अनिल अनूप
आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है-15 अगस्त। हमारे देश की आजादी ने 76 लंबे साल पूरे किए हैं। यह कालखंड एक विशाल, विराट इतिहास सरीखा है। गुलामी की बेडिय़ां और उनकी पीड़ा बहुत पीछे छूट चुका है। आज हमारा लोकतंत्र आजाद है। संविधान स्वतंत्र और भविष्यद्रष्टा है। हमारे अपने मौलिक अधिकार और मूल्य हैं। आज हम मानसिक, भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक तौर पर संप्रभु राष्ट्र हैं। संस्कृति और सभ्यता के साथ-साथ एक समृद्ध विरासत, धरोहर भारत ने ही विश्व को दी है, लिहाजा सांस्कृतिक उत्थान में हमारा कोई सानी नहीं है। आज हमारा आसमान और विभिन्न आयाम अनंत और अशेष हैं। हमारी फिजाएं और हवाएं भी अबाध हैं। 15 अगस्त, 1947 को याद करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस दौर में हम सुई तक बनाने में अक्षम थे। गांव तक बैलगाड़ी या फिर मीलों पैदल चल कर जाना पड़ता था। सडक़ें और राजमार्ग स्वप्निल थे। रेलगाड़ी और यातायात के साधन बेहद सीमित थे और पंगु भी साबित होते रहते थे। भारत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत वाला राष्ट्र था, फिर भी उसे गांव, गरीब, गोबर और सांपों वाला देश माना जाता था। हमने परवाह नहीं की। भारत एक भूखंड ही था, जहां निर्जन, बंजर, पठार, जंगल, मरुस्थल असंख्य थे। हमने उन्हें संसाधनों में तबदील किया। आत्म-संतोष यह था कि अब हम स्वतंत्र, संप्रभु और गणतांत्रिक देश होंगे।
इस मौके पर अगर देश की अब तक की उपलब्धियों और भविष्य की संभावनाओं का जायजा लेना हो तो उसका एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि दूसरों की नजर से खुद को देखा जाए। यानी दुनिया के अन्य देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थान हमें किस रूप में देखते हैं, अगले कुछ वर्षों में उनकी हमसे क्या अपेक्षा है। मार्के की बात है कि आज अंतरराष्ट्रीय हलकों में इस बात पर लगभग सर्वसम्मति है कि डगमगाई हुई ग्लोबल इकॉनमी में भारत एक ब्राइट स्पॉट बना हुआ है। भारत का ग्रोथ इंजन आज पूरी दुनिया के लिए उम्मीद का आधार है। यह कोरोना और फिर यूक्रेन युद्ध से उपजे तात्कालिक हालात के कारण कुछ समय के लिए बना परिदृश्य नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगले कई वर्षों तक इंडियन इकॉनमी की गाड़ी काफी तेजी से आगे बढ़ सकती है। पिछले करीब दस वर्षों की बात करें तो भारत 11वें नंबर की इकॉनमी से पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था तो बन ही चुका है। आगे इसकी रफ्तार और तेज होगी।
उस और आज के कालखंड की तुलना करें, तो खुद से सवाल करना पड़ता है कि अंतरिक्ष, आसमान, समंदर से लेकर जमीन तक कहां नहीं है हिन्दुस्तान? यह बात पुरानी और सियासी-सी लगती है, लेकिन हकीकत है कि आज हम विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और तीसरे स्थान तक का सफर बड़ी तेजी से कम हो रहा है। यह हम आजाद भारतीयों के पुरुषार्थ और मेहनत का ही नतीजा है। आज हम दूध और चीनी के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता देश हैं। गेहूं, चावल, फल, सब्जियों आदि के संदर्भ में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और आपूर्तिकर्ता देश हैं। कभी भारत अकाल और खाद्य-संकट वाला देश था। विदेश से ‘लाल गेहूं’ का जहाज आता था, तो हमें आटा नसीब होता था। हमारी ‘हरित क्रांति’ ने भारतीय कृषि की दशा और दिशा ही बदल दी। आज चंद्रमा की ओर हमारा ‘चंद्रयान-3 मिशन’ बढ़ रहा है, तो रूस का भी मिशन वहां पहुंचने वाला है, जबकि रूस हमसे बहुत आगे है। हमने कई देशों के उपग्रह भी अपने अंतरिक्ष अभियान के साथ भेजे हैं। आज अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन की विख्यात बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारी स्वदेशी कंपनियों के समन्वय और सहयोग से, भारत में ही, उत्पादन कर रही हैं। भारत इन देशों का भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार भी है। लड़ाकू विमान के सबसे ताकतवर इंजन, सेमीकंडक्टर चिप्स आदि का निर्माण भी अब भारत में ही होगा। कभी हम अमरीका, चीन, सिंगापुर आदि देशों पर आश्रित होते थे। आज भारत आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ रहा है। आज हम विमान, मिसाइल, ड्रोन, हेलीकॉप्टर और कई अन्य हथियारों का उत्पादन देश में ही कर रहे हैं और 50 से अधिक देशों को हथियारों का निर्यात भी कर रहे हैं। यह भी आश्चर्य ही है कि करीब 140 करोड़ की आबादी वाले विशाल और विविध देश में अकाल, भुखमरी के कोई आसार तक नहीं हैं। हम सभी ने मिल कर कोरोना वैश्विक महामारी को भी मात दी है। हमारे देशवासियो! यह आजादी बेमिसाल है, अद्भुत और दुर्लभ भी है, लिहाजा हमेशा याद रखें कि आजादी के साथ-साथ देश को विभाजन की विभीषिकाएं, दंश, यंत्रणाएं, अलगाव, विस्थापन के हालात भी झेलने पड़े थे।
देश की इस तरह की पॉजिटिव तस्वीर के पीछे डिजिटल इंडिया, जनधन खाता और आधार जैसी नीतियां रही हैं। मगर इसका मतलब यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि हमारे रास्ते में चुनौतियां नहीं हैं। अगले कुछ वर्षों का जो सुखद लक्ष्य दिख रहा है, वहां तक पहुंचना आसान नहीं है। सबसे बड़ी बात यह कि लेबर फोर्स में कामकाजी लोगों की भागीदारी लगातार घट रही है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 में जो LFPR (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट) 60 फीसदी था, वह घटकर 53 फीसदी के आसपास आ गया है। लेबर फोर्स के स्किल का सवाल भी अहम है। देश में बालिग कामकाजी लोग 6.7 साल की औसत स्कूलिंग वाले हैं।
जाहिर है शिक्षा और रोजगार दोनों मोर्चों पर काफी काम करने की जरूरत है। लेकिन सबसे अहम है देश के अंदर का माहौल। मणिपुर के हालात तो असुविधाजनक सवाल पैदा करते ही हैं, देश में हेटस्पीच के बढ़ते मामले और समाज में दिख रहा तीखा ध्रुवीकरण इन तमाम उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। याद रखना होगा कि पूंजी वही आती है, जहां अमन-चैन हो और इसी निवेश की बदौलत देश तेजी से तरक्की की राह पर आगे बढ़ता है।
लाखों मासूम मारे गए, बेघर हुए, सब कुछ लुट गया, लेकिन भारत को स्वतंत्र देखने का जज्बा निराला था, लिहाजा कुर्बानियां भी फूल-सी लगीं। आज हम मणिपुर, नूंह जैसे हालात देखते हैं, तो भीतर से आत्र्तनाद गूंज उठता है-अरे, हम तो भाई-भाई हैं। इस देश के आजाद नागरिक हैं। एक ही गुलिस्तां के फूल हैं, फिर यह लहू क्यों बहाया जा रहा है? सांप्रदायिक और जातीय दंगे क्यों भडक़ाए जा रहे हैं? क्यों हत्याएं करने पर हम आमादा हैं? क्या हम अपने ही हिन्दुस्तान के दुश्मन हैं? इन्हें त्याग दो, भाइयो! यह आजादी बेशकीमती है, कुर्बानियों से मिली है, इसे किसी भी कीमत पर खोया नहीं जा सकता। स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन भी होगा। देखना होगा कि वह देश के समक्ष क्या विचार रखते हैं। हालांकि देश के कई हिस्सों में बाढ़ से भारी तबाही हो रही है, ऐसे समय में स्वतंत्रता दिवस की खुशी कुछ फीकी लगती है, फिर भी इसे जोश से मनाया जाना चाहिए। जयहिंद।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."