दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
तेलंगाना की एक दुल्हन अपनी सुहागरात पर ही मां बन गई। दरअसल, सिकंदराबाद की रहने वाली लड़की की शादी ग्रेटर नोएडा के एक युवक से तय हुई थी। शादी की देर रात ही दुल्हन के पेट में दर्द हुआ। जिसके बाद घरवाले उसे अस्पताल ले गए। जहां, दूसरे ही दिन उसने एक बच्ची को जन्म दिया।
शादी के अगले ही दिन बच्ची के जन्म के बाद दूल्हे ने उसे और उसके बच्ची को अपनाने से इनकार कर दिया। उसका कहना था कि उसके साथ दुल्हन ने धोखा किया है।
हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दूल्हा और दुल्हन पक्ष में समझौता हो गया है। जिसके मुताबिक कोई भी पक्ष दूसरे पर मुकदमा दर्ज नहीं कराएगा और मां बनी दुल्हन हमेशा के लिए अपने मायके लौट जाएगी।
कानपुर में शादी के 10 दिन बाद मां बनी थी दुल्हन
इससे पहले कानपुर में एक दुल्हन अपनी शादी के 10 दिन बाद ही मां बन गई थी। दरअसल, कानपुर देहात के रहने वाले एक युवक की शादी पांच महीने पहले तय हुई थी। शादी के 10 दिन बाद ही दुल्हन के पेट में तेज दर्द हुआ। ससुराल वाले अपने नई-नवेली दुल्हन को अस्पताल ले गए।
जहां डॉक्टरों ने बताया कि दुल्हन 7 महीने की प्रेग्नेंट है। उसी दिन दुल्हन ने 7 महीने की प्री-मैच्योर बच्ची को जन्म भी दे दिया।
इधर, शादी के 10 दिन बाद मां बनने की घटना ने दूल्हे और उसके घरवालों को सकते में डाल दिया। उन्होंने दुल्हन के घरवालों से लड़ाई-झगड़े के बाद उसे अपनाने से इनकार कर दिया। जिसके बाद दुल्हन अपनी बच्ची के साथ मायके लौट गई।
दूल्हा बोला- झूठ बोलकर हुई थी शादी
इस मामले में दूल्हे ने बताया कि झूठ बोलकर उसकी पहले से प्रेग्नेंट लड़की से शादी कराई गई थी। आरोप है कि शादी से पहले लड़की के घरवालों ने बताया था कि लड़की के पेट का ऑपरेशन हुआ है और इसी वजह से पेट फूला हुआ है। दूल्हा और उसके घरवालों ने इस बात पर भरोसा करके शादी के लिए हामी भरी थी। अस्पताल जाते हुए भी दुल्हन ने ऑपरेशन की वजह से पेट दर्द का बहाना किया था।
तलाक का आधार हो सकता है शादी से पहले की प्रेग्नेंसी
शादी से पहले दुल्हन की प्रेग्नेंसी के आधार पर दूल्हा तलाक मांग सकता है। हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के सेक्शन 13 (1)(i) के तहत एडल्ट्री के आधार पर तलाक मांगा जा सकता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में एडल्ट्री यानी शादी से इतर रिश्ता रखने को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। इसके लिए पति या पत्नी को सजा नहीं दी जा सकती। लेकिन यह अभी भी तलाक का आधार बन सकता है।
तलाक के लिए साबित करनी पड़ती है बेवफाई, एकतरफा फैसला नहीं ले सकते
दरअसल, देश में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी से बाहर आने के लिए वाजिब कारण का होना जरूरी है। पति या पत्नी किसी को भी बिना किसी ठोस वजह के एकतरफा तलाक देने का अधिकार नहीं है। तलाक के लिए कोर्ट के सामने यह साबित करना जरूरी है कि अब इस रिश्ते में बना रहना मुमकिन नहीं।
सात आधार पर ले सकते हैं तलाक
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिये 7 दोष आधार हैं। इसमें व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्मांतरण, पागलपन, कुष्ठ रोग, यौन रोग और संन्यास भी शामिल है।
पागल होने, 7 साल से ज्यादा गुमशुदा होना, संक्रामक बीमारी से ग्रस्त होने और किसी दूसरे रिश्ते से प्रेग्नेंट होने जैसी स्थिति में पार्टनर तलाक मांग सकता है।
कोर्ट के मुताबिक कोई भी बच्चा ‘नाजायज’ नहीं होता
मुंबई हाईकोर्ट की वकील वंदना शाह बताती हैं कि समाज में शादी से इतर रिश्ते से पैदा हुए बच्चे को भले ही कलंक के रूप में देखा जाता हो; लेकिन कानून ऐसा नहीं मानता। अपने कई फैसलों में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि ऐसे बच्चों को भी पूरा कानूनी अधिकार है। कानूनी रूप से उसे लीगल चाइल्ड ही माना जाएगा। वह अपने बायलॉजिकल पिता की संपत्ति पर दावा भी कर सकता है।
दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के मुताबिक तलाक के बिना दूसरी शादी को मान्यता नहीं मिलती है। लेकिन ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को भी कोर्ट ने कानूनी मान्यता दी है। इसी तरह लिव-इन रिश्ते से पैदा हुए बच्चे भी लीगल होते हैं।
शादी के सातवें महीने मां बनी महिला, तो डीएनए टेस्ट का दबाव
शादी के 7-8 महीने के भीतर महिला मां बने तो उसे शक की नजरों से देखा जाता है। 2014 में बिहार में एक ऐसा ही मामला सामने आया था। जहां अनुराधा शर्मा नाम की एक महिला अपनी शादी के 7वें महीने मां बनी । उसका कहना था कि वह शादी के बाद प्रेग्नेंट हुई और 7वें महीने में प्रीमैच्योर बेबी को जन्म दिया है। जबकि लोगों ने इस उसके पूर्व संभावित रिश्ते से जोड़कर देखा।
देश के अलग-अलग हिस्सों से कई ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिसमें शादी के 9 महीने के भीतर महिला मां बने तो ससुराल वाले उस पर बच्चे के डीएनए टेस्ट का दबाव बनाते हैं।
हालांकि अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि बेवफाई जांचने के लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट की अनुमति नहीं दी जा सकती। क्योंकि इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डीएनए टेस्ट बच्चों के मन में भ्रम पैदा कर सकता है। कोर्ट का यह भी कहना था कि जब किसी बच्चे को यह पता चलेगा कि उसके असली पिता की खोज की जा रही है तो बच्चे में एक मानसिक आघात पैदा होगा। इसलिए असाधारण मामलों को छोड़कर बाकी मामलों में बच्चे के डीएनए टेस्ट की इजाजत नहीं दी जा सकती।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."