आनंद शर्मा की प्रस्तुति
“मैं माया गूजर, अजमेर से 19 किलोमीटर दूर पदमपुरा गांव की रहने वाली हूं। मेरा गांव काफी पिछड़ा है। हर लड़की की शादी कम उम्र में ही हो जाती है। किसी की डेढ़ साल की उम्र में तो किसी की दो-तीन साल की उम्र में। यहां तक कि कई लड़कियों की शादी मां के गर्भ में भी हो जाती है। मेरी भी हुई है। मैं तीन बहन हूं और तीनों की ही शादी कम उम्र में हुई है।
अभी थोड़े दिन पहले मेरी आंखों के सामने ही डेढ़ महीने की एक लड़की की शादी कर दी गई। कन्यादान सात साल के बच्चे ने किया। क्या मतलब है ऐसी शादी का? जिसमें न लड़के को कुछ पता है न लड़की को कुछ पता है।
उन्हें यह भी नहीं पता कि शादी क्या होती है, रिश्ता क्या होता है। बड़ा होने के बाद लड़का क्या करेगा, लड़की को पसंद करेगा कि नहीं, लड़की उसे पसंद करेगी कि नहीं। बचपन में शादी हो गई तो बड़ा होने पर भी उसी के साथ रहना पड़ेगा। पूरा जीवन घूंट-घूंटकर जीना पड़ेगा। बताइए ये जुल्म नहीं है तो क्या है?
बचपन में मुझे भी कुछ नहीं पता था। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। पापा-मम्मी भी पढ़े-लिखे नहीं थे। मैं गांव के स्कूल में पढ़ने जाती थी। सिर्फ 8वीं तक ही गांव में स्कूल था। उससे आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है। गांव से बाहर लड़के तो पढ़ने जाते है, लेकिन लड़कियों को इसकी इजाजत नहीं है।
मुझे याद है मेरे टीचर्स कहते थे माया तुम पढ़ने में अच्छी हो। तुम कभी पढ़ाई मत छोड़ना। मैंने जब 8वीं की पढ़ाई पूरी की तब आगे पढ़ना चाहती थी। मैंने पापा से ये बात बताई। गांव के लोगों को पता चला तो उन लोगों ने हंगामा कर दिया।
पापा से कहा कि आप अपनी लड़की को गांव से बाहर पढ़ने मत भेजिए। इसे पूरे गांव का माहौल खराब होगा। पापा गांव के लोगों के दबाव में आ गए। वे चाहते थे कि मैं पढ़ूं, लेकिन गांव वालों के सामने मजबूर थे। उन्होंने मुझसे कहा कि माया मैं तुमसे प्यार बहुत करता हूं, लेकिन तुम्हें पढ़ा नहीं सकता। फिर मां ने साथ दिया। वे मेरे साथ एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ी हो गईं।
मां ने पापा से कहा कि बेटी पढ़ने जाएगी। मेरी तरह ये अनपढ़ नहीं रहेगी। इसकी पूरी जिंदगी बाकी है। पढ़ नहीं पाई तो जीवन-भर इसे मेरी तरह चूल्हा-चौका करना पड़ेगा। गोबर थापना पड़ेगा। मैं ऐसा कभी होने नहीं दूंगी।
पापा बार-बार मां को समझा रहे थे, लेकिन मां नहीं मानी। जब गांव वालों को यह बात पता चली, तो उन्होंने पंचायत बुलाई। पंचायत में गांव के लोगों ने पापा से पूछा कि पढ़-लिखकर ये क्या करेगी? कोई नौकरी करनी है क्या इसे? आप इसे कलेक्टर बनाओगे?
कुछ लोगों ने कहा कि इसकी शादी हो गई है। अब गौना कर दो। अपने ससुराल जाएगी। वहां इसे जो करना होगा करेगी। दरअसल हमारे यहां बचपन में लड़कियों की शादी होती है और 8वीं के बाद गौना कर दिया जाता है।
कुछ लोगों ने कहा कि ये बाहर पढ़ने जाएगी तो, बाकी लड़कियां भी जिद करेंगी बाहर पढ़ने की। ऐसे में लड़कियां बिगड़ जाएंगी। उनका लड़कों के साथ चक्कर चलेगा। वे घर छोड़कर भाग जाएंगी। हमारी इज्जत मिट्टी मिल जाएगी। फिर हम कहां जाएंगे…?
इस पर मां ने कहा कि मेरी बेटी पढ़ने जाएगी। मुझे फर्क नहीं पड़ता कल को वो भागती है या क्या करती है।
इसके बाद घर में थोड़ी-बहुत कलह मची। रिश्तेदारों ने भी विरोध किया, लेकिन मां के सपोर्ट के बाद मैं पढ़ने जाने लगी। जहां मेरी शादी हुई थी, वहां भी मां ने बता दिया कि बेटी पढ़ने जाएगी। आप लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वे लोग भी अच्छे थे। बात मान गाए।
स्कूल जाने की खुशी तो मुझे थी, लेकिन पहले ही दिन से मेरे ऊपर दबाव भी था। दबाव ये कि मुझे जिन उम्मीदों से मां ने पढ़ने भेजा है, उस पर खरी उतरना।
मैं स्कूल जाती थी और पढ़ाई करने के बाद सीधे घर लौटती। ना ज्यादा किसी से दोस्ती ना कहीं घूमने जाना, क्योंकि हर किसी की नजर मेरे ऊपर ही थी। आए दिन राह चलते लोग कमेंट करते थे। ताने मारते थे कि एक दिन फलां की बेटी भाग जाएगी।
मुझे पता था कि मेरा नाम किसी लड़के के साथ जुड़ता है या किसी को कुछ कहने का मौका मिलता है, तो लोग मेरा और मेरे परिवार का जीना मुहाल करेंगे ही, साथ ही उन लड़कियों की उम्मीदें भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी, जो कल को मेरी तरह स्कूल जाने का सोच रही हैं।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से उनका कल खराब हो। इसलिए मैं सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती थी। दो साल बाद मैंने अच्छे नंबरों से दसवीं की परीक्षा पास की। तब जाकर पापा को लगा कि उनको विरोध नहीं करना चाहिए था।
इसके बाद मैंने अजमेर के एक कॉलेज में दाखिला लिया। चूंकि हमारे यहां सड़कें अच्छी नहीं हैं। आने-जाने के साधन भी नहीं हैं। आज भी मुझे 19 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है। सर्दी, गर्मी और बरसात हर मौसम में।
दो साल पहले सरकार ने अजमेर से हमारे गांव के लिए एक बस शुरू की थी, लेकिन गांव वालों ने उसे बंद करवा दिया। गांव वालों का कहना था कि गांव के लिए बस चलेगी तो बहू-बेटियां भाग जाएंगी। मतलब हर बात में भाग जाएंगी..भाग जाएंगी…। गांव वालों ने आखिर हमें समझ क्या रखा है?
12वीं करने के बाद मैंने ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। फिर गांव की लड़कियों को भी मोटिवेट करना शुरू किया। उनके घर वालों को अवेयर करना शुरू किया, लेकिन वे लोग गांव से बाहर अपनी लड़की को भेजने के लिए तैयार नहीं हुए। कुछ लोग पढ़ाना भी चाहते हैं, तो उन पर बेटी के ससुराल वालों का दबाव होता है।
उनके ससुराल वालों का कहना है कि लड़की पढ़-लिख गई तो घर का काम कौन करेगा। हमें अपनी बहू से नौकरी नहीं करानी है। घर का काम करना है। खाना बनवाना है, झाड़ू-पोछा कराना है। आप हमारी बहू को बाहर मत भेजो पढ़ने के लिए।
इसके बाद एक NGO की मदद से मैंने गांव में ही एक सेंटर खोलकर लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए भेजने लगे। इसे गांव का माहौल बदला। लोगों को पढ़ाई की वैल्यू समझ आने लगी, लेकिन अभी सब कुछ शुरुआती स्टेज में है। लोगों पर पुरानी कुरीतियां इतनी हावी हैं कि बदलने में वक्त लगेगा।
मेरे ससुराल के लोग मेरी पढ़ाई देखकर खुश है। लड़का भी अभी पढ़ाई कर रहा है। वे लोग जब घर आते हैं तो तोहफे के रूप में मेरे लिए किताबें लेकर आते हैं। अब आगे कुछ अच्छी नौकरी करना चाहती हूं। गांव की लड़कियों की पढ़ाई के लिए कुछ करना चाहती हूं।
बाल-विवाह रोकने के लिए काम करना चाहती हूं। मेरी कोशिश है कि गांव से शहर जाने के लिए अच्छी सड़क बन जाए। ताकि गांव की लड़कियां पढ़ सकें, अपने अधिकारों को जान सकें।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."