकिन हमारे पहुंचने से पहले ही वहां रहने वाला बाबा भाग गया। उसका पेपर लीक मामले से कोई संबंध नहीं है।’ सिंह ने बताया कि बाबा मीणा के घर पर भी सत्संग का आयोजन करते था। वहीं उसके घर के सामने आज भी बाबा के पोस्टर और बैनर लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जब एसओजी के कुछ अधिकारियों ने मीडिया में हाथरस भगदड़ की तस्वीरें देखीं, तो उन्होंने उस व्यक्ति को ‘भोले बाबा’ के रूप में पहचाना।

पिछले 15 सालों में मीणा ने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक करके 500 से ज़्यादा युवाओं को सरकारी नौकरी दिलवाई है। इस नौकरी का फ़ायदा उठाने वाले 20 लोग उसके परिवार के ही हैं। पुलिस ने जब मीणा की जयपुर, दौसा और महवा में ज़मीनों के दस्तावेज़ जब्त किए तो 5 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति का पता चला। एसओजी ने फरवरी 2024 में मीणा को गिरफ्तार किया था।

हाथरस में क्या हुआ?

2 जुलाई (मंगलवार) को एक स्थानीय प्रवचनकर्ता सूरजपाल (भोले बाबा) का सत्संग एक हादसे में बदल गया। जिसमें हुए भगदड़ में 121 लोग मारे गए। जिनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं। हाथरस के फुलराई गांव में आयोजित इस कार्यक्रम को भोले बाबा के नाम से मशहूर नारायण साकर हरि ने संबोधित किया था।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने भगदड़ के सिलसिले में दो महिलाओं सहित छह सत्संग आयोजकों को गिरफ्तार किया है। अलीगढ़ के आईजी शलभ माथुर ने कहा कि वे सभी आयोजन समिति के सदस्य हैं और ‘सेवादार’ के रूप में काम करते थे। पुलिस की एफआईआर में मुख्य सेवादार’ देवप्रकाश मधुकर का नाम है, जो फरार है। इस बीच,योगी आदित्यनाथ ने घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया है। जिसके लिए सेवानिवृत्त हाई कोर्ट के जस्टिस बृजेश कुमार श्रीवास्तव और दो अन्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। घटना के केंद्र में रहने वाले उपदेशक नारायण साकर विश्व हरि या ‘भोले बाबा’ का नाम अभी तक एफआईआर में नहीं है।

सवाल है कि आस्था के नाम पर सामने आई त्रासदी के लिए अगर सत्संग के आयोजकों की जिम्मेदारी बनती है, तो इस व्यापक लापरवाही में प्रशासन भी अपनी जवाबदेही से कैसे बच सकता है? अस्सी हजार लोगों की जुटान की इजाजत दे दी गई और ढाई लाख लोगों का जमावड़ा हो गया तो यह किसके आंख मूंद लेने की वजह से हुआ? इतनी बड़ी तादाद में लोगों के वहां आने के बाद प्रशासन ने क्या ऐसा किया ताकि आपात स्थितियों में बचाव हो सके?

जिस राज्य में आए दिन सरकार किसी भी कोने में छिपे अपराधियों को काबू में करने का दावा करती रहती है, उसमें पुलिस और खुफिया तंत्र के इतने बड़े जाल के बावजूद ‘भोले बाबा’ कैसे फरार हो गया? सब कुछ दुरुस्त होने के दावे के बीच एक बाबा भारी संख्या में लोगों को जुटा कर अपनी महिमा का बखान करता रहा। फिर भगदड़ के बाद उसके फरार हो जाने पर पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही और प्राथमिकी तक में उसका नाम नहीं है तो इसके पीछे क्या वजहें हैं?

सच यह है कि इस तरह बाबाओं के समाज या साधारण लोगों के बीच पांव पसारने और उन्हें मन-मुताबिक संचालित करने के लिए भी सरकार की जिम्मेदारी बनती है। आम लोग अपनी जीवन-स्थितियों में बेहतरी और विकास लाने के साथ-साथ अच्छी पढ़ाई-लिखाई करें, नए विचारों से समृद्ध हों, इसकी व्यवस्था करना सरकार का दायित्व है। मगर इसके समांतर संदिग्ध पृष्ठभूमि वाला कोई व्यक्ति बाबा का रूप धर कर लोगों को इस हद तक प्रभावित कर लेता है कि कुछ पीड़ित भी भगदड़ और लोगों के मारे जाने के लिए उस पर सवाल उठाने को गलत मानने लगते हैं।

आस्था के नाम पर इस तरह के सम्मोहन की स्थिति पैदा होने को लेकर क्या सरकारों की कोई जवाबदेही नहीं बनती? अव्यवस्था से उपजी कोई बेहद दुखद घटना हो जाती है, लोगों की जान चली जाती है, तब समूचा सरकारी तंत्र अत्यधिक सक्रिय दिखने लगता है। अफसोस की बात यह है कि जब ऐसी भयावह घटनाओं की भूमिका बन रही होती है, तब सरकार बेखबर रहती है। अगर समय रहते थोड़ी भी सक्रियता दिखाई जाती, तो शायद ऐसी त्रासदी से बचा जा सकता था!

यह समझ से परे है कि किसी कार्यक्रम के आयोजकों का जितना जोर भीड़ जुटाने पर होता है, उसका एक अंश भी उस भीड़ को व्यवस्थित करने पर क्यों नहीं होता। अक्सर धार्मिक उत्सवों, मेलों, सत्संग, यज्ञ आदि के आयोजन में व्यवस्थागत खामियों के चलते भगदड़ मचने, दम घुटने, पंडाल वगैरह के गिरने से लोगों के नाहक मारे जाने की घटनाएं हो जाती हैं। इसके अनेक उदाहरण हैं, मगर उनसे शायद सबक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती और फिर नए हादसे हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुआ हादसा इसकी ताजा कड़ी है।

बताया जा रहा है कि वहां महीने के पहले मंगलवार को तीन घंटे के सत्संग का आयोजन किया गया था। उसमें देश के अलग-अलग राज्यों से श्रद्धालु आए हुए थे। करीब पचास हजार लोगों की भीड़ जुटी बताई जा रही है। सत्संग की समाप्ति के बाद अचानक भगदड़ मच गई और सौ से ऊपर लोग दब कर मर गए, दो सौ से अधिक के घायल होने की खबर है। बताया जा रहा है कि सत्संग समाप्ति के बाद जब मुख्य महात्मा का काफिला वहां से रवाना हुआ तो भीड़ को जबरन रोक दिया गया। भीषण गर्मी और उमस के कारण कई लोग बेहोश हो गए, जिसकी वजह से भगदड़ मची। हालांकि हादसे की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और उसके बाद ही असली वजह पता चल सकेगी।

निस्संदेह इतने बड़े आयोजन में जुटने वाली भीड़ का अंदाजा आयोजकों को रहा होगा। इस भीषण गर्मी में हजारों लोगों के एक जगह इकट्ठा लोगों पर क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान भी उन्हें रहा होगा। मगर फिर भी लोगों के लिए छाया-हवा-पानी का माकूल इंतजाम क्यों नहीं किया गया। ऐसे आयोजनों में व्यवस्था की जिम्मेदारी आयोजक खुद उठाते हैं। वे अपने स्वयंसेवकों के जरिए आयोजन स्थल पर लोगों के प्रवेश और निकास का प्रबंध करते हैं। बताया जा रहा है कि इस सत्संग का आयोजन पिछले दस वर्षों से देश के विभिन्न हिस्सों में किया जा रहा है। इसलिए इसके आयोजकों और स्वयंसेवकों में अनुभव की कमी भी नहीं मानी जा सकती। फिर कैसे उन्हें इस तरह के हादसे का अंदेशा नहीं था। अगर भीड़ मुख्य महात्मा के करीब पहुंचने या उनके काफिले के पीछे जाने को उतावली हो उठी, तो जाहिर है, ऐसा तभी हुआ होगा, जब दोनों के रास्ते अलग से तय नहीं किए गए थे। सवाल यह भी है कि बगैर व्यवस्था जांचे स्थानीय प्रशासन ने कैसे इस आयोजन की इजाजत दे दी।

ऐसे हादसे न केवल धार्मिक आयोजनों में, बल्कि राजनीतिक रैलियों, विभिन्न मेलों, सांस्कृतिक उत्सवों आदि में भी हो चुके हैं। यह ठीक है कि निजी या सार्वजनिक प्रयासों से आयोजित होने वाले इतने विशाल कार्यक्रमों को संभालने के लिए स्थानीय स्तर पर पुलिस बल उपलब्ध कराना कठिन काम है, मगर इस तर्क पर प्रशासन की जवाबदेही समाप्त नहीं हो जाती।

इस तरह का कोई भी आयोजन बिना प्रशासन की पूर्व अनुमति के नहीं हो सकता। फिर प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि आयोजन स्थल की व्यवस्था जांचे और आयोजकों की जवाबदेही तय करे। मगर जिन आयोजनों से लोगों की आस्था जुड़ी होती है, उनमें प्रशासन अक्सर ढीला ही देखा जाता है। आखिर कब इस तरह के हादसों को रोकने के लिए कोई सख्त नियम-कायदा बनेगा। ऐसे हादसों की जवाबदेही तय करने के लिए कब कोई नजीर बन सकने वाली कार्रवाई होगी।

भोले बाबा , स्वयंभू आध्यात्मिक नेता, जिनके हाथरस गांव में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में भगदड़ मच गई थी, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए थे, का राजस्थान में पेपर लीक के एक आरोपी से संबंध है ।

उन्होंने एक जमीन के टुकड़े पर आश्रम चलाया, जो कथित तौर पर जूनियर इंजीनियर (जेईएन) पेपर लीक मामले के सरगना द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था। राजस्थान पुलिस के विशेष अभियान समूह (एसओजी) ने बुधवार को पता लगाया कि भोले बाबा हर्षवर्धन मीना के संपर्क में थे, जो एक पटवारी है और जिसे फरवरी में जेईएन परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिससे राजस्थान में भारी हंगामा हुआ था।

यह ‘स्वयंभू’ व्यक्ति दौसा जिले में स्थित मीना के घर पर नियमित रूप से धर्मसभाएं आयोजित करता था।

एडीजीपी (एसओजी) वीके सिंह ने कहा, “हमने पेपर लीक मामले में मीना को नेपाल से गिरफ्तार किया था। उसने ही बाबा को आश्रम मुहैया कराया था और बाबा वहीं रहता था। हालांकि, जब हमने मीना से जुड़े ठिकानों पर तलाशी और छापेमारी तेज की, तो बाबा दौसा से भाग गया।” सिंह ने कहा कि पुलिस ने भोले बाबा का पीछा नहीं किया क्योंकि वह पेपर लीक मामले में वांछित नहीं थे। हाथरस कांड के बाद बुधवार को स्थानीय लोग बड़ी संख्या में दौसा आश्रम पहुंचे।

उन्होंने दावा किया कि एसओजी द्वारा छापेमारी शुरू करने के बाद बाबा ने वहां कोई धार्मिक आयोजन नहीं किया था। एक अधिकारी ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि बाबा ने मीना के घर पर एक अस्थायी शिविर बना रखा था। हमें अभी तक नहीं पता कि उसे मीना की गतिविधियों के बारे में पता था या नहीं।”

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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