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November 21, 2024 2:47 pm

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….भूकंप का मिजाज ही ऐसा था कि लोगों को आंखें खुलते ही भयंकर विनाश का अंदेशा होने लगा…

20 पाठकों ने अब तक पढा

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट 

लखनऊ: अरे भूकंप आया… काफी जोर से हिल रहा है… मैं तो तुरंत घर से बाहर की तरफ निकल गया… सीलिंग फैन भी हिल रहा है।

लखनऊ हो या नोएडा, गोरखपुर हो या बरेली.. गोंडा हो या सीतापुर, शुक्रवार की देर रात साढ़े 11 बजे करीब यही बातें हर तरफ हो रही थीं। पड़ोसियों के साथ सड़क पर खड़े हुए लोग हों या फिर फोन कॉल पर रिश्तेदारों के हाल जानते लोग। भूकंप का मिजाज ही ऐसा था कि कई लोगों की रात की नींद ही गायब हो गई। 6.4 की तीव्रता वाले भूकंप का केंद्र नेपाल में रहा। लेकिन दहशत बिहार-झारखंड के इलाके से लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली-हरियाणा तक महसूस की गई। भूकंप का झटका काफी देर तक महसूस हुआ, जिस बारे में एनबीटी ऑनलाइन ने लखनऊ शहर में रहने वाले लोगों से हाल जाना। लोगों ने भी भूकंप के दौरान के अपने अनुभव को साझा किया।

ट्रांसपोर्ट नगर के पास मानसरोवर योजना निवासी आलोक भदौरिया घर से ही ऑफिस के काम में व्यस्त थे। शिफ्ट खत्म होने ही वाली थी कि उन्हें चक्कर जैसा महसूस हुआ। अभी पानी पीने के लिए उठने ही वाले थे कि सामने से पत्नी कमरे में से निकलकर आईं और जोर से बाहर चलने के लिए कहने लगीं। आलोक का कहना है कि वह समझ ही नहीं पाए कि ऐसा क्या हो गया। कारण पूछते ही पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और भूकंप आने की बात बताई। उनका कहना है कि इतनी देर में गूगल मीट पर जुड़े ऑफिस के सहकर्मियों में भी अफरा-तफरी मचने लगी। तब जाकर उन्हें स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ।

कठौता चौराहे के पास रहने वाले विदेश मामलों के जानकार शैलेष शुक्ला बताते हैं कि भूकंप आने पर उन्हें लगा कि इजरायल की तरफ से गाजा पट्टी में हवाई हमले के बारे में लगातार ट्विटर अपडेट देखते-देखते उन्हें कुछ भ्रम हो गया है। तभी बच्चों के स्कूल ग्रुप में भूकंप को लेकर लोगों के मेसेज आने लगे, तब जाकर उन्हें खतरे का एहसास हुआ। पत्नी और बच्चों को तुरंत नीचे भेजने के बाद खुद रिक्टर पैमाने की तीव्रता का मैसेज ऑफिस ग्रुप में शेयर करने के बाद ही नीचे उतरे।

मूलत: बिहार के निवासी राहुल पराशर पत्रकारपुरम के पास रहते हैं। उन्होंने बताया कि मैं तो सो चुका था। नींद में ही सोए-सोए भूकंप जैसा कंपन का एहसास हुआ। उन्हें लगा कि पड़ोस में रहने वाले सहकर्मी विवेक मिश्र फोन करके नाश्ता करने के लिए बुला रहे हैं। फिर दोबारा तेज से कंपन होने पर एक आंख को किसी तरह से खोलकर देखा तो मोबाइल पर फोन नहीं आ रहा था लेकिन पंखा जोर से हिल जरूर रहा था। वह बताते हैं कि मैं उसी तेजी में बिस्तर से चद्दर को फेंककर कूदकर नीचे की तरफ भागा। नीचे उन्हें विवेक मिले, जिन्होंने कहा कि भइया हम आपको ही जगाने के लिए आ रहे थे। सब लोग बाहर हैं।

वहीं गोमतीनगर निवासी राघवेंद्र शुक्ला का कहना है कि वह घर के पास मनोज पांडेय चौराहे से चाय की चुस्की लेकर टहलते हुए घर वापस लौटे। राघवेंद्र बताते हैं कि वह चांद का मुंह टेढ़ा है नामक कविता का पाठ करते हुए हाल ही में बीते करवाचौथ पर्व की युवाओं में प्रासंगिकता पर विचार कर रहे थे। तभी अचानक से धरती हिली और उन्होंने किताब बंद करके नीचे उतरकर जान बचाना ज्यादा बेहतर समझा। लेकिन सीढ़ी से उतरते हुए ही भूकंप बंद हो गया और गेट के बाहर जोर से भौंक रहे कुत्तों का आवाज सुनकर उन्होंने वापस बेड पर ही चले जाने का विकल्प चुना।

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इस बारे में बात करने पर अलीगंज निवासी अभिषेक शुक्ला सुबह की शिफ्ट से पहले नींद आने के लिए आंख बंद करके लेटे हुए थे। आपदा गुजरने के बाद कोई भी बात करने से पहले भूकंप के एहसास का जिक्र कुछ यूं करते हैं- भरे हैं आपमें वो लाखों हुनर ऐ मजमा-ए-खूबी/मुलाकाती तिरा गोया भरी महफिल से मिलता है। वह बताते हैं कि वैसे तो इस शायरी के अर्थ नेक हैं लेकिन भूकंप का आना भी कुछ ऐसा ही है कि एक बार के एहसास से ही डर की पूरी महफिल से सामना हो जाता है।

आलमबाग निवासी वैभव पांडेय बताते हैं कि उन्हें भूकंप का एहसास तक नहीं हुआ। वह कहते हैं कि अगले दिन साप्ताहिक छुट्टी होने की वजह से वह बेफिक्र और चिंतामुक्त भाव से विश्राम कर रहे थे। लेकिन घर में लोगों के हलचल से उन्हें आपदा की आहट का पता चला। वहीं तेलीबाग निवासी लेखक धीरेंद्र सिंह पारिवारिक सदस्य का इलाज कराकर पीजीआई से लौटे थे। थकान से चूर धीरेंद्र अगली किताब के शीर्षक को लेकर मंथन कर ही रहे थे कि भूकंप के झटकों से वह धरातल पर गिरते-गिरते बचे।

सुशील कुमार बताते हैं कि वह लखनऊ से सुल्तानपुर स्थित घर की तरफ पहुंच रहे थे। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर घर से थोड़ी ही दूर पर गाड़ी चलाते हुए ही थोड़ा सा एहसास हुआ। लेकिन उन्होंने समझा कि यह एयरस्ट्रिप पर लड़ाकू विमान की रिहर्सल लैंडिंग की कंपन है। घर पहुंचने पर उन्हें भूकंप की आपदा का पता चल सका।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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