चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
एक 10 साल के बच्चे का सवाल सुनिये और उसका जवाब देने की कोशिश करिए। हो सकता है सबके अलग जवाब हों, लेकिन मुझे लगता है कि इस पर बात तो होनी ही चाहिए। सवाल है कि ‘हर जगह लड़की बचाइए, लड़की पढ़ाइए’ इस तरह की बातें क्यों लिखी होती हैं? ट्रकों के पीछे ऐसे स्लोगन लिखे होते हैं, सड़कों पर भी। टीवी में भी ऐसे ही बोलते हैं। क्यों?
इस सवाल से मेरा सामना अक्सर होता रहा है। अपने तरीके से जवाब भी देता रहा हूं। इसी सप्ताह फिर यह सवाल मेरे सामने आकर खड़ा हो गया, जब मेरे बेटे ने जोर देकर जवाब मांगा। मैं सवाल के बैकग्राउंड से वाकिफ था इसलिए समझाने की कोशिश की कि ये केवल दिल्ली की बात नहीं है। यहां तो लड़कियों को पढ़ने के मौके मिल जाते हैं, लेकिन बहुत से शहर और गांव ऐसे हैं, जहां आज भी लड़की को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता। ऐसे लोगों को समझाने के लिए ऐसी बातें लिखी जाती हैं।
जवाब पूरा होने से पहले ही उसका सवाल आ गया कि ऐसा क्यों बोलते हैं कि लड़कियां लक्ष्मी होती हैं? अगर लड़कियां लक्ष्मी होती हैं तो लड़के भी तो गणेश जी होते हैं! इस सवाल का बैकग्राउंड भी मुझे पता था, इसलिए बस इतना कहा कि न तो लड़कियां लक्ष्मी होती हैं, न लड़के गणेश जी। लड़कियां लड़कियां होती हैं और लड़के लड़के। कोई किसी से बढ़कर नहीं होता। दोनों समान हैं। बात फिर पूरी नहीं हो पाई और उसने पूछा, फिर ऐसा क्यों होता है कि लड़कों को बोलते हैं कि लड़कियों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। लेकिन लड़कियां हम पर रौब भी झाड़ती हैं। हाथ भी उठा देती हैं।
मैं जानता था कि मैं कितना भी समझा लूं, बच्चे की समस्या की कई तहें हैं, इसलिए उसे शायद ठीक से समझा नहीं पाऊं। जैसे-तैसे बात पूरी करके मैंने फोन रखा। कुछ देर यही सोचता रहा कि लड़का लड़की समान हैं, ये हम कहते तो खूब हैं लेकिन क्या दोनों को समान तरीके से ट्रीट कर रहे हैं? लड़कियों को पैंपर करने, या उन्हें मोटिवेट करने के लिए हम उनको ऐसा माहौल तो नहीं दे रहे, जिनसे इस 10 साल की कच्ची उम्र के लड़कों के मन में यह भाव घर कर रहा कि उनसे ज्यादा लड़कियों को तरजीह दी जा रही है। क्या ये हीन भावना आगे चलकर समाज के लिए कोई गंभीर समस्या पैदा नहीं करेगी?
जरूरी यह है कि लड़कियों को लड़कों से कमतर न समझा जाए, ऐसा माहौल बनाएं। लड़का-लड़की समान हैं, बच्चों को ये सिखाएं। किसी एक को तरजीह देकर हम दूसरे के मन में उसके प्रति ईर्ष्या या हीन भावना के बीज तो नहीं बो रहे। यह ध्यान हर घर और हर स्कूल में रखा जाना बहुत जरूरी है। नहीं तो एक खाई भरने के लिए हम उसके बगल में दूसरी खाई खोद देंगे।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."