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November 22, 2024 2:36 pm

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यूपी का यह लाल, छत्तीसगढ़ के सबसे ताकतवर अधिकारी का रुतबा कमाया और अब पेपर लीक मामले में नाम….. 

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

पिछले साल 11 जून, रविवार की रात जब समाप्त होने को थी, देश के कुछ शीर्ष नौकरशाहों की नियुक्ति का आदेश जारी किया गया। छुट्टी के दिन और वह भी देर रात को जारी हुए इस नियुक्ति आदेश ने छत्तीसगढ़ में काफी चर्चा बटोरी। 

इस आदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सुबोध कुमार सिंह का नाम भी शामिल था, जिन्हें खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में अतिरिक्त सचिव के पद से हटाकर राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) का महानिदेशक नियुक्त किया गया था।

छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ नौकरशाह का कहना है, “ठीक साल भर बाद, शनिवार की रात सुबोध कुमार सिंह को जिस तरह से उनके पद से हटाया गया, इसकी उम्मीद हम लोगों को नहीं थी। ऐसा लगता है कि डैमेज कंट्रोल करने के लिए सुबोध कुमार सिंह जैसे काबिल अफ़सर को निशाना बनाया गया। छत्तीसगढ़ में रहते हुए वे लगभग निर्विवाद अफ़सरों में रहे हैं।”

देश भर में नीट-यूजी और यूजीसी-नेट परीक्षाओं के पेपर लीक मामले को लेकर चल रहे विवाद के बीच, केंद्र सरकार ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के महानिदेशक सुबोध कुमार सिंह को पद से हटा दिया। उनकी जगह प्रदीप सिंह खरोला को नया महानिदेशक बनाया गया है।

हालांकि इन परीक्षा लीक के मामलों में एनटीए चेयरमैन प्रदीप कुमार जोशी की भूमिका पर भी कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। इस स्थिति में, 51 वर्षीय सुबोध कुमार सिंह के भविष्य को लेकर छत्तीसगढ़ में नौकरशाहों के बीच अब चर्चा शुरू हो गई है।

दरअसल, पिछले साल दिसंबर में राज्य में भाजपा सरकार की वापसी के साथ ही सुबोध कुमार सिंह के छत्तीसगढ़ लौटने की अटकलें शुरू हो गई थीं। नौकरशाहों का एक बड़ा वर्ग मानकर चल रहा था कि वे जल्द ही छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं और उन्हें राज्य में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है। 

सुबोध कुमार सिंह की वापसी की उम्मीदें इसलिए भी बढ़ गई थीं क्योंकि वे छत्तीसगढ़ में लगभग निर्विवाद और काबिल अफसर माने जाते हैं। लेकिन फिलहाल, एनटीए के महानिदेशक पद से हटाए जाने के बाद, इन अटकलों पर विराम लग गया है। 

उनके भविष्य को लेकर छत्तीसगढ़ में अब नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में उनके करियर की दिशा क्या होती है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर के निवासी सुबोध कुमार सिंह के पिता एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक थे। सुबोध सिंह के परिजन बताते हैं कि उनके शिक्षक पिता ने उन्हें बचपन से ही बड़े सपने दिखाए और उन सपनों को पूरा करने का रास्ता भी बताया।

पढ़ाई-लिखाई में मेधावी सुबोध ने आईआईटी रुड़की से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिस्टिंक्शन के साथ बीई की डिग्री हासिल की, फिर वहीं से एमई की डिग्री भी ली। दोनों परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद, उन्होंने इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में एमबीए भी किया।

1997 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में चयनित होने के बाद, 1998 में उनकी पहली नियुक्ति असिस्टेंट कलेक्टर के रूप में अविभाजित मध्य प्रदेश के मंडला में हुई। जनवरी 2000 से दिसंबर 2000 तक उन्होंने छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में बतौर एसडीओ काम किया। यही वह समय था जब नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना।

तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने युवा अफसरों को आदिवासी बहुल इलाकों में तैनात करना शुरू किया। राज्य बनने के दो महीने के भीतर ही, सुबोध कुमार सिंह को जिला पंचायत बस्तर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी गई। 

इस दौरान उन्होंने रोजगार गारंटी योजना में उत्कृष्ट काम किया, जिसके लिए 2002 में उन्हें केंद्र सरकार ने पुरस्कृत भी किया। 2002 में ही उन्हें पहली बार रायगढ़ जिले का कलेक्टर नियुक्त किया गया।

राज्य सरकार में ताकतवर अफसर

राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में थोड़े-थोड़े समय तक काम करने के बाद, 2005 में सुबोध कुमार सिंह को राजधानी रायपुर का कलेक्टर बनाया गया। इसके बाद उन्होंने राज्य के दूसरे महत्वपूर्ण जिले बिलासपुर के कलेक्टर की जिम्मेदारी भी डेढ़ साल तक निभाई। 2008 में उन्हें फिर से रायपुर का कलेक्टर नियुक्त किया गया।

छत्तीसगढ़ के एक पूर्व मुख्य सचिव, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, बताते हैं, “राज्य में सत्ता बदल चुकी थी और सुबोध सिंह की पहचान एक ऐसे अफसर की बन चुकी थी, जिसे ट्रबल शूटर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था। सुबोध सिंह की खासियत यही थी कि वह हमेशा लो प्रोफाइल और विनम्र बने रहते थे, लेकिन बहुत प्रतिबद्धता के साथ अपना काम करना जानते थे।”

इसी कारण, 3 जून 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें अपने सचिवालय में उप सचिव के रूप में नियुक्त किया। दिसंबर 2018 में रमन सिंह सरकार की विदाई तक वे विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ मुख्यमंत्री के सचिवालय में बने रहे।

मुख्यमंत्री रमन सिंह के करीबी एक अधिकारी बताते हैं कि रमन सिंह की सरकार में सब जानते थे कि उनके सचिव अमन सिंह की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था। वे कहते हैं, “अमन सिंह हाई प्रोफाइल अधिकारी थे और सुबोध सिंह चुपचाप रहकर काम करने वाले लो प्रोफाइल लेकिन बेहद ताकतवर अधिकारी। रमन सिंह, अमन सिंह और सुबोध सिंह, इन तीन सिंहों ने बेहतर तालमेल के साथ कई बरसों तक सरकार चलाई। अमन सिंह और सुबोध सिंह, मुख्यमंत्री रमन सिंह के दाएं-बाएं हाथ बने रहे।”

भूपेश बघेल की सरकार में किनारे

दिसंबर 2018 में, जब 15 साल की रमन सिंह सरकार की विदाई हुई और भूपेश बघेल की कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी, तो रमन सिंह की सरकार के विश्वस्त माने जाने वाले अधिकांश अफसर एक-एक कर किनारे होते चले गए। 

रमन सिंह की सरकार में 36 हजार करोड़ के कथित नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले के दो अफसर, डॉक्टर आलोक शुक्ला और अनिल टूटेजा को छोड़कर, अधिकांश वरिष्ठ अधिकारियों ने केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर जाने का रास्ता अपना लिया। इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी भी शामिल थे। कुछ अधिकारियों ने तो अपना कैडर ही बदल लिया।

इस दौरान, सुबोध सिंह को श्रम और वाणिज्य कर विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। एक साल बाद, दिसंबर 2019 में, उन्हें राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। इसी दौरान, ई-गवर्नेंस में देश में बेहतर काम करने के लिए उन्हें केंद्र सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया।

रायपुर में एक टीवी चैनल के संपादक, आशीष तिवारी, कहते हैं, “राज्य सरकार चाहती थी कि सुबोध सिंह राज्य में बने रहें और उन्हें कुछ गंभीर जिम्मेदारी भी दी जाए। लेकिन उन्होंने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना बेहतर समझा।” केंद्र सरकार ने 20 जनवरी 2020 को सुबोध सिंह की खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति का आदेश जारी किया और दस दिनों के भीतर उन्होंने इस जिम्मेदारी को संभाल भी लिया।

पिछले साल 11 जून को, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) के महानिदेशक नियुक्त किए जाने तक, वे इसी विभाग में कार्यरत रहे। NTA में रहते हुए, उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों, सरगुजा और बस्तर में दो नए परीक्षा केंद्र बनाए।

सुबोध सिंह के महानिदेशक बनने के छह महीने के भीतर ही, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए वरिष्ठ अफसरों की वापसी का सिलसिला शुरू हुआ। स्थानीय मीडिया में चर्चा होने लगी कि सुबोध कुमार सिंह जल्द ही छत्तीसगढ़ वापस आ सकते हैं।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला, सुबोध सिंह को पद से हटाए जाने को लीपा-पोती करार दे रहे हैं। सुशील आनंद शुक्ला का आरोप है कि सुबोध सिंह केंद्र सरकार के एक मंत्री के करीबी रिश्तेदार हैं और रमन सिंह के शासनकाल में उन्होंने राज्य में भाजपा के एजेंडे को ही स्थापित करने का काम किया।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, “अगले कुछ महीनों में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चा थी, लेकिन जिस तरीके से उन्हें राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी से हटाया गया है, मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई जिम्मेदारी देकर हमारी पार्टी और सरकार कांग्रेस को बैठे-बिठाए कोई मुद्दा देगी।”

सुबोध सिंह का केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ से चले जाना भी सवालों के घेरे में है। सुशील कहते हैं, “जो अफसर सरकार बदलते ही प्रतिनियुक्ति पर चला जाए, उसके पार्टी विशेष के प्रति प्रेम को समझा जा सकता है। भाजपा के एजेंडे पर काम करने के लिए ही वो केंद्र में गए थे। उन्होंने किस तरह और क्या किया, यह सबके सामने है। 25 लाख से अधिक बच्चे इस अफसर के कारण प्रताड़ित हुए हैं और महज़ पद से हटाना कोई हल नहीं है। इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करके कानूनी कार्रवाई करने की जरूरत है।”

सुबोध कुमार सिंह की वापसी और उनके भविष्य को लेकर छत्तीसगढ़ में अब नए सिरे से चर्चा हो रही है। कांग्रेस प्रवक्ता के आरोपों और भाजपा के रुख के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में उनके करियर की दिशा क्या होगी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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